कवर स्टोरी - 01/01/11/2011
दोस्तों "३ इडियट्स" फिल्म याद हैं न आपको. फिल्म का सन्देश भी याद होगा. पर अक्सर हम ये सोचते हैं कि फिल्मों की बात अलग है, कहाँ वास्तविक जीवन में ऐसा होता है कि जमे जमाये करियर को छोड़ कर कोई अपने सपनों का पीछा करने निकल पड़े. पर साथियों, कभी कभी बहुत से फ़िल्मी किरदार हमें वास्तविक दुनिया में हमारे आस पास ही मिल जाते हैं. ऐसे ही एक किरदार से मैं आज आपका परिचय करवाने जा रहा हूँ. ये हैं उभरते हुए अभिनेता आशीष लाल. एक इंजीनियरिंग विद्यार्थी से अभिनेता बने आशीष ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक फुल लेंथ फिल्म बना डाली, जबकि इससे पहले उनमें से किसी का भी बॉलीवुड से कोई रिश्ता नाता नहीं था. आईये आशीष से ही जाने उनकी फिल्म "विथ लव डेल्ही" के बनने की कहानी -
सजीव - आशीष बहुत बहुत स्वागत आपका प्लेबैक इंडिया में...
आशीष – धन्येवाद सजीव, मैं आभारी हूँ रेडियो प्लेबैक का इस इंटरव्यू के लिए
सजीव - सबसे पहले तो मैं ये जानना चाहूँगा कि ये सब शुरू कहाँ से हुआ यानी इस पूरे आइडिये का बीज किसके जेहन में सबसे पहले आया ?
आशीष – ये आइडिया हमारे पार्टनर मानव के जेहन आया कि दिल्ली के खूबसूरत और एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दार्शनिक इमारतों के ऊपर एक लघु फिल्म बनायें, लेकिन मेरा मन फीचर फिल्म में जाने का पक्का था तो मैंने बीड़ा उठाया कि इसे फीचर फिल्म बनाते हैं जो बहुत मनोरंजक भी हो. फिर मैंने स्टोरी का आइडिया सोचा और काम शुरू किया.
सजीव - और आप लोगों ने फैसला किया कि हम एक फूल लेंथ फीचर फिल्म बनायेगें...जबकि आप ये जानते थे कि ये करोड़ों का मामला होने वाला है...आखिर योजना क्या थी और कहाँ ये आया ये हौंसला ?
आशीष – मानव का विचार था कि सरकार हमें वित्तीय सहायता देगी क्योंकि अब तक ३५ मोनुमेंट्स के ऊपर इतने मनोरजक तरीके से किसी ने फिल्म नहीं बनायीं थी. पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ और हमें एक रूपए का निवेशक नहीं मिला. फिर हमने (मैंने, आशुतोष और मानव) ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसा लेकर फिल्म बनानी शुरू कर दी.
सजीव - आप का कहना है कि फिल्म निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने में बहुत से साथियों ने आपकी मदद की, ये कैसे संभव हो पाया ? कैसे आप इतने लोगों को विश्वास में ले पाए ? वो क्या चीज़ थी जिस पर सब को इतना विश्वास था ? जरा विस्तार से बताएं.
आशीष – कुछ करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों ने तो बिना पूछे ही पैसा दे दिया, आपको विश्वास नहीं होगा पर कुछ ने हमारे लिए पर्सनल लोन भी उठाया. इससे फिल्म के पहले वीक तक के शूट का इंतजाम हो गया. फिर कुछ शूट करके हमने एक टीसर बनाया और फेसबुक पे डाला जिसे देखकर लोग पागल हो गए – उनको इतना पसंद आया. इसके बाद हमने लोगों से पैसे मांगे पर्सनली भी और ई मेल के माध्यम से भी. हम खुद आश्चर्यचकित थे कि लोगों को कितना भरोसा है कि अपनी पूरी मिडिल क्लास जमा पूँजी हमारे ड्रीम में लगा दी उन्होंने. लगभग १०० लोगों ने पैसा दिया, कुछ ने ५०००० तो कुछ ने २० लाख भी, पर सभी हमारे मित्र और सगे सम्बन्धी ही थे. कुल साढे ४ करोड की लागत से ये फिल्म बनी है.
