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फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 22 || राजेश खन्ना

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 22 Rajesh Khanna फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के 22 वें एपिसोड में सुनिए कहानी सुपर स्टार राजेश खन्ना की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... फिल्मी चक्र में सुनिए इन महान कलाकारों के सफ़र की कहानियां भी - किशोर कुमार शैलेन्द्र  संजीव कुमार  आनंद बक्षी सलिल चौधरी  नूतन  हृषिकेश मुखर्जी  मजरूह सुल्तानपुरी साधना  एस डी बर्मन राजेंद्र कुमार  शकील बदायुनी  जयकिशन गीता दत्त  चित्रगुप्त  आर डी बर्मन  मन्ना डे रविन्द्र जैन  राजेन्द्र कृष्ण  नौशाद  शशि कपूर 

एक सुरीला दौर जो बीतकर भी नहीं बीता -राजेश खन्ना

सुनिए काका को श्रद्धान्जली देने को तैयार किया गया हमारा खास पॉडकास्ट   मूल स्क्रिप्ट   यह पोडकास्ट समर्पित है हिन्दी फिल्मों के निर्विवादित पहले सुपरस्टार को। इनकी मक़बूलियत के किस्से परिकथाओं और जनश्रुतियों की तरह दुनिया में मशहूर हैं। हमें उम्मीद और पक्का यकीन है कि हमें इनका नाम बताने की ज़रूरत न होगी। चलिए तो नाम पर पर्दा रहते हुए हीं इनके बारे में दो-चार बातें कर ली जाएँ। इन महानुभाव का जन्म २९ दिसंबर १९४२ को ब्रिटिश इंडिया के बुरेवाला में हुआ था। जब जन्म हुआ तो नाम भी रखना था तो नाम रखा गया जतिन अरोड़ा। लेकिन ज्यादा दिनों तक न जतिन रहा और न हीं अरोड़ा। १९४८ में जब इनके माता-पिता इन्हें अपने रिश्तेदारों चुन्नी लाल खन्ना और लीलावती खन्ना को सौंपकर पंजाब के अमृतसर चले गए तो ये अरोड़ा से खन्ना हो लिए। इनके नए माता-पिता बंबई के गिरगांव के नजदीक ठाकुरगांव में रहते थे। यही इनका भी लालन-पालन और बढना-पढना हुआ। इन्होंने स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढाई की अपने बचपन के दोस्त रवि कपूर के साथ जो आगे चलकर जितेंद्र कहलाए। ज्यों-ज्यों इनकी उम्र बढती गई, इन

२९ दिसम्बर - आज के कलाकार - राजेश खन्ना और ट्विंकल खन्ना - जन्मदिन मुबारक

आज २९ दिसम्बर जन्मदिन है राजेश खन्ना और ट्विंकल खन्ना का.

ये रेशमी जुल्फें ये शरबती ऑंखें...काका बाबू डूबे तारीफों में तो काम आई रफी साहब की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 160 मो हम्मद रफ़ी साहब के गीतों से सजी इस ख़ासम ख़ास शृंखला 'दस चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी' के अंतिम कड़ी मे हम आज आ पहुँचे हैं। दस चेहरों में से अब तक जिन नौ चेहरों पर फ़िल्माये रफ़ी साहब के गानें आप ने सुने हैं वो हैं शम्मी कपूर, दिलीप कुमार, सुनिल दत्त, राजेन्द्र कुमार, राजकुमार, शशी कपूर, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार एवं देव आनंद। आज इस आख़िरी कड़ी के लिए हम ने चुना है हिंदी फ़िल्मों के पहले सुपर-स्टार राजेश खन्ना पर फ़िल्माये एक गीत को। देव आनंद की तरह राजेश खन्ना के ज़्यादातर गानें किशोर कुमार की आवाज़ में हैं, लेकिन फिर वही बात कि समय समय पर जब जब संगीतकारों को यह लगा कि कोई गीत रफ़ी साहब की गायकी में ढलकर ज़्यादा बेहतर सुनाई देगा, तब तब उन्होने रफ़ी साहब से ये गानें गवाये हैं और ज़रूरी बात यह कि ये गानें मशहूर भी ख़ूब हुए हैं। फ़िल्म 'दो रास्ते' में किशोर कुमार, मुकेश और मोहम्मद रफ़ी, सुनेहरे दौर के इन तीनों महा-गायकों ने गानें गाये हैं। इन तीनों गायकों के इस फ़िल्म के लिए गाये एकल गीतों की बात करें तो मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म का शीर्षक गी

