Skip to main content

Posts

Showing posts with the label terrorism

हम भूल न जाए उनको, इसलिए कही ये कहानी...

आईये नमन करें उन शहीदों को जो क्रूर आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद हो गए २६ नवम्बर की वह रात कितनी भयावह थी, जब चारों ओर आग बरस रही थी और सम्पूर्ण भारतीय आतंकित और भयभीत था। एक पिता के कानों में पुत्र की करूण पुकार गूँज रही थी और अपने लाल को बचाने के लिए वह दीवार पर सिर पटक रहा था, प्रशासन के सामने गिड़गिड़ा रहा था। कितनी ही माताएँ अपनी गोद उजड़ने का दृश्य अपनी आँखों से देख रही थी। देश-विदेश के अतिथि किंकर्तव्य विमूढ़ थे। । सबकी साँसें रूकी हुई थी। पल-पल की खबर सबकी धड़कनों को तीव्र कर रही थी। आतंकवादियों ने हमारे स्वाभिमान को ठेस लगाई। मानवता पर कलंक लगाया। कुछ लोगों के कुकृत्यों एवं हिंसक योजनाओं ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। वीरों की संतान कहलाने वाले हम सब कितने असहाय,कितने कमजोर और कितने असावधान थे। अपनी सुरक्षा व्यवस्था के सुराग बहुत स्पष्ट दिखाई दिए। देश के नागरिकों ने अपने दायित्वों को भी जाना । सुरक्षा बल अपनी सम्पूर्ण लगाकर भी इसे रोक पाने में असमर्थ था। ऐसे में देश के बलिदानी निकल पड़े जान हथेली पर लेकर। उनकी आँखों में बस एक ही सपना था। देश की सुरक्षा का । उन्होंने माता

मेरा ही बेटा है अजमल कसाब

एक माँ की गुजारिश कल सुबह-सुबह जब अखबार में पढ़ा कि "अजमल" के अब्बू ने जो पकिस्तान में रहते हैं, सामने आने का दुस्साहस किया है कि, वो मेरा बेटा है। अब पाकिस्तान की सरकार बाप-बेटे के रिश्ते को कैसे झूठा साबित करेगी, यही हम सब को देखना है। देखना है कि सियासत के ठेकेदार अपनी दरिंदगी के खेल के लिए कब तक नौजवानों को गुमराह करेंगे और झूठे लालच और आश्वासन देकर सिर्फ़, सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी तसल्ली के लिए खून बहायेंगे| मेरी गुजारिश है, एक माँ कि गुजारिश दुनिया के तमाम नौजवानों से वो किसी भी ऐसे जाल में अपने आप को फँसने से बचाएं, जहाँ कोई मजहब नहीं, कोई ईमान नहीं। नौजवानों हमेशा एक ही बात याद रखो कि सिर्फ़ अपनी मेहनत का भरोसा रखो, कोई चमत्कार नहीं होता कहीं, कोई अल्लादीन का चराग नहीं है किसी के पास जो हमारी दुश्वारियों का हल दे दे| मेहनत ही हमें कोई रास्ता दे सकती है, खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बन्दे से पूछे , बता तेरी रज़ा क्या है | अपनी मेहनत, अपनी लगन से अपने मुल्क को तरक्की के राह पर ले जाओ, क्योंकि ये सियासत के ठेकेदार सिर्फ़ गुमराह करते थे, करते हैं और आगे भी करते रह

बहा के लहू इंसां का मिलेगी क्या...तुमको वो जन्नत...

आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ की 'ऑडियो-वीडियो' पहल सड़कों पर पड़े लोथड़ों में ढूँढ रहा फिरदौस है जो, सौ दस्त, हज़ार बाजुओं पे लिख गया अजनबी धौंस है जो, आँखों की काँच कौड़ियों में भर गया लिपलिपा रोष है जो, ईमां तजकर, रज कर, सज कर निकला लिए मुर्दा जोश है जो, बेहोश है वो!!!! ओ गाफ़िल! जान इंसान है क्या, अल्लाह है क्या, भगवान है क्या, कहते मुसल्लम ईमान किसे, पाक दीन इस्लाम किसे, दोजख है कहाँ, जन्नत है कहाँ, उल्फत है क्या, नफ़रत है कहाँ, कहें कुफ़्र किसे, काफ़िर है कौन, रब के मनसब हाज़िर है कौन, गीता, कुरान का मूल है क्या, तू जान कि तेरी भूल है क्या!!!! सबसे मीठी जुबान है जो, है तेरी, तू अंजान है क्यों? उसमें तू रचे इंतकाम है क्यों? पल शांत बैठ, यह सोच ज़रा, लहू लेकर भी तेरा दिल न भरा, सुन सन्नाटे की सरगोशी, अब तो जग, तज दे बेहोशी, अब तो जग, तज दे बेहोशी। -विश्व दीपक 'तन्हा' ऊपर लिखी 'तन्हा' की कविता से स्पष्ट हो गया होगा कि हम क्या संदेश लेकर हाज़िर हुए हैं। आज दुनिया में हर जगह आतंक का साया है। कोई रोज़ी-रोटी कमाकर नहीं लौट पा रहा है, तो कोई दवा लेकर नहीं वापिस हो पा रह

हर एक घर में दिया भी जले- नीलम मिश्रा की गुजारिश

आलेख प्राप्ति समय- 18 Sep 2008 12:33 "आज सुबह एक माँ की गुजारिश थी, अखबार में कि मेरा बेटा बेक़सूर है, अगर उसका गुनाह साबित हो जाय, तो सरेबाजार उसे फांसी दे दीजिये " वक्त आ गया है, हमे सोचने का कि हम किस राह चल दिए हैं? सभी मुसलमान परिवारों का कैसा रमजान है? और कैसी ईद?कितने मासूम,बेक़सूर और कितने वेवजह इस घटना के शिकार होंगे|कितनी बहने अपने भाई की रिहाई के लिया नमाज अदा कर रही होंगी, रोज एक- एक दिन बड़े होते देख अपनी औलादों को माँ बाप फूले न समाते थे, उनके घरों में कितने दिनों से दिया न जला होगा | अब वक्त आ गया है,हम अपने सभी हिंदू व् मुसलमान भाई को कि एक हो जाय,यह दिखा दे दुनिया वालों को कि कोई लाख चाहे तो भी हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता है हम सब एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे | इस दुआ के साथ - हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो , अगर न हो कोई ऐसा तो एहतजाज* भी हो। हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं, हुकूमतें जो बदलता है, वो समाज भी हो। रहेगी कब तलक वादों में कैद खुशहाली, हर एक बार ही कल क्यों, कभी तो आज भी हो। न करते शोर-शराबा तो और क्या करते , तुम्हारे शहर में कुछ कामकाज