सजीव – वाह क्या बात है...आपकी टीम में टॉम आल्टर, सीमा बिस्वास, और किरण कुमार जैसे नामी कलाकार भी जुड़े, इन सब तक कैसे पहुँचाना हुआ और इन सबका का सप्पोर्ट कैसा रहा पूरी फिल्म के निर्माण के दौरान ?
आशीष – स्टोरी लिखने का बाद मैंने एक दो पेज का स्नोप्सिस बनाया और पद्म श्री टॉम अल्टर जी को मेल कर दिया जबकि मेरी उनसे पहचान भी नहीं थी. वो उस समय अमेरिका में थे किसी प्ले के सिलसिले में, उनका जवाब कुछ घंटों में ही आ गया जो कुछ इस प्रकार था - – “ashish -- fascinating concept -- challenging -- will not be easy to shoot, but can be done -- the script is powerful -- go for it -- let me know further details, and if you can shoot in the dates you are available” आप समझ सकते हैं कि हमारी खुशी की सीमा न रही. उसके बाद हमने एक एक्सिक्यूटिव प्रोडूसर रवि सरीन को अपने साथ लिया, जो तीनों खानों (शाहरुख, सलमान और आमिर) की फिल्मों में लाईन प्रोडूसर रह चुके हैं. उन्होंने सीमा बिस्वास और किरण कुमार से मिलने में मदद की लेकिन सिर्फ एक मजबूत और अनूठी स्क्रिप्ट के कारण वो भी मान गए. किरण जी ने तो विशेष रूप से फोन करके बेहतरीन स्क्रिप्ट के लिए बधाई दी.
सजीव - अच्छा अब ये बताईये कि फिल्म का मूल विषय क्या है आपका शीर्षक कहता है कि an intelligent thriller by IITians क्या आप मल्टीप्लेक्स और बौद्धिक वर्ग को ही टारगेट कर रहे हैं यहाँ ?
आशीष – हाँ ये एक इंटेलिजेंट थ्रिल्लर है जिसका मतलब ये बेसिर पैर की फिल्म नहीं है लेकिन ये गाँव का इंसान भी देख सकता है और पसंद कर सकता है क्योंकि मूलतः कहानी अपहरण, दिल्ली के स्मारकों में सुरागों की तलाश, और रोमांटिक थ्रिल्लर थीम पर है जो सबको पसंद आता है.
सजीव - तो चलिए यहाँ ठहरकर हम भी अपने श्रोताओं के साथ फिल्म का ये ट्रेलर देख लें ?
आशीष - जरूर सजीव
सजीव - आपकी तकनीकी टीम काफी सशक्त है...इन सब के सहयोग से जो फाईनल आउट पुट आया उससे टीम जाहिर है काफी संतुष्ट होगी....
आशीष – जी हाँ मैं इस बात को लेकर पहले से ही बहुत सजग था, क्योंकि निर्देशक नए हैं और हम भी नए निर्माता हैं, तो तकनीकी टीम को बहुत सशक्त होना चाहिए. आपको बेहद खुशी होगी, हमारी टेक्नीकल टीम के बारे में जानकार, ये है हमारी टीम –
- National Award Winner Cameraman S.Sriram (2000 - for his film "Blindfolded"; also cinematographer for Tere Naam, Wanted & Shakti)
- Filmfare & Star Screen Awards Winner Editor Namarata Rao (2011 - for Love Sex Aur Dhokha & Band Baaja Baaraat respectively)
- Seasoned Music Director Sanjoy Chowdhury (bgm for Sarfarosh, Jab We Met, Golmaal1-3, Zinda etc.)
- Experienced Associate Producer Ravi Sarin (2011 - awarded Best Line Producer of Delhi; worked for projects like 3 Idiots, Veer Zaara, Rang De Basanti, Chak De! India, Agent Vinod etc.)
सजीव - फिल्म के संगीत के बारे में कुछ बताएं, कितने गाने हैं ? गायक, गीतकार, संगीतकार कौन कौन है ?
