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Showing posts with the label Kuhoo Gupta

Laxmikant Pyarelal : Music Forever | Ajay Poundarik | Sajeev Sarathie | Kuhoo Gupta | Rafique Shaikh | Susheel P | Hricha Debraj

एक मुलाकात जरूरी है के 30 वें एपिसोड में आज मिलिये लक्ष्मीकांत प्यारेलाल म्यूजिक फॉरेवर के लेखक अजय पौंडरिक से , जिनके माध्यम से आज हम समझने की कोशिश करेगें हिन्दी फिल्म संगीत जगत के दिग्गज संगीतकार जोड़ी के अद्भुत संगीत सफर की चार दशक लंबी यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों को भी , आज के एपिसोड को और भी खास बना रहे हैं , ऋचा देबराज , रफ़ीक़ शेख , सुशील पी , और कुहू गुप्ता , महान संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों को अपनी आवाज से सजा कर। इन सब तक आपका खूब सारा प्यार पहुंचे , तो मिलिये लेखक अजय पौंडरिक से  आज की जरूरी मुलाकात में, होस्ट हैं आपका दोस्त आपका साथी सजीव सारथी।  Technical Support Sangya Tandon  सुनिए  YouTube  पर  Spotify Amazon music   Google Podcasts Apple Podcasts Gaana JioSaavn हम से जुड़ सकते हैं - facebook  instagram  YouTube  To Join the Ek Mulkaat Zaroori Hai  team, please write to sajeevsarathie@gmail.com  Hope you like this initiative, give us your feedback on radioplaybackdotin@gmail.com ...

रेडियो प्लेबैक आर्टिस्ट ऑफ द मंथ - कुहू गुप्ता

कुहू गुप्ता  कवर गीतों से लेकर ढेरों ओरिजिनल गीतों को अपनी आवाज़ से सजाया है कुहू ने, इन्टरनेट पर सक्रिय अनेकों संगीतकारों की धुनों में अपनी आवाज़ का रंग भरने वाली गायिका कुहू गुप्ता है रेडियो प्लेबैक की आर्टिस्ट ऑफ द मंथ...अपने अब तक के करियर के कुछ यादगार गीत और गायन के अपने खट्टे मीठे अनुभव बाँट रही है आपके साथ गायिका कुहू गुप्ता.

ग्यारह हो हमारा, देश का यही है आज नारा -ठोंक दे किल्ली टीम इंडिया....करोड़ों भारतीयों की आवाज़ को सुरों में पिरोया देश विदेश में बसे संगीत योद्धाओं ने

Awaaz mahotsav World Cup Cricket 2011 Special Song आज मीरपुर में भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप पर २८ सालों बाद बेहद मजबूती के साथ अपनी दावेदारी पेश करने उतरेगी....आज पूरा देश उन्हें शुभकामनाएँ दे रहा है. दोस्तों क्रिकेट हमारे देश में किसी धर्म से कम नहीं है, और विश्व कप उन खास मौकों में से एक है जब पूरा देश एक सूत्र में बंध जाता है, सब एक दूसरे से बस यही पूछते नज़र आते है -"स्कोर क्या है ?". जब जीत हार एक खेल से बढ़ कर कुछ हो जाए, जब करोड़ों धड़कनों की दुआ बस एक हो जाए, तो छाना लाजमी ही है - जीत का जूनून. इसी जीत के जज्बे को सलाम करने उतरे हैं आज हिंद युग्म के कुछ नए तो कुछ तजुर्बेकार सिपाह सलार...वहाँ मैदाने जंग में जब भारत के ११ खिलाड़ी अपने हुनर का दम लगायेंगें वहीं करोड़ों दर्शक एक सुर में गायेंगें....क्या ? अरे घबराईये नहीं, हम लाये हैं एक ऐसा गीत जो २ अप्रैल तक हर क्रिकेट प्रेमी की जुबान पे होगा, हर मैच से पहले और बाद में हर कोई बस यही गुनगुनाएगा...."ठोंक दे किल्ली टीम इंडिया"...आपके शब्दों को सुरों में ढाल कर आज हिंद युग्म गर्व से पेश करता है टीम इंडिया को शुभक...

