स्वरगोष्ठी – 216 में आज
दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट
‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये 10 थाट हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं 10 थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को वर्गीकृत किया जाता है। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे खमाज थाट पर चर्चा करेंगे और इस थाट के आश्रय राग खमाज में निबद्ध एक खयाल प्रस्तुत करेंगे। साथ ही खमाज थाट के अन्तर्गत वर्गीकृत राग तिलक कामोद के स्वरों में पिरोया एक फिल्मी गीत का उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे।
इन
दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में
हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली
को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि
पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा नहीं है। रागों
की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते
स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से
उत्पन्न माना गया है। मध्य काल में राग-रागिनी प्रणाली प्रचलन में थी। बाद
में इस प्रणाली की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाने पर थाट-वर्गीकरण के अन्तर्गत
समस्त रागों को विभाजित किया गया। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के
लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों।
थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया।
आज का थाट खमाज है। खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒।
अर्थात इस थाट में निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस थाट
का आश्रय राग ‘खमाज’ कहलाता है। ‘खमाज’ राग में थाट के अनुकूल निषाद कोमल
और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात
राग के आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। खमाज
के आरोह में सा, ग, म, प, ध नि सां और अवरोह में सां, नि, ध, प, म, ग, रे,
सा स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग में दोनों
निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद
लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के
गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है।
राग
खमाज का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हमने रामपुर सहसवान घराने के प्रमुख
स्तम्भ उस्ताद निसार हुसेन खाँ (1909-1993) द्वारा प्रस्तुत एक दुर्लभ
बन्दिश का चुनाव किया है। राग खमाज की यह अनमोल रचना 1929 में रिकार्ड की
गई थी। उस्ताद निसार हुसेन खाँ को अपने पिता और गुरु उस्ताद फिदा हुसेन खाँ
से संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। बहुत छोटी आयु में उन्हें बड़ौदा के
महाराज सयाजी राव गायकवाड़ के दरबारी संगीतज्ञ होने का गौरव प्राप्त हुआ था।
आगे चलकर खाँ साहब ‘आकाशवाणी’ से भी जुड़े। 1977 में आई.टी.सी. संगीत
रिसर्च अकादमी, कोलकाता में प्रधान गुरु नियुक्त किया गया। यहाँ रह कर
उन्होने उस्ताद राशिद खाँ सहित अनेक योग्य शिष्यो को तैयार किया। भारत
सरकार द्वारा 1970 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से विभूषित किया गया। इसके
अलावा खाँ साहब को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान सहित
गन्धर्व महाविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा गाय था। आइए गायकी
के इस शिखर-पुरुष की आवाज़ में सुनते हैं, राग खमाज की यह बन्दिश।
राग खमाज : ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ : उस्ताद निसार हुसेन खाँ
खमाज
थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग है- झिंझोटी, कलावती, दुर्गा,
देस, तिलंग, रागेश्वरी, गारा, देस, जैजैवन्ती, तिलक कामोद आदि। खमाज थाट का
ही एक प्रचलित और लोकप्रिय राग तिलक कामोद है। श्रृंगार रस की रचनाएँ इस राग
में खूब मुखर होती हैं। राग तिलक कामोद षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है,
अर्थात इसके आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं।
आरोह में धैवत स्वर वर्जित होता है। इस राग में सभी स्वर शुद्ध प्रयोग
किये जाते हैं। आरोह के स्वर हैं- सारेगसा रेमपध मप सां तथा अवरोह के स्वर
हैं- सांपधमग सारेग। राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है।
रात्रि के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन खूब खिल उठता है। अब हम
आपको राग तिलक कामोद के स्वरों में पिरोया एक फिल्मी गीत सुनवाते हैं। यह
गीत हमने 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘भूमिका’ से लिया है। फिल्म ‘भूमिका’
1940 के दशक में मराठी रंगमंच और फिल्मों की बहुचर्चित अभिनेत्री हंसा
वाडकर की आत्मकथा ‘सांगत्ये आइका’ पर आधारित थी, जिसका निर्देशन प्रख्यात
फ़िल्मकार श्याम बेनेगल ने किया था। फिल्म में अभिनय के प्रमुख कलाकार थे-
अमोल पालेकर, स्मिता पाटील, नासीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी आदि। फिल्म को दो
राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन का और स्मिता पाटील को
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का। इसके अलावा इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर
पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। फिल्म में कुल छः गीत हैं, जिनमे ‘तुम्हारे
बिन जी ना लगे घर में...’ सहित पाँच गीत बसन्त देव ने और एक गीत (‘सावन के
दिन आए...’) मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है। बसन्त देव रचित गीत- ‘तुम्हारे
बिन जी ना लगे...’ में संगीतकार वनराज भाटिया ने राग तिलक कामोद के स्वरों
का स्पर्श किया है। पंजाबी ताल के इस गीत को प्रीति सागर बेहद आकर्षक रूप
में गाया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की
अनुमति दीजिए।
राग तिलक कामोद : ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में...’ : प्रीति सागर : फिल्म – भूमिका
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 216वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको पाँच दशक से भी अधिक पुरानी
हिन्दी फिल्म के एक राग आधारित ऐतिहासिक गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इस गीत
के अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर
देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 220वें अंक की समाप्ति तक जिस प्रतिभागी के
सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की दूसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता
घोषित किया जाएगा।
1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इस अंश में किस राग की झलक है?
2 – गीत के अंश में प्रयोग किये गए ताल / तालों की मात्राओं की संख्या बताइए।
3 – इस गीत की पार्श्वगायिका के स्वर को पहचानिए और उनका नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 2 मई, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक
अवश्य प्राप्त हो जाए। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। इस
पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 218वें अंक में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 214वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1959 में प्रदर्शित संगीत
प्रधान फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न
पूछा गया था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न
का सही उत्तर है- राग बिहाग, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका लता
मंगेशकर और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- संगीतकार बसन्त देसाई (फिल्म के
संगीत में सुप्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का रचनात्मक
योगदान था।) इस बार पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर पेंसिलवेनिया,
अमेरिका से विजया राजकोटिया और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने दिया हैं। दोनों
प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर नई लघु
श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ जारी है। इसके अन्तर्गत हम प्रत्येक
अंक में भारतीय संगीत के प्रचलित दस थाट और उनके आश्रय रागों की चर्चा कर
रहे हैं। साथ ही थाट से जुड़े अन्य रागों पर आधारित फिल्मी गीत भी प्रस्तुत
कर रहे हैं। आपको यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें अवश्य लिखिएगा। ‘स्वरगोष्ठी’
पर आगामी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रागों’ पर केन्द्रित होगा। यदि आपने
वर्षा ऋतु के रागों पर कोई आलेख तैयार किया है या इन रागों की कोई रचना
आपको पसंद है, तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर शीघ्र भेजें। हम उसे आपके नाम और परिचय के साथ प्रकाशित / प्रसारित
करेंगे। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी
मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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