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राग शंकरा : SWARGOSHTHI – 417 : RAG SHANKARA

स्वरगोष्ठी – 417 में आज बिलावल थाट के राग – 5 : राग शंकरा उस्ताद विलायत खाँ से राग शंकरा की रचना और मुबारक बेगम से फिल्मी गीत सुनिए उस्ताद विलायत खां मुबारक बेगम “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला “बिलावल थाट के राग” की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। व

महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ : SWARGOSHTHI – 300 : RAG KAFI, BHAIRAVI AND DARABARI

स्वरगोष्ठी – 300 में आज महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 2 संगीत पहेली के महाविजेताओं क्षिति, विजया और किरीट का अभिनन्दन ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का नए वर्ष के दूसरे अंक में कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक अभिनन्दन है। पिछले अंक में हमने आपसे ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ के बीते वर्ष की कुछ विशेष गतिविधियों की चर्चा की थी। साथ ही पहेली के चौथी महाविजेता डी. हरिणा माधवी और तीसरे महाविजेता प्रफुल्ल पटेल से आपको परिचित कराया था और उनकी प्रस्तुतियों को भी सुनवाया था। इस अंक में भी हम गत वर्ष की कुछ अन्य गतिविधियों का उल्लेख करने के साथ ही संगीत पहेली के प्रथम और द्वितीय महाविजेताओं की घोषणा करेंगे और उनका सम्मान भी करेंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ के पाठक और श्रोता जानते हैं कि इस स्तम्भ के प्रत्येक अंक में संगीत पहेली के माध्यम से हम हर सप्ताह भारतीय संगीत से जुड़े तीन प्रश्न देकर आपसे दो प्रश्नों का उत्तर पूछते हैं। आपके दिये गये सही उत्तरों के प्राप्तांकों की गणना दो स्तरों पर की जाती है। ‘स्वरगोष्ठी’ क

राग हमीर : SWARGOSHTHI – 297 : RAG HAMIR

स्वरगोष्ठी – 297 में आज नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 10 : राग हमीर का रंग “मधुबन में राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की दसवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे राग हमीर पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का समापन हम अगले सप्ताह 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए।

उस्ताद विलायत खाँ से सुनिए राग शंकरा

    स्वरगोष्ठी – 130 में आज भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 10 राग शंकरा पर आधारित एक अनूठा गीत ‘बेमुरव्वत बेवफा बेगाना-ए-दिल आप हैं...’ इन दिनों आप ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ का रसास्वादन कर रहे हैं। इस लघु श्रृंखला की दसवीं और समापन कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की इस संगोष्ठी में उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत अब तक हम आपको राग-आधारित कुछ ऐसे फिल्मी गीत सुनवा चुके हैं, जो छः दशक से भी पूर्व की अवधि के हैं। रागों के आधार के कारण ये आज भी सदाबहार गीत के रूप में हमारे बीच प्रतिष्ठित हैं। परन्तु इनके संगीतकार हमारी स्मृतियों में धूमिल हो गए हैं। इस श्रृंखला को प्रस्तुत करने का हमारा उद्देश्य यही है कि इन कालजयी, राग आधारित गीतों के माध्यम से हम उन भूले-बिसरे संगीतकारों को स्मरण करें। आज के अंक में हम आपको 1966 की फिल्म ‘सुशीला’ का राग शंकरा पर आधारित एक सदाबहार गीत सुनवाएँगे और इस गीत के संगीतकार स

दिन के चौथे प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी – 106 में आज राग और प्रहर – 4 गोधूली बेला के श्रम-परिहार करते राग ‘स्वरगोष्ठी’ के 106ठें अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इन दिनों आपके प्रिय स्तम्भ पर लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ जारी है। पिछले अंक में हमने दिन के तीसरे प्रहर के रागों की चर्चा की थी। आज बारी है, चौथे प्रहर के रागों की। इस प्रहर में सूर्य अस्ताचलगामी होता है। इस प्रहर के उत्तरार्द्ध काल को गोधूली बेला भी कहा जाता है। चूँकि इस समय गायों का झुण्ड चारागाहों से वापस लौटता है और उनके चलने से धूल का एक गुबार उठता है, इसीलिए इसे गोधूली बेला कहा जाता है। इस प्रहर के रागों में ऐसी स्वर-संगतियाँ होती हैं, जिनसे दिन भर के श्रम से तन और मन को शान्ति मिलती है। आज के अंक में हम इस प्रहर के हेमन्त, पटदीप, मारवा और गौड़ सारंग रागों की चर्चा करेंगे ।  दि न का चौथा प्रहर, अपराह्न तीन बजे से लेकर सूर्यास्त होने के बीच की अवधि को माना जाता है। यह वह समय होता है, जब जन-जीवन अपने दैनिक शारीरिक और मानसिक क्रियाओं से थका-हारा होता है तथा उसे थोड़ी