Go Green- दुनिया और पर्यावरण बचाने की अपील- आवाज़ का एक अंतरराष्ट्रीय गीत

हिन्द-युग्म ने इंटरनेट की दुनिया में शुक्रवार की एक नई परम्परा विकसित की है, जिसके अंतर्गत शुक्रवार के दिन इंटरनेटीय जुगलबंदी से रचे गये संगीतबद्ध गीत का विश्वव्यापी प्रदर्शन होता है। हिन्द-युग्म ने संगीत की इस नई और अनूठी परम्परा को देश से निकालकर विदेश में भी स्थापित किया है। वर्ष 2009 में आवाज़ ने भारत में स्थित रूसी दूतावास के लिए भारत-रूस मित्रता के लिए एक गीत 'द्रुज्बा' बनाया था। वह हमारा पहला प्रोजेक्ट था जिसमें हमने एक से अधिक देश की संवेदनाओं को सुरबद्ध किया था। आज हम एक ऐसा गीत लेकर आये हैं, जिसमें अंतर्निहित संवेदनाएँ, चिंताएँ और सम्भावनाएँ वैश्विक हैं। पूरी दुनिया हरियाली के भविष्य को लेकर चिंतित है। यह चिंता पर्यावरणवादियों को खाये जा रही है कि बहुत जल्द पुरी दुनिया फेफड़े भर हवा के लिए मरेगी-कटेगी। हम सब की यह जिम्मेदारी है कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को हम कम से कम एक ऐसी दुनिया दे जिसमें हवा-पानी की लड़ाई न हो। शायद इसीलए जो थोड़ा भी संजीदा है, वे 'गो ग्रीन' के साथ है। हमने इस बार फ्यूजन के माध्यम से इसी संदेश को ताज़ा किया है। शास्त्रीय संगीत और पश्विमी ...

गाँव से लायी एक सुरीला सपना रश्मि प्रभा और जिसे मिलकर संवार रहे हैं ऋषि, कुहू, श्रीराम और सुमन सिन्हा

दोस्तों, आपने गौर किया होगा कि एक दो शुक्रवारों से हम कोई नया गीत अपलोड नहीं कर रहे हैं. दरअसल बहुत से गीत हैं जिन पर काम चल रहा है, पर ऑनलाइन गठबंधन की कुछ अपनी मजबूरियां भी होती है, जिनके चलते बहुत से गीत अधर में फंस जाते हैं. पर हम आपको बता दें कि आवाज़ महोत्सव का तीसरा सत्र जारी है और अगला नया गीत आप जल्द ही सुनेंगें. इन सब नए गीतों के निर्माण के अलावा भी कुछ प्रोजेक्ट्स हैं जिन पर आवाज़ की टीम पूरी तन्मयता से काम कर रही है. ऐसे ही एक प्रोजेक्ट् से आईये आपका परिचय कराएँ आज. युग्म से जुड़े सबसे पहले संगीतकार ऋषि एस एक बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार हैं, इस बात का अंदाजा, हर सत्र में प्रकाशित उनके गीतों को सुनकर अब तक हमारे सभी श्रोताओं को भी हो गया होगा. आमतौर पर आजकल संगीतकार धुन पहले रचते हैं, ऐसे में दिए हुए शब्दों को धुन पर बिठाना और उसमें जरूरी भाव भरना एक दुर्लभ गुण ही है, और उससे भी दुर्लभ है गुण, शुद्ध कविताओं को स्वरबद्ध करने का. अमूमन गीत एक खास खांचे में लिखे जाते हैं ताकि धुन आसानी से बिठाई जा सके, पर जब कवि कविता लिखता है तो वह इन सब बंधनों से दूर रहकर अपने मन को शब्दों में ...

ये इंतज़ार बड़ा मुश्किल, कितनी हीं रंगीं हो महफ़िल...महसूस किया कुहू ने रूचि और वेंकटेश के साथ