आशीष – फिल्म के संगीतकार संजय चौधरी हैं और पार्श्व संगीत भी इन्होने ही किया है. संजय जब वी मेट, सरफ़रोश, ऐ वेडनेसडे, गोलमाल ३, और ६० और फिल्मों के लिए पार्श्व संगीत कर चुके हैं. इस फिल्म में कुल दो गीत हैं. गीतकार हैं अमिताभ वर्मा जिन्होंने "लाईफ इन ए मेट्रो" जैसी फिल्म में "अलविदा अलविदा" जैसे गीत लिखे हैं. गायक हैं शान, सूरज जगन और सारिका लाल. सरिक और शान का एक डांस रोमांटिक युगल गीत है जबकि सूरज जगन (गीव में सम सन शाईन – ३ इडियट्स फेम) ने एक रोक् गीत गाया है. गाने सबने पसंद किये हैं लेकिन रेडियो में सुनाने के लिए पैसे नहीं है. इतनी मेहनत और पैसा जो हमें गाने बनने और शूट करने लगाया उसके लिए बड़ा अफ़सोस होता है कि रेडियो में क्यों नहीं चला पा रहे हैं. बाहर से सब सिम्पल लगता है लेकिन ऐसे प्रोजेक्ट्स में पैसों की तंगी बेहद तकलीफ दायक होती है.
सजीव - आशीष, रेडियो का तो मैं कह नहीं सकता, पर आज हम रेडियो प्लेबैक पर आपका गीत जरूर बजायेंगें. मुझे दरअसल इस गीत का विडियो बहुत अच्छा लगा, तो मैं चाहूँगा कि हमारे श्रोता न सिर्फ सुने बल्कि देखें भी...
आशीष - जी जरूर
आजा आजा जाने जाँ (फिल्म - विथ लव डेल्ही)
सजीव - बतौर अभिनेता ये आपकी पहली फिल्म है, क्या एक्टिंग का शौक शुरू से था ?
आशीष – आई आई टी से पहले सिर्फ पढ़ने और स्पोर्ट्स का शौक था. मैं स्कूल बोर्ड में फर्स्ट रेंकर था और आई आई टी ही मेरा सपना था. आई आई टी दिल्ली आने के बाद मैं थियटर से जुड़ा और ४ साल पढाई के बदले सिर्फ थियटर किया. अभिनय, लेखन से लेकर निर्देशन तक, यहाँ तक कि मुझे आई आई टी डेल्ही के सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का खिताब भी मिला.
फिर नौकरी शुरू की और तीन महीने में समझ गया कि मुझे नौकरी नहीं करनी बल्कि जीवन भर अभिनय ही करना है. नौकरी छोड़ी और चार साल अपनी कंपनी में डोक्युमेंट्री, कॉर्पोरेट, लघु और विज्ञापन फ़िल्में बनाने के बाद ये फीचर फिल्म शुरू की.
सजीव - फिल्म में आपका सबसे पसंदीदा सीन और पसंदीदा गीत कौन सा है ?
आशीष – सबसे पसंदीदा सीन है जब मुझे विल्लन की चुनौती मिलती है कि "कैच मी इफ यू कैन" और मैं उसे ढूँढने निकल पड़ता हूँ
सजीव - फिल्म की प्रोमोशन आजकल एक बड़ा घटक बन चूका है, इस दिशा में आपकी टीम के प्रयास क्या हैं, वितरण क्या देश में ही है या विदेशों में भी कुछ संभावनाएं हैं ?
आशीष – जी बिलकुल सही कहा आपने. मैंने एक ब्लॉग लिखा है कि कैसे हमने पैसे का जुगाड किया इस फिल्म के लिए, लोगों से मांग के तिनका तिनका इकट्टा करके. - www.redlal.blogspot.com. बता नहीं सकता जबकि दो हफ्ते बाद फिल्म रिलीस है, हम आज भी २५०००, ५०००० मांग कर इकट्टा कर रहे हैं फिल्म की प्रोमोशन के लिए. दिल्ली के ३५ स्मारकों और एतिहासिक स्थानों को इतने अच्छे ढंग से दिखाने के बाद भी न सरकार से कोई मदद मिली न किसी बड़े निवेशक से. देश में तो हम रिलीस कर रहे हैं अपने दम पे. विदेश का बही कुछ कह नहीं सकता. टी वी प्रोमोशन्स २७ से शुरू हो चुकी है तो बहुत चैनल और सिनेमा घरों से सन्देश आ रहे हैं क्योंकि वो भी सब स्तब्ध हैं इतनी नई और अनूठी सोच के ट्रेलर्स देख कर. हम बस उम्मीद कर रहे हैं कि कुछ दिनों में कहीं से और पैसा आ जाये ताकि और बढ़िया प्रोमोशन हो सके और रिलीस भी बढ़िया हो जाये. दिल्ली सरकार और टूरिस्म मंत्रालय से हमारा निवेदन है कि हमारी कुछ मदद करें – हम इन सब जगहों पर ऑफिशियल दरख्वास्त दे चुके हैं पर अभी तक कुछ नहीं हुआ
सजीव - आशीष, सचमुच बहुत अच्छा लगा आपके और आपकी टीम के इस एफर्ट के बारे में जानकार और हमें यकीं है कि हमारे श्रोता भी आपको दिल से दुवायें देंगें इस प्रयास के लिए. मैं भी रेडियो प्ले बैक की टीम की तरफ से आपको और फिल्म की पूरी टीम को ढेरों शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए अपने श्रोताओं से भी आग्रह करूँगा कि वो १६ दिसंबर को थियटर में जाएँ और इस युवा टीम के हौंसलों की इस फिल्म को अवश्य देखें...
