सावन के बादलों उनसे जा कहो...रिमझिम फुहारों के बीच विरह के दर्द में भींगे जोहरा बाई और करण दीवान के स्वर
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 702/2011/142 "ओ श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की दूसरी कड़ी में आपका पुनः स्वागत है| कल की कड़ी में आपने वर्षा ऋतु के आगमन की सार्थक अनुभूति कराने वाले राग "मेघ मल्हार" पर आधारित गीत का रसास्वादन किया था| आज हम जिस वर्षाकालीन राग और उस पर आधारित फ़िल्मी गीत सुनने जा रहे हैं, वह "मल्हार" के किसी प्रकार के अन्तर्गत नहीं आता; बल्कि "सारंग" के अन्तर्गत आता है| परन्तु इसका स्वर संयोजन ऐसा है कि इसके गायन-वादन से वर्षाकालीन परिवेश सहज रूप में उपस्थित हो जाता है| दोस्तों, आज का राग है- "वृन्दावनी सारंग"| कल के अंक में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि मल्हार अंग के रागों के अलावा "वृन्दावनी सारंग", "देस" और "जयजयवन्ती" भी ऐसे राग हैं; जो स्वतंत्र रूप से और "मल्हार" के मेल से भी वर्षा ऋतु के परिवेश की सृष्टि करने में सक्षम हैं| मल्हार के मिश्र रागों पर आधारित गीत हम आपको श्रृंखला की अगली कड़ियों में सुनवाएँगे; परन्तु आज हम आपको राग "वृन्दावनी सारंग" का संक्षिप्त परिचय