Season 3 of new Music, Song # 18 नए गीतों से रोशन आवाज़ महोत्सव २०१० में आज बारी है १८ वें गीत की, और आज फिर उसी गायिका की आवाज़ से रोशन है ये महफ़िल जो पहले ही इस सत्र में ५ गीतों को अपनी आवाज़ दे चुकी हैं, जी हाँ आपने सही पहचाना ये उभरती हुई बेहद प्रतिभशाली गायिका है कुहू गुप्ता, जिन पर पूरे आवाज़ परिवार को नाज़ है, तभी तो वो हर उभरते हुए संगीतकार की पहली पसंद बन चुकी हैं आज. आज का गीत कुछ शास्त्रीय रंग लिए हुए है जिसके माध्यम से पहली बार आवाज़ के मंच पर उतर रहे हैं एक हुनरमंद संगीतकार और एक बेहद नयी गीतकारा. संगीतकार वेंकटेश शंकरण हैं जिनका परिचय आप नीचे पढ़ सकते हैं, गीत को लिखा है रूचि लाम्बा ने. निलंजन नंदी ने गीत का संयोजन किया है. हमें पूरा यकीन है बेहद मधुर और बेहद कर्णप्रिय इस गीत को आप हमेशा अपने संकलन में रखना चाह्गें. तो सुनिए ये गीत गीत के बोल - कुछ ना भाये मन को मेरे, हर पल देखूँ सपने तेरे, तेरे , तेरे जिया लागे ना, तेरे बिन.. जिया लागे ना, नहीं लागे लागे, नहीं लागे लागे, जिया लागे ना, तेरे बिन, नींद आवे ना, नैना जागे जागे, नैना जागे जागे, नींद आवे ना, तेरे बिन, जिया ल...

बिन तोड़े पीसे कड़वी सुपारी का स्वाद चखा कुहू, वी डी और ऋषि ने मिलकर

Season 3 of new Music, Song # 13 देखते ही देखते आवाज़ संगीत महोत्सव अपने तीसरे संस्करण में तेरहवें गीत पर आ पहुंचा है, हमारे बहुत से श्रोताओं की शिकायत रही है कि हम कुछ ऐसे गीत नहीं प्रस्तुत करते जो आज कल के फ़िल्मी गीतों को टक्कर दे सकें, तो इसे हमारे संगीतकारों ने एक चुनौती के तौर पर लिया है, और आपने गौर किया होगा कि इस सत्र में हमने बहुत से नए जोनरों पर नए तजुर्बे किये हैं. ऐसी ही एक कोशिश आज हो रही है, एक फ़िल्मी आइटम गीत जैसा कुछ रचने की, पर यहाँ भी हमने अपनी साख नहीं खोयी है. "बाबूजी धीरे चलना" से "बीडी जलाई ले" तक जाने कितने ऐसे आइटम गीत बने हैं जो सरल होते हुए भी कहीं न कहीं गहरी चोट करते है. ये गीत भी कुछ उसी श्रेणी का है. दोस्तों, इश्क मोहब्बत को फ़िल्मी गीतकारों ने दशकों से नयी नयी परिभाषाओं में बाँधा है, हमारे "इन हाउस" गीतकार विश्व दीपक तन्हा ने भी एक नया नाम दिया है इस गीत में मोहब्बत को. ऋषि एस, जो अमूमन अपने मेलोडियस गीतों के लिए जाने जाते हैं एक अलग ही दुनिया रचते हैं इस गीत में, और कुहू अपनी आवाज़ का एक बिलकुल ही नया रंग लेकर उतर जाती है ...

सडकें छोटी थीं, दिल बड़े थे, उस शहर के जहाँ इत्तेफ़ाकन मिले थे नितिन, उन्नी और कुहू

Season 3 of new Music, Song # 12 आज बेहद गर्व के साथ हम युग्म के इस मंच पर पेश कर रहे हैं, दो नए फनकारों को, संगीतकार नितिन दुबे संगीत रचेता होने के साथ-साथ एक संवेदनशील गीतकार भी हैं, जिन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को शब्दों और सुरों में पिरो कर एक गीत बनाया, जिसे स्वर देने के लिए उतरे आज के दूसरे नए फनकार उन्नीकृष्णन के बी, जिनका साथ दिया है। इस गीत में महिला स्वरों के लिए सब संगीतकारों की पहली पसंद बन चुकी गायिका कुहू गुप्ता। कुहू और उन्नी के स्वरों में ये गीत यक़ीनन आपको संगीत के उस पुराने सुहाने दौर की याद दिला देगा, जब अच्छे शब्द और मधुर संगीत से सजे युगल गीत हर जुबाँ पर चढ़े होते थे. सुनिए और आनंद लीजिए. गीत के बोल - एक शहर था जिसके सीने में सडकें छोटी थीं, दिल बड़े थे उस शहर से, भरी दोपहर में मैं अकेला चला था इस अकेले सफ़र पे मैं अकेला चला था इस अकेले सफ़र पे क्या हसीं इत्तफाक था बन गए हमसफ़र तुम मेरे दिल के, एक कोने में गहरे कोहरे थे, मुद्दतों से फिर मौसम खुला, तुम दिखे थे पास आकर रुके थे साथ मिलकर चले थे तन्हा ये काफिला था लम्बे ये फासले थे क्या हसीं इत्तफाक था बन गए हमसफ़र...