आशीष – बहुत बहुत धन्येवाद, मैं ये कहना चाहूँगा कि एक आम मिडिल क्लास होते हुए भी, बिना एक भी बॉलीवुड या धनाढयों के संपर्क के, मैंने बॉलीवुड में बतौर एक लीड एक्टर कदम रखा है और फिल्म बनाई है. जो सिर्फ और सिर्फ संभव हुआ है – सैकड़ों चाहने वालों के वित्तीय और इमोशनल सप्पोर्ट के कारण. हमारे देश में अच्छे लोगों की कमी नहीं है ये मैं जान चुका हूँ, और दूसरों के सपनों के लिए भी लोग बहुत कुछ कर जाते हैं. सबका और आपका भी बहुत बहुत दिल से आभार. मैं धन्येवाद करता हूँ रेडियो प्लेबैक इंडिया की पूरी टीम का, कि आपके माध्यम से हमारी ये कहानी आज लोगों तक पहुँच रही है. एक बार फिर दिल से – शुक्रिया.
चित्र परिचय - फिल्म के प्रमुख कलाकार आशीष और परिवा (ऊपर)
फिल्म का पोस्टर (नीचे)
दोस्तों "३ इडियट्स" फिल्म याद हैं न आपको. फिल्म का सन्देश भी याद होगा. पर अक्सर हम ये सोचते हैं कि फिल्मों की बात अलग है, कहाँ वास्तविक जीवन में ऐसा होता है कि जमे जमाये करियर को छोड़ कर कोई अपने सपनों का पीछा करने निकल पड़े. पर साथियों, कभी कभी बहुत से फ़िल्मी किरदार हमें वास्तविक दुनिया में हमारे आस पास ही मिल जाते हैं. ऐसे ही एक किरदार से मैं आज आपका परिचय करवाने जा रहा हूँ. ये हैं उभरते हुए अभिनेता आशीष लाल. एक इंजीनियरिंग विद्यार्थी से अभिनेता बने आशीष ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक फुल लेंथ फिल्म बना डाली, जबकि इससे पहले उनमें से किसी का भी बॉलीवुड से कोई रिश्ता नाता नहीं था. आईये आशीष से ही जाने उनकी फिल्म "विथ लव डेल्ही" के बनने की कहानी -
सजीव - आशीष बहुत बहुत स्वागत आपका प्लेबैक इंडिया में...
आशीष – धन्येवाद सजीव, मैं आभारी हूँ रेडियो प्लेबैक का इस इंटरव्यू के लिए
सजीव - सबसे पहले तो मैं ये जानना चाहूँगा कि ये सब शुरू कहाँ से हुआ यानी इस पूरे आइडिये का बीज किसके जेहन में सबसे पहले आया ?
आशीष – ये आइडिया हमारे पार्टनर मानव के जेहन आया कि दिल्ली के खूबसूरत और एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दार्शनिक इमारतों के ऊपर एक लघु फिल्म बनायें, लेकिन मेरा मन फीचर फिल्म में जाने का पक्का था तो मैंने बीड़ा उठाया कि इसे फीचर फिल्म बनाते हैं जो बहुत मनोरंजक भी हो. फिर मैंने स्टोरी का आइडिया सोचा और काम शुरू किया.
