हिन्दी ब्लॉग पर पहली बार ऑस्कर नामांकित फ़िल्म आवाज़ पर हमने समसामयिक विषयों पर आधारित संगीत विडीयो और लघु फिल्मों को प्रर्दशित करने की नई शुरुआत की है. इस शृंखला में अब तक आप देख चुके हैं डी लैब द्वारा निर्मित आतंकवाद पर बना एक संगीत विडीयो और छायाकार कवि मनुज मेहता की दिल्ली के रेड लाइट इलाके पर बनी संवेदनशील लघु फ़िल्म . जल्दी ही हम नये फिल्मकारों की नई प्रस्तुतियां आपके समक्ष समीक्षा हेतु लेकर हाज़िर होंगे. आज हम जिस लघु फ़िल्म को यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं वह लगभग ३ साल पहले आई थी और कह सकते हैं कि हिंदुस्तान में लघु फिल्मों की एक नई परम्परा की शुरआत इसी फ़िल्म से हुई थी. मात्र १५-१६ मिनट में यह फ़िल्म इतना कुछ कह जाती है जितना कभी-कभी हमारी ३-३.५ घंटे की व्यवसायिक फिल्में नही कह पाती. अगर टीम का हर सदस्य अपने काम में दक्ष हो तो सीमित संसाधनों से भी वो सब हासिल किया जा सकता है जिसे पाने की चाह हर फिल्मकार करता है. इस फ़िल्म का हर पक्ष बेहतरीन है, फ़िर चाहे वो छायांकन हो, या संपादन, पार्श्व संगीत हो या निर्देशन, अदाकारी हो संवाद लेखन, इतने सुंदर अंदाज़ में विषय को परोसा गया है कि देखने ...