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इसकी टोपी उसके सर - प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में

स्मृतियों के स्वर - 12 प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में इसकी टोपी उसके सर 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के

संगीतकारों के अग्रणी नामों के पीछे कुछ ऐसे दिग्गज भी थे जिन्हें वो सब नहीं मिल पाया जिसके वो हक़दार थे

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३३ आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में एक बड़ा ही ख़ूबसूरत और दुर्लभ गीत। दुर्लभ इसलिए कि इस गीत के संगीतकार ने अपने करीयर में केवल १४ फ़िल्मों में संगीत दिया। जी हाँ, सज्जाद हुसैन। आज सुनिए उनकी धुन में फ़िल्म 'रुस्तम सोहराब' का गीत "ऐ दिलरुबा नज़रें मिला"। सज्जाद साहब अपने उसूलों पर चलने वाले इंसान थे। उन्होने कभी किसी से कोई समझौता नहीं किया और इस वजह से उन्हे भी बहुत ज़्यादा फ़िल्में नहीं मिली। लेकिन जितने भी फ़िल्मों में उन्होने संगीत दिया वो सभी उच्च कोटी के थे जो उस ज़माने के सभी संगीतकार मानते थे। मैंडोलीन को फ़िल्म संगीत मे लाने का श्रेय भी सज्जाद साहब को ही जाता है। इस साज़ पर उन्होने बहुत शोध किये और उनके बजाये इस साज़ के कई रिकार्ड्स भी निकले और आज उनके तीनों बेटे इस क्षेत्र में अपने पिता के काम को आगे बढ़ा रहे हैं। अपने अलग स्वभाव, अलग 'मूड' और कम काम करने के बावजूद सज्जाद साहब एक बेहतरीन संगीतकार माने गये। अपनी ७९ वर्ष की आयु मे उन्होने अपनी संगीत यात्रा के दौरान अनेक बेशकीमती गीतों की धरोहर तैयार किये हैं जिसे आनेव

दर्शन प्यासी आई दासी...मधुबाला की विनती को स्वर दिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 274 'गी तांजली' में आज बारी है हिंदी फ़िल्म जगत की सब से ख़ूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माए गए गीता रॉय के गाए एक गीत की। गीत का ज़िक्र हम थोड़ी देर में करेंगे, पहले मधुबाला से जुड़ी कुछ बातें हो जाए! मधुबाला का असली नाम था मुमताज़ जहाँ बेग़म दहल्वी। उनका जन्म दिल्ली में एक रूढ़ी वादी पश्तून मुस्लिम परिवार में हुआ था। ११ बच्चों वाले परिवार की वो पाँचवीं औलाद थीं। अपने समकालीन नरगिस और मीना कुमारी की तरह वो भी हिंदी सिनेमा की एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में जानी गईं। अपने नाम की तरह ही उन्होने चारों तरफ़ अपनी की शहद घोली जिसकी मिठास आज की पीढ़ी के लोग भी चखते हैं। मधुबाला की पहली फ़िल्म थी 'बसंत' जो बनी थी सन् '४२ में। इस फ़िल्म में उन्होने नायिका मुमताज़ शांति की बेटी का किरदार निभाया था। उन्हे पहला बड़ा ब्रेक मिला किदार शर्मा की फ़िल्म 'नीलकमल' में जिसमें उनके नायक थे राज कपूर, जिनकी भी बतौर नायक वह पहली फ़िल्म थी। 'नीलकमल' आई थी सन् '४७ में और इसी फ़िल्म से मुमताज़ बन गईं मधुबाला। उस समय उनकी आयु केवल १४ वर्ष ही थी।

ये हवा ये रात ये चांदनी...सज्जाद हुसैन का संगीतबद्ध एक नायाब गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 150 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल दिन-ब-दिन, कड़ी दर कड़ी आगे बढ़ती चली जा रही है दोस्तों। यह आप सब का प्यार और पुराने फ़िल्म संगीत में आप की दिलचस्पी ही है कि इस शृंखला की रोचकता में ज़रा सी भी कमी नहीं आयी है। आज इस शृंखला ने पूरे किए पूरे १५० दिन! आप सब का प्यार युंही बना रहे, तो हम आगे भी आप के पसंदीदा गीतों के इस महफ़िल को युंही रोशन करते रहेंगे। दरअसल यह महफ़िल रोशन है गुज़रे ज़माने के उन लाजवाब कलाकारों की अपार मेहनत और लगन की वजह से जिन्होने फ़िल्म संगीत के धरोहर को समृद्ध किया, उसमें बेशुमार मोतियाँ जड़ें। आज यह धरोहर एक विशाल अनमोल ख़ज़ाने का रूप ले चुकी है, और इसी ख़ज़ाने से चुन चुन कर हम मोतियाँ निकाल कर ला रहे हैं हर रोज़ आप के लिए। आज इस शृंखला की १५० वीं कड़ी के लिए हमने जो गीत चुना है वो फ़िल्म संगीत का एक सदाबहार नग़मा है। इसके संगीतकार ने अपने पूरे जीवन में केवल १४ फ़िल्मों में संगीत दिया है, लेकिन इन १४ फ़िल्मों में उन्होने कुछ ऐसा काम कर दिखाया है कि आज ५० साल बाद भी वो ज़िंदा हैं अपने रचे उन तमाम कालजयी संगीत की वजह से। हम बात कर रहे

ये कैसी अजब दास्ताँ हो गयी है...छुपाते छुपाते बयाँ हो गयी है...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 99 क ल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हमने सुनी थी नूरजहाँ की आवाज़। आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मे भी कल जैसी ही बात है क्यूंकि आज भी हम एक ऐसी 'सिंगिंग स्टार' की आवाज़ आप तक पहुँचा रहे हैं जो अपने ज़माने की सबसे महँगी अभिनेत्री हुआ करती थीं। ४० के दशक की इस मशहूर अदाकारा और गायिका का असर कुछ यूँ था कि उनकी एक झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। एक बार इस अदाकारा की एक फ़िल्म का 'प्रिमीयर' का मौका था, सिनेमाघर के बाहर लोगों की ख़ासी भीड़ जमा हो गयी थी। तो जब ये अदाकारा अंदर जाने लगीं तो लोग उनसे हाथ मिलाने के लिए बेताब हो उठे। हालात बिगड़ते देख वहाँ पुलिस बुलायी गयी। भीड़ को सम्भालने के लिए लाठी-चार्ज भी करना पड़ा। इसके बाद से इस अदाकारा ने फ़िल्मों के 'प्रिमीयर' में जाना ही बंद कर दिया। इसी से इस अदाकारा के चाहनेवालों की दीवानगी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अपनी ख़ूबसूरती, लाजवाब अभिनय और बेहद सुरीली आवाज़ वाली इस 'सिंगिंग स्टार' को हम और आप सुरैय्या के नाम से जानते हैं। ४० के दशक की इस लाजवाब 'सिंगिंग स्टार'