गीत कभी बूढ़े नहीं होते, उनके चेहरों पर कभी झुर्रियाँ नहीं पड़ती...सच ही तो कहा था गुलज़ार साहब ने

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४४ गु लज़ार, राहुल देव बर्मन, आशा भोसले। ७० के दशक के आख़िर से लेकर ८० के दशक के मध्य भाग तक इस तिकड़ी ने फ़िल्म सम्गीत को एक से एक यादगार गीत दिए हैं। लेकिन इनमें जिस फ़िल्म के गानें सब से ज़्यादा सुने और पसंद किए गए, वह फ़िल्म थी 'इजाज़त'। इस फ़िल्म में आशा जी का गाया हर एक गीत कालजयी साबित हुआ। ख़ास कर "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है"। गुलज़ार साहब ने शब्दों के ऐसे ऐसे जाल बुने हैं इस गीत में कि ये बस वो ही कर सकते हैं। चाहे ख़त में लिपटी रात हो या एक अकेली छतरी में आधे आधे भीगना, या युं कहें कि मन का आधा आधा भीगना, सूखे वाले हिस्से का घर ले आना और गिले मन को बिस्तर के पास छोड़ आना, इस तरह के ऒब्ज़र्वेशन और कल्पना गुलज़ार साहब के अलावा कोई दूसरा आज तक नहीं कर पाया है। विविध भारती में गुलज़ार साहब एक बार 'जयमाला' कार्यक्रम में यह गीत बजाया था। तो उन्होने अपने ही शायराना अंदाज़ में इस गीत को पेश करने से पहले कुछ इस तरह से कहे थे - "दिल में ऐसे संभलते हैं ग़म जैसे कोई ज़ेवर संभालता है। टूट गए, नाराज़ हो गए, अंगूठी उतारी, वा...

क्या लता जी की आवाज़ से भी अधिक दिव्य और मधुर कुछ हो सकता है कानों के लिए

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४२ 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज हम जिस गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न लेकर आए हैं, वह है सन् १९९१ में बनी फ़िल्म 'लेकिन' से। हृदयनाथ मंगेशकर द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को लता जी ने गाया था। ९० के दशक के शुरु शुरु में आई इस फ़िल्म के गीतों के माध्यम से लता जी ने यह एक बार फिर से साबित किया था कि इस नए दशक में भी अगर वो चाहें तो राज कर सकती हैं। लता जी ने सन् १९८३ में विविध भारती पर जयमाला कार्यक्रम प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होने कुल ९ गीतों में से ५ गानें उन्होने अपने भाई हृदयनाथ के चुने। इनमें से एक गीत तो मराठी में था, बाक़ी के गानें थे "मुझे तुम याद करना और मुझको याद आना तुम" (मशाल), "तुम आशा विश्वास हमारे" (सुबह), "फ़ुटपाथों के हम रहनेवाले" (मशाल) तथा "ये आँखें देख कर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं" (धनवान)। उसी कार्यक्रम में लता जी ने हृदयनाथ जी के बारे में यह कहा था - "मुझे कुछ ऐसा लग रहा है कि हृदयनाथ पर एक ठप्पा लग गया है ग़ैर फ़िल्मी गीत कॊम्पोज़ करने का, या फिर उनके गानों में क्लासिकल म्युज़िक की प्रच...