कहीं दूर जब जब दिन ढल जाए....ऐसे मधुर गीत होठों पे आये....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 131 क ल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप ने १९६१ में बनी फ़िल्म 'प्यासे पंछी' का गीत सुना था। आइये आज एक लम्बी छलांग लगा कर १० साल आगे को निकल आते हैं। यानी कि सन् १९७१ में। दोस्तों, यही वह साल था जिसमें बनी थी ऋषिकेश मुखर्जी की कालजयी फ़िल्म 'आनंद'। इस फ़िल्म ने लोगों के दिलों पर कुछ इस क़दर छाप छोड़ी है कि आज लगभग ४ दशक बाद भी जब यह फ़िल्म टी.वी. पर आती है तो लोग उसे बड़े प्यार और भावुकता से देखते हैं। 'आनंद' कहानी है आनंद सहगल (राजेश खन्ना) की, जो एक कैंसर का मरीज़ हैं, और यह जानते हुए भी कि वह यहाँ पर चंद रोज़ का ही मेहमान है, न केवल अपनी बची हुई ज़िंदगी को पूरे जोश और आनंद से जीता है बल्कि दूसरों को भी उतना ही आनंद प्रदान करता है। ठीक विपरीत स्वभाव के हैं भास्कर बैनर्जी (अमिताभ बच्चन), जो उनके डौक्टर हैं, जो देश की दुरवस्था को देख कर हमेशा नाराज़ रहते हैं। आनंद से रोज़ रोज़ की मुलाक़ातें और नोंक-झोंक डा. भास्कर को ज़िंदगी के दुख तक़लीफ़ों के पीछे छुपी हुई ख़ुशियों के रंगों से अवगत कराती है। अपनी चारों तरफ़ ढेर सारी ख़ुशियाँ बिखेर कर,

सफल "हुई" तेरी अराधना...शक्ति सामंत पर विशेष (भाग 3)

दोस्तों, शक्ति सामंत के फ़िल्मी सफ़र को तय करते हुए पिछली कड़ी में हम पहुँच गए थे सन् १९६५ में जिस साल आयी थी उनकी बेहद कामयाब फ़िल्म 'कश्मीर की कली'। आज हम उनके सुरीले सफ़र की यह दास्तान शुरु कर रहे हैं सन् १९६६ की फ़िल्म 'सावन की घटा' के एक गीत से। इस फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन, दोनो ही शक्तिदा ने किया था और इस फ़िल्म में भी नय्यर साहब का ही संगीत था। गीत: आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया (सावन की घटा) "आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया, मैं तो आगे बढ़ गयी पीछे ज़माना रह गया"। एस. एच. बिहारी के लिखे इस गीत के बोल जैसे शक्तिदा को ही समर्पित थे। 'हावड़ा ब्रिज', 'चायना टाउन', और 'कश्मीर की कली' जैसी 'हिट' फ़िल्मों के बाद इसमें कोई शक़ नहीं रहा कि शक्तिदा फ़िल्म जगत में बहुत ऊपर पहुँच चुके थे। उनका नाम भी बड़े बड़े फ़िल्म निर्माता और निर्देशकों की सूची में शामिल हो गया। और साल दर साल उनकी प्रतिभा और सफलता साथ साथ परवान चढ़ती चली गयी। 'सावन की घटा' के अगले ही साल, यानी कि १९६७ में एक और मशहूर फ़िल्म आयी 'ऐन ईवनिंग इन पैरिस' ज