Skip to main content

Posts

Showing posts with the label ustad shafqat ali khan

उस्ताद शफ़कत अली खान की आवाज़ में राधा की "नदिया किनारे मोरा गाँव" की पुकार कुछ अलग हीं असर करती है

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०६ पि छले कुछ हफ़्तों से अगर आपने महफिल को ध्यान से देखा होगा तो महफ़िल पेश करने के तरीके में हुए बदलाव पर आपकी नज़र ज़रूर गई होगी। पहले महफ़िल देर-सबेर १० बजे तक पूरी की पूरी तैयार हो जाती थी और फिर उसके बाद उसमें न कुछ जोड़ा जाता था और न हीं उससे कुछ हटाया जाता था। लेकिन अब १०:३० तक महफ़िल का एक खांका हीं तैयार हो पाता है, जिसमें उस दिन पेश होने वाली नज़्म/ग़ज़ल होती है, उसके बोल होते हैं, फ़नकार के बारे में थोड़ी-सी जानकारी होती है एवं पिछली महफ़िल के गायब हुए शब्द और शेर का ज़िक्र होता है। और इस तरह महफ़िल जब पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं के लिए खोल दी जाती है, उस वक़्त महफ़िल खुद पूरी तरह से रवानी पर नहीं होती। ऐसा लगता है मानो दर्शक फ़नकारों का प्रदर्शन देख रहे हैं लेकिन उस वक़्त मंच पर दरी, चादर, तकिया भी सही से नहीं सजाए गए हैं। ऐसे समय में जो दर्शक एवं श्रोता महफ़िल से लौट जाते हैं और दुबारा नहीं आते, वो महफ़िल का सही मज़ा नहीं ले पाते, उनसे बहुत कुछ छूट जाता है। इसलिए मैं आप सभी प्रियजनों से आग्रह करूँगा कि भले हीं आप बुधवार की सुबह महफ़िल का आनंद ले चुके हों, ...