सजीव - और आप लोगों ने फैसला किया कि हम एक फूल लेंथ फीचर फिल्म बनायेगें...जबकि आप ये जानते थे कि ये करोड़ों का मामला होने वाला है...आखिर योजना क्या थी और कहाँ ये आया ये हौंसला ?
आशीष – मानव का विचार था कि सरकार हमें वित्तीय सहायता देगी क्योंकि अब तक ३५ मोनुमेंट्स के ऊपर इतने मनोरजक तरीके से किसी ने फिल्म नहीं बनायीं थी. पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ और हमें एक रूपए का निवेशक नहीं मिला. फिर हमने (मैंने, आशुतोष और मानव) ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसा लेकर फिल्म बनानी शुरू कर दी.
सजीव - आप का कहना है कि फिल्म निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने में बहुत से साथियों ने आपकी मदद की, ये कैसे संभव हो पाया ? कैसे आप इतने लोगों को विश्वास में ले पाए ? वो क्या चीज़ थी जिस पर सब को इतना विश्वास था ? जरा विस्तार से बताएं.
आशीष – कुछ करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों ने तो बिना पूछे ही पैसा दे दिया, आपको विश्वास नहीं होगा पर कुछ ने हमारे लिए पर्सनल लोन भी उठाया. इससे फिल्म के पहले वीक तक के शूट का इंतजाम हो गया. फिर कुछ शूट करके हमने एक टीसर बनाया और फेसबुक पे डाला जिसे देखकर लोग पागल हो गए – उनको इतना पसंद आया. इसके बाद हमने लोगों से पैसे मांगे पर्सनली भी और ई मेल के माध्यम से भी. हम खुद आश्चर्यचकित थे कि लोगों को कितना भरोसा है कि अपनी पूरी मिडिल क्लास जमा पूँजी हमारे ड्रीम में लगा दी उन्होंने. लगभग १०० लोगों ने पैसा दिया, कुछ ने ५०००० तो कुछ ने २० लाख भी, पर सभी हमारे मित्र और सगे सम्बन्धी ही थे. कुल साढे ४ करोड की लागत से ये फिल्म बनी है.
सजीव – वाह क्या बात है...आपकी टीम में टॉम आल्टर, सीमा बिस्वास, और किरण कुमार जैसे नामी कलाकार भी जुड़े, इन सब तक कैसे पहुँचाना हुआ और इन सबका का सप्पोर्ट कैसा रहा पूरी फिल्म के निर्माण के दौरान ?
आशीष – स्टोरी लिखने का बाद मैंने एक दो पेज का स्नोप्सिस बनाया और पद्म श्री टॉम अल्टर जी को मेल कर दिया जबकि मेरी उनसे पहचान भी नहीं थी. वो उस समय अमेरिका में थे किसी प्ले के सिलसिले में, उनका जवाब कुछ घंटों में ही आ गया जो कुछ इस प्रकार था - – “ashish -- fascinating concept -- challenging -- will not be easy to shoot, but can be done -- the script is powerful -- go for it -- let me know further details, and if you can shoot in the dates you are available” आप समझ सकते हैं कि हमारी खुशी की सीमा न रही. उसके बाद हमने एक एक्सिक्यूटिव प्रोडूसर रवि सरीन को अपने साथ लिया, जो तीनों खानों (शाहरुख, सलमान और आमिर) की फिल्मों में लाईन प्रोडूसर रह चुके हैं. उन्होंने सीमा बिस्वास और किरण कुमार से मिलने में मदद की लेकिन सिर्फ एक मजबूत और अनूठी स्क्रिप्ट के कारण वो भी मान गए. किरण जी ने तो विशेष रूप से फोन करके बेहतरीन स्क्रिप्ट के लिए बधाई दी.
सजीव - अच्छा अब ये बताईये कि फिल्म का मूल विषय क्या है आपका शीर्षक कहता है कि an intelligent thriller by IITians क्या आप मल्टीप्लेक्स और बौद्धिक वर्ग को ही टारगेट कर रहे हैं यहाँ ?
आशीष – हाँ ये एक इंटेलिजेंट थ्रिल्लर है जिसका मतलब ये बेसिर पैर की फिल्म नहीं है लेकिन ये गाँव का इंसान भी देख सकता है और पसंद कर सकता है क्योंकि मूलतः कहानी अपहरण, दिल्ली के स्मारकों में सुरागों की तलाश, और रोमांटिक थ्रिल्लर थीम पर है जो सबको पसंद आता है.
