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Jugni || Revisit and Rewind || Shefali Bhushan || Clinton Cerejo || Susheel P || Sajeev Sarathie

सिनेमा स्कोप रेकमेंडस में आज हम Revisit & Rewind कर रहे हैं 5 साल पहले प्रदर्शित हुई फिल्म जुगनी, जिसका संगीत अपने समय से काफी आगे का था, साथ ही इस खूबसूरत फिल्म और इसके यादगार मगर काम चर्चित संगीत पर बात करने के लिए हमारे साथ मौजूद हैं फिल्म की निर्देशिका शेफाली भूषण और फिल्म के संगीतकार क्लिंटन सेरेओ, आपके रेडियो साथी सुशील और सजीव सारथी के साथ, सुनिए और जानिए कि क्यों है ये फिल्म आपके लिए देखनी जरूरी और क्यों है इस संगीत आज भी मनभावन   listen on YouTube  आप हमारे इस पॉडकास्ट को इन पॉडकास्ट साईटस पर भी सुन सकते हैं  Spotify Amazon music   Google Podcasts Apple Podcasts Gaana JioSaavn हम से जुड़ सकते हैं - facebook  instagram  YouTube  To Join the CinemaScope Reviews team, please write to sajeevsarathie@gmail.com  Hope you like this initiative, give us your feedback on radioplaybackdotin@gmail.com  

एक डायन जो डराती नहीं, सुरीली तान छेड़ माहौल खुशगवार बनाती है!

प्लेबैक वाणी -4 2 - संगीत समीक्षा - एक थी डायन इस साल की शुरुआत विशाल और गुलज़ार की टीम रचित  मटरू की बिजिली का मंडोला  से हुई थी. यही सदाबहार जोड़ी एक बार फिर श्रोताओं के समक्ष है इस बार एक डायन की कहानी के बहाने. जी हाँ  एक थी डायन  के संगीत एल्बम के साथ वापसी कर रही है विशाल की पूरी की पूरी टीम. चलिए मिलते हैं इस संगीतमय डायन से आज.   सूरज से पहले जगायेंगें, और अखबार की सारी सुर्खियाँ पढ़ के सुनायेंगें...मुँह खुली जम्हायीं पर हम बजायेंगें चुटकियाँ.... बड़े ही अनूठे अंदाज़ से खुलता है ये गीत, जहाँ पहली पंक्ति से ही गुलज़ार साहब श्रोताओं के कान खड़े कर देते हैं. हालाँकि विशाल की धुन में कहीं कहीं  सात खून माफ  के ओ मामा  की झलक मिलती है, पर सच मानिये शब्दों का नयापन सारी खामियों को भर देता है, उस पर सुनिधि की आवाज़ जादू सा असर करती है. हालाँकि क्लिंटन की आवाज़ भी उनका भरपूर साथ देती है. सपने में मिलती है  में खनकती सुरेश वाडकर की आवाज़ आज भी दिल को गुदगुदा जाती है. संजीदा आवाज़ वाले सुरेश से मस्ती वाले ऐसे गीत विशाल बखूबी गवा ...

पोर-पोर गुलमोहर खिल गए..जब गुलज़ार, विशाल और सुरेश वाडकर की तिकड़ी के साथ "मेघा बरसे, साजन बरसे"

Taaza Sur Taal (TST) - 08/2011 - BARSE BARSE कुछ चीजें जितनी पुरानी हो जाएँ, उतनी ज्यादा असर करती हैं, जैसे कि पुरानी शराब। ज्यों-ज्यों दिन बीतता जाए, त्यों-त्यों इसका नशा बढता जाता है। यह बात अगर बस शराब के लिए सही होती, तो मैं यह ज़िक्र यहाँ छेड़ता हीं नहीं। यहाँ मैं बात उन शख्स की कर रहा हूँ, जिनकी लेखनी का नशा शराब से भी ज्यादा है और जिनके शब्द अल्कोहल से भी ज्यादा मारक होते हैं। पिछले आधे दशक से इस शख्स के शब्दों का जादू बरकरार है... दर-असल बरकरार कहना गलत होगा, बल्कि कहना चाहिए कि बढता जा रहा है। हमने इनके गानों की बात ज्यादातर तब की है, जब ये किसी फिल्म का हिस्सा रहे हैं, लेकिन "ताज़ा सुर ताल" के अंतर्गत पहली बार हम एक एलबम के गानों को इनसे जोड़कर लाए हैं। हमने "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" में इनके कई सारे गैर-फिल्मी गाने सुनें हैं और सुनते रहेंगे। हम अगर चाहते तो इस एलबम को भी महफ़िल-ए-ग़ज़ल का हिस्सा बनाया जा सकता था, लेकिन चुकी यह "ताज़ा एलबम" है, तो "ताज़ा सुर ताल" हीं सही उम्मीदवार साबित होता है। अभी तक की हमारी बातों से आपने उन शख्स को पहचान तो ...

तेरे लिए किशमिश चुनें, पिस्ते चुनें: ऐसे मासूम बोल पर सात क्या सत्तर खून माफ़! गुलज़ार और विशाल का कमाल!

