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"दिल आने के ढंग निराले हैं" - वाक़ई निराला था ख़ुर्शीद अनवर का संगीत जिनकी आज १०१-वीं जयन्ती है!

पूरे पंजाब विश्वविद्यालय में एम.ए दर्शनशास्त्र में प्रथम आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में सफल होने के बावजूद साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को चुना था ख़ुर्शीद अनवर ने। अपनी मेधा को संगीत क्षेत्र में ला कर अत्यन्त कर्णप्रिय धुनें उन्होंने बनाई। २१ मार्च १९१२ को जन्मे ख़ुर्शीद अनवर की आज १०१-वीं जयन्ती है। इस उपलक्ष्य पर उनके द्वारा रचे एक गीत से जुड़ी बातें सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १२-वीं कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 12 1947 में देश के विभाजन के बाद बहुत से कलाकार भारत से पाक़िस्तान जा बसे और बहुत से कलाकार सरहद के इस पार आ गए। उस पार जाने वालों में एक नाम संगीतकार ख़ुर्शीद अनवर का भी है। ख्वाजा ख़ुर्शीद अनवर का जन्म २१ मार्च १९१२ को मियाँवाली, पंजाब (अब पाक़िस्ता न) में हुआ था। उनके नाना ख़ान बहादुर डॉ. शेख़ अट्टा मोहम्मद सिविल सर्जन थे और उनके पिता ख्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद लाहौर के एक जानेमाने बैरिस्टर। पिता को संगीत का इतना ज़्यादा शौक था कि उनके पास ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स का एक बहुत बड़ा संग्रह था। इस तरह से बे