ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 168 ज न्म से लेकर मृत्यु तक आदमी की ज़िंदगी उसे कई पड़ावों से पार करवाता हुआ अंजाम की ओर ले जाती है। इन पड़ावों में एक बड़ा ही सुहाना, बड़ा ही आशिक़ाना, और बड़ा ही मस्ती भरा पड़ाव होता है, जिसे हम जवानी कहते हैं। ज़िंदगी में कुछ बड़ा बनने का ख़्वाब, दुनिया को कुछ कर दिखाने का इरादा, अपने परिवार के लिए बेहतर से बेहतर ज़िंदगी की चाहत हर जवाँ दिल की धड़कनों में बसी होती है। साथ ही होता है हला-गुल्ला, ढ़ेर सारी मस्ती, और बिन पीये ही चढ़ता हुआ नशा। नशा आशिक़ी का, प्यार मोहब्बत का। जी हाँ, जवानी के जस्बों की दास्तान आज सुनिए किशोर दा की सदा-जवाँ आवाज़ में। यह है फ़िल्म 'शरारत' का गीत "हम मतवाले नौजवाँ मंज़िलों के उजाले, लोग करे बदनामी कैसे ये दुनियावाले". सन् १९५९ में बनी फ़िल्म 'शरारत' के निर्देशक थे हरनाम सिंह रावल और मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार, मीना कुमारी, राजकुमार और कुमकुम। आप को याद होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इससे पहले हमने आप को किशोर कुमार और मीना कुमारी पर फ़िल्माया हुआ फ़िल्म 'नया अंदाज़' का "मेरी नींदों में त...