Taaza Sur Taal (TST) - 04/2011 - SAAT KHOON MAAF एक गीतकार जो सीधे-सीधे यीशु से सवाल पूछता है कि तुम अपने चाहने वालों को कैसे चुनते हो, एक गीतकार जो अपनी प्रेमिका के लिए परिंदों से बागों का सौदा कर लेता है ताकि उसके लिए किशमिश और पिस्ते चुन सके, एक गीतकार जो प्रेमिका की तारीफ़ के लिए "म्याउ-सी लड़की" जैसे संबोधन और उपमाओं की पोटली उड़ेल देता है, एक गीतकार जो आँखों से आँखें चार करने की जिद्द तो करता है, लेकिन मुआफ़ी भी माँगता है कि "सॉरी तुझे संडे के दिन ज़हमत हुई", एक गीतकार जो ओठों से ओठों की छुअन को "ऒठ तले चोट चलने" की संज्ञा देता है, एक गीतकार जो सूखे पत्तों को आवारा बताकर ज़िंदगी की ऐसी सच्चाई बयां करता है कि सीधी-सादी बात भी सूफ़ियाना लगने लाती है .. यह एक ऐसे गीतकार की कहानी है जो शब्दों से ज्यादा भाव को अहमियत देता है और इसलिए शब्दों के गुलेल लेकर भावों के बगीचे में नहीं घुमता, बल्कि भावों के खेत में खड़े होकर शब्दों की चिड़ियों को प्यार से अपने दिल के मटर मुहैया कराता है और फिर उन चिड़ियों को छोड़ देता है खुले आसमान में परवाज़ भरने के लिए, फिर जो ...

पतवार पहन जाना... ये आग का दरिया है....गीत संगीत के माध्यम से चेता रहे हैं विशाल और गुलज़ार.

ताजा सुर ताल (16) ता जा सुर ताल में आज पेश है फिल्म "कमीने" का एक थीम आधारित गीत. सजीव - मैं सजीव स्वागत करता हूँ ताजा सुर ताल के इस नए अंक में अपने साथी सुजॉय के साथ आप सब का... सुजॉय - सजीव क्या आप जानते हैं कि संगीतकार विशाल भारद्वाज के पिता राम भारद्वाज किसी समय गीतकार हुआ करते थे। जुर्म और सज़ा, ज़िंदगी और तूफ़ान, जैसी फ़िल्मों में उन्होने गानें लिखे थे.. सजीव - अच्छा...आश्चर्य हुआ सुनकर.... सुजॉय - हाँ और सुनिए... विशाल का ज़िंदगी में सब से बड़ा सपना था एक क्रिकेटर बनने का। उन्होप्ने 'अंडर-१९' में अपने राज्य को रीप्रेज़ेंट भी किया था। हालाँकि उनके पिता चाहते थे कि विशाल एक संगीतकार बने, उन्होने अपने बेटे को क्रिकेट खेलने से नहीं रोका। सजीव - ठीक है सुजॉय मैं समझ गया कि आज आप विशाल की ताजा फिल्म "कमीने" से कोई गीत श्रोताओं को सुनायेंगें, तभी आप उनके बारे में गूगली सवाल कर रहे हैं मुझसे....चलिए इसी बहाने हमारे श्रोता भी अपने इस प्रिय संगीतकार को करीब से जान पायेंगें...आप और बताएं ... सुजॉय - जी सजीव, जाने माने गायक और सुर साधक सुरेश वाडकर ने विशाल...

"ससुराल गैन्दाफूल..."- रेखा भारद्वाज का चिर परचित अंदाज़

"नमक इश्क का", फ़िल्म ओमकारा का ये हिट गीत था जिसे गाने के बाद रेखा भरद्वाज ने कमियाबी का असली स्वाद चखा था. इस गीत के संगीतकार हैं विशाल भरद्वाज जो रेखा के पति और एक कामियाब संगीतकार होने के साथ साथ एक उत्कृष्ट निर्देशक भी हैं. नमक इश्क का गीत लिखा था गुलज़ार साहब ने जिन्हें रेखा अपना मेंटर मानती है. १९९६ में बनी गुलज़ार की फ़िल्म "माचिस" से विशाल भरद्वाज बतौर संगीतकार चर्चा में आए थे. इसी फ़िल्म में रेखा ने विशाल को सहयोग दिया था संगीत में. तत्पश्चात चाची ४२०, गोड़ मदर, हु तू तू और मकडी में उन्होंने विशाल के साथ काम किया. कभी कभार कुछ गीतों को अपनी आवाज़ भी दी. विशाल ने "मकडी" से निर्देशन में कदम रखा, और अगली फ़िल्म "मकबूल" में उन्होंने रेखा से दो बेहद दमदार "रोने दो" और "चिंगारी" गीत गवाए, २००३-०४ में उन्हीं के संगीत निर्देशन में रेखा की पहली चर्चित एल्बम "इश्का इश्का" आई. इससे ठीक दस साल पहले १९९४ में जब रेखा बुल्ले शाह के गीतों पर विशाल के निर्देशन में काम कर रही थी, उन्हीं दिनों माचिस की सिटिंग के लिए उनका गुलज...