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रेशम की डोरी में छुपे अनगिनित एहसास शब्दों में गुंथे

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 10 शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से  अनुराग शर्मा  जी अपने स

रेडियो और रेशम की डोरी

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 54 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नम्स्कार! आज रक्षाबंधन है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मनाता यह त्योहार आप सभी के जीवन में ख़ुशियाँ लेकर आये, यह हमारी शुभकामना है। आप सभी को इस पावन पर्व रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज के इस शनिवार विशेषांक में मैं अपने ही जीवन के का अनुभव आप सभी के साथ बाँटने जा रहा हूँ जो शायद आज के दिन के लिए बहुत सटीक है। किसी नें ठीक ही कहा है कि कुछ रिश्तों को नाम नहीं दिया जा सकता। ये रिश्ते न तो ख़ून के रिश्ते हैं, न ही दोस्ती के, और न ही प्रेम-संबंध के। ये रिश्ते बस यूं ही बन जाया करते हैं। मेरा भी एक ऐसा ही रिश्ता बना है रेडियो की तीन उद्‍घोषिकाओं के साथ, जिनकी आवाज़ें मैं करीब २७-२८ सालों से सुनता चला आ रहा हूँ, पर जिनसे मिलने का मौका अभी पिछले वर्ष ही हुआ। इस रिश्ते की शुरुआत शायद तब हुई जब मैं बस चार साल का था। मेरी माँ स्कूल टीचर हुआ करती थीं जिस वजह से मैं और मेरा बड़ा भाई दोपहर को घर पर अकेले ही होते थे। ८० के दशक के उन शुरुआती सालों में मनोरंजन का एकमात्र ज़रिया रेडियो ही हु

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (११)

नोट - आज से रविवार सुबह की कॉफी में आपकी होस्ट होंगी - दीपाली तिवारी "दिशा" रविवार सुबह की कॉफी का एक और नया अंक लेकर आज हम उपस्तिथ हुए हैं. वैसे तो मन था कि आपकी पसंद के रक्षा बंधन गीत और उनसे जुडी आपकी यादों को ही आज के अंक में संगृहीत करें पर पिछले सप्ताह हुई एक दुखद घटना ने हमें मजबूर किया कि हम शुरुआत करें उस दिवंगत अभिनेत्री की कुछ बातें आपके साथ बांटकर. फिल्म जगत में अपने अभिनय और सौन्दर्य का जादू बिखेर एक मुकाम बनाने वाली अभिनेत्री लीला नायडू को कौन नहीं जानता. उनका फिल्मी सफर बहुत लम्बा तो नहीं था लेकिन उनके अभिनय की धार को "गागर में सागर" की तरह सराहा गया. लीला नायडू ने सन १९५४ में फेमिना मिस इंडिया का खिताब जीता था और "वोग" मैग्जीन ने उन्हें विश्व की सर्वश्रेष्ठ दस सुन्दरियों में स्थान दिया था. लीला नायडू ने अपना फिल्मी सफर मशहूर फिल्मकार ह्रशिकेश मुखर्जी की फिल्म "अनुराधा" से शुरु किया. इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता बलराज साहनी की पत्नि की भूमिका निभायी थी. अनुराधा फिल्म के द्वारा लीला नायडू के अभिनय को सराहा गया और फिल्म को सर्वश्रे