मजरूह, साहिर जैसे नामी गिरामी शायरों ने भी एक लंबी पारी खेली बतौर गीतकार

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३1 'ओ ल्ड इस गोल्ड रिवाइवल' के अंतरगत आप कुल ४५ गानें सुन रहे हैं इन दिनों एक के बाद एक, और इस शृंखला का दो तिहाई हिस्सा पूरी कर चुके हैं। यानी कि ३० गीत हम सुन चुके हैं और अभी १५ गानें और सुनवाने हैं। हम उम्मीद करते हैं कि ये कवर वर्ज़न्स आप को अच्छे लग रहे होंगे। तो इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज एक हंगामाख़ेज गीत जिसे राहुल देव बर्मन के पाश्चात्य शैली के गीतों की श्रेणी में सब से उपर रखा जाता है। जी हाँ, फ़िल्म 'कारवाँ' का "पिया तू अब तो आजा"। मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गीत को लिखा था और आशा भोसले के साथ साथ पंचम ने भी "मोनिका ओ माइ डार्लिंग्" की आवाज़ लगाई थी इस गाने में। इस सेन्सुयस गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न आज हम सुनने जा रहे हैं, लेकिन उससे पहले आपको यह बता दें कि 'कारवाँ' नासिर हुसैन की फ़िल्म थी। मुझे विकिपीडिया पर मजरूह साहब के जीवनी पर नज़र दौड़ाते हुए यह बात पता चली (वैसे मैं इसकी पुष्टि नहीं कर सकता) कि 'तीसरी मंज़िल' के लिए राहुल देव बर्मन को बतौर संगीतकार नियुक्त करने के निर्णय में मजरूह साहब का बड...

कुछ गीत इंडस्ट्री में ऐसे भी बने जिनका सम्बन्ध केवल फिल्म और उसके किरदारों तक सीमित नहीं था...

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २४ "चै न से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"। फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' का यह दिल को छू लेने वाला गीत आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की महफ़िल को रोशन कर रहा है। ओ. पी. नय्यर और आशा भोसले ने साथ साथ फ़िल्म संगीत में एक लम्बी पारी खेली है। करीब करीब १५ सालों तक एक के बाद एक सुपर डुपर हिट गानें ये दोनों देते चले आए हैं। कहा जाता है कि प्रोफ़ेशनल से कुछ हद तक उनका रिश्ता पर्सनल भी हो गया था। ७० के दशक के आते आते जब नय्यर साहब का स्थान शिखर से डगमगा रहा था, उन दिनों दोनों के बीच भी मतभेद होने शुरु हो गए थे। दोनों ही अपने अपने उसूलों के पक्के। फलस्वरूप, दोनों ने एक दूसरे से किनारा कर लिया सन् १९७२ में। इसके ठीक कुछ दिन पहले ही इस गीत की रिकार्डिंग् हुई थी। दोनों के बीच चाहे कुछ भी मतभेद चल रहा हो, दोनों ने ही प्रोफ़ेशनलिज़्म का उदाहरण प्रस्तुत किया और गीत में जान डाल दी। फ़िल्म के रिलीज़ होने के पहले ही इस फ़िल्म के गानें चारों तरफ़ छा गए। ख़ास कर यह गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हो गया था कि फ़िल्मफ़ेयर ...

फ़िल्मी गीतों के सुन्दर फिल्मांकन में उनकी लोकेशन की भी अहम भूमिका रही है फिर चाहे वो देसी हो या विदेशी

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १९ १९६४ शक्ति सामंत के फ़िल्मी सफ़र का एक महत्वपूर्ण साल रहा क्युंकि इसी साल आयी थी फ़िल्म 'कश्मीर की कली'। शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर अभिनीत इस फ़िल्म ने उनके पहले की सभी फ़िल्मों को पीछे छोड़ दिया था कामयाबी की दृष्टि से। इस फ़िल्म में शक्तिदा ने पहली बार शर्मिला टैगोर को हिंदी फ़िल्मों में ले आये थे। हुआ यह था कि शक्तिदा एक बार किसी बंगला पत्रिका में शर्मिला की तस्वीर देख ली थी और वो उन्हे पसंद आ गयी। शक्तिदा ने उनके पिताजी को फोन किया और उनके पिताजी ने यह भी कहा कि अगर कहानी अच्छी है तो उनकी बेटी ज़रूर काम करेगी। बस फिर क्या था, तीन फ़िल्म वितरकों को साथ में लेकर शक्तिदा शर्मिला से मिलने उनके घर जा पहुँचे। उन फ़िल्म वितरकों को शर्मिला कुछ ख़ास नहीं लगी, लेकिन शक्तिदा को अपनी पसंद पर पूरा विश्वास था और उन्हे अपने फ़िल्म के लिए चुन लिया। फ़िल्म की शूटिंग शुरु हुई और पहले ही दिन शर्मिला का शम्मी कपूर और शक्तिदा से अच्छी दोस्ती हो गई। फ़िल्म की पूरी युनिट कश्मीर पहुंची और उनका डल झील के ७ या ८ 'हाउस बोट्स' में ठहरने का इंतज़ाम हुआ। युनिट के ब...