सजीव - तो चलिए यहाँ ठहरकर हम भी अपने श्रोताओं के साथ फिल्म का ये ट्रेलर देख लें ?
आशीष - जरूर सजीव
सजीव - आपकी तकनीकी टीम काफी सशक्त है...इन सब के सहयोग से जो फाईनल आउट पुट आया उससे टीम जाहिर है काफी संतुष्ट होगी....
आशीष – जी हाँ मैं इस बात को लेकर पहले से ही बहुत सजग था, क्योंकि निर्देशक नए हैं और हम भी नए निर्माता हैं, तो तकनीकी टीम को बहुत सशक्त होना चाहिए. आपको बेहद खुशी होगी, हमारी टेक्नीकल टीम के बारे में जानकार, ये है हमारी टीम –
- National Award Winner Cameraman S.Sriram (2000 - for his film "Blindfolded"; also cinematographer for Tere Naam, Wanted & Shakti)
- Filmfare & Star Screen Awards Winner Editor Namarata Rao (2011 - for Love Sex Aur Dhokha & Band Baaja Baaraat respectively)
- Seasoned Music Director Sanjoy Chowdhury (bgm for Sarfarosh, Jab We Met, Golmaal1-3, Zinda etc.)
- Experienced Associate Producer Ravi Sarin (2011 - awarded Best Line Producer of Delhi; worked for projects like 3 Idiots, Veer Zaara, Rang De Basanti, Chak De! India, Agent Vinod etc.)
सजीव - फिल्म के संगीत के बारे में कुछ बताएं, कितने गाने हैं ? गायक, गीतकार, संगीतकार कौन कौन है ?
आशीष – फिल्म के संगीतकार संजय चौधरी हैं और पार्श्व संगीत भी इन्होने ही किया है. संजय जब वी मेट, सरफ़रोश, ऐ वेडनेसडे, गोलमाल ३, और ६० और फिल्मों के लिए पार्श्व संगीत कर चुके हैं. इस फिल्म में कुल दो गीत हैं. गीतकार हैं अमिताभ वर्मा जिन्होंने "लाईफ इन ए मेट्रो" जैसी फिल्म में "अलविदा अलविदा" जैसे गीत लिखे हैं. गायक हैं शान, सूरज जगन और सारिका लाल. सरिक और शान का एक डांस रोमांटिक युगल गीत है जबकि सूरज जगन (गीव में सम सन शाईन – ३ इडियट्स फेम) ने एक रोक् गीत गाया है. गाने सबने पसंद किये हैं लेकिन रेडियो में सुनाने के लिए पैसे नहीं है. इतनी मेहनत और पैसा जो हमें गाने बनने और शूट करने लगाया उसके लिए बड़ा अफ़सोस होता है कि रेडियो में क्यों नहीं चला पा रहे हैं. बाहर से सब सिम्पल लगता है लेकिन ऐसे प्रोजेक्ट्स में पैसों की तंगी बेहद तकलीफ दायक होती है.
सजीव - आशीष, रेडियो का तो मैं कह नहीं सकता, पर आज हम रेडियो प्लेबैक पर आपका गीत जरूर बजायेंगें. मुझे दरअसल इस गीत का विडियो बहुत अच्छा लगा, तो मैं चाहूँगा कि हमारे श्रोता न सिर्फ सुने बल्कि देखें भी...
आशीष - जी जरूर
आजा आजा जाने जाँ (फिल्म - विथ लव डेल्ही)
सजीव - बतौर अभिनेता ये आपकी पहली फिल्म है, क्या एक्टिंग का शौक शुरू से था ?
आशीष – आई आई टी से पहले सिर्फ पढ़ने और स्पोर्ट्स का शौक था. मैं स्कूल बोर्ड में फर्स्ट रेंकर था और आई आई टी ही मेरा सपना था. आई आई टी दिल्ली आने के बाद मैं थियटर से जुड़ा और ४ साल पढाई के बदले सिर्फ थियटर किया. अभिनय, लेखन से लेकर निर्देशन तक, यहाँ तक कि मुझे आई आई टी डेल्ही के सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का खिताब भी मिला.
फिर नौकरी शुरू की और तीन महीने में समझ गया कि मुझे नौकरी नहीं करनी बल्कि जीवन भर अभिनय ही करना है. नौकरी छोड़ी और चार साल अपनी कंपनी में डोक्युमेंट्री, कॉर्पोरेट, लघु और विज्ञापन फ़िल्में बनाने के बाद ये फीचर फिल्म शुरू की.
सजीव - फिल्म में आपका सबसे पसंदीदा सीन और पसंदीदा गीत कौन सा है ?
आशीष – सबसे पसंदीदा सीन है जब मुझे विल्लन की चुनौती मिलती है कि "कैच मी इफ यू कैन" और मैं उसे ढूँढने निकल पड़ता हूँ
सजीव - फिल्म की प्रोमोशन आजकल एक बड़ा घटक बन चूका है, इस दिशा में आपकी टीम के प्रयास क्या हैं, वितरण क्या देश में ही है या विदेशों में भी कुछ संभावनाएं हैं ?
आशीष – जी बिलकुल सही कहा आपने. मैंने एक ब्लॉग लिखा है कि कैसे हमने पैसे का जुगाड किया इस फिल्म के लिए, लोगों से मांग के तिनका तिनका इकट्टा करके. - www.redlal.blogspot.com. बता नहीं सकता जबकि दो हफ्ते बाद फिल्म रिलीस है, हम आज भी २५०००, ५०००० मांग कर इकट्टा कर रहे हैं फिल्म की प्रोमोशन के लिए. दिल्ली के ३५ स्मारकों और एतिहासिक स्थानों को इतने अच्छे ढंग से दिखाने के बाद भी न सरकार से कोई मदद मिली न किसी बड़े निवेशक से. देश में तो हम रिलीस कर रहे हैं अपने दम पे. विदेश का बही कुछ कह नहीं सकता. टी वी प्रोमोशन्स २७ से शुरू हो चुकी है तो बहुत चैनल और सिनेमा घरों से सन्देश आ रहे हैं क्योंकि वो भी सब स्तब्ध हैं इतनी नई और अनूठी सोच के ट्रेलर्स देख कर. हम बस उम्मीद कर रहे हैं कि कुछ दिनों में कहीं से और पैसा आ जाये ताकि और बढ़िया प्रोमोशन हो सके और रिलीस भी बढ़िया हो जाये. दिल्ली सरकार और टूरिस्म मंत्रालय से हमारा निवेदन है कि हमारी कुछ मदद करें – हम इन सब जगहों पर ऑफिशियल दरख्वास्त दे चुके हैं पर अभी तक कुछ नहीं हुआ
सजीव - आशीष, सचमुच बहुत अच्छा लगा आपके और आपकी टीम के इस एफर्ट के बारे में जानकार और हमें यकीं है कि हमारे श्रोता भी आपको दिल से दुवायें देंगें इस प्रयास के लिए. मैं भी रेडियो प्ले बैक की टीम की तरफ से आपको और फिल्म की पूरी टीम को ढेरों शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए अपने श्रोताओं से भी आग्रह करूँगा कि वो १६ दिसंबर को थियटर में जाएँ और इस युवा टीम के हौंसलों की इस फिल्म को अवश्य देखें...
आशीष – बहुत बहुत धन्येवाद, मैं ये कहना चाहूँगा कि एक आम मिडिल क्लास होते हुए भी, बिना एक भी बॉलीवुड या धनाढयों के संपर्क के, मैंने बॉलीवुड में बतौर एक लीड एक्टर कदम रखा है और फिल्म बनाई है. जो सिर्फ और सिर्फ संभव हुआ है – सैकड़ों चाहने वालों के वित्तीय और इमोशनल सप्पोर्ट के कारण. हमारे देश में अच्छे लोगों की कमी नहीं है ये मैं जान चुका हूँ, और दूसरों के सपनों के लिए भी लोग बहुत कुछ कर जाते हैं. सबका और आपका भी बहुत बहुत दिल से आभार. मैं धन्येवाद करता हूँ रेडियो प्लेबैक इंडिया की पूरी टीम का, कि आपके माध्यम से हमारी ये कहानी आज लोगों तक पहुँच रही है. एक बार फिर दिल से – शुक्रिया.
चित्र परिचय - फिल्म के प्रमुख कलाकार आशीष और परिवा (ऊपर)
फिल्म का पोस्टर (नीचे)
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