ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 70
शास्त्रीय संगीत का एक और नक्षत्र डूब गया। उस्ताद सुल्तान ख़ाँ के निधन से सारंगी और शास्त्रीय संगीत जगत की जो क्षति हुई है, उस शून्य को पूरा कर पाना सम्भव नहीं। पहले जगजीत सिंह, फिर भूपेन हज़ारिका, और अब ख़ाँ साहब, २०११ का वर्ष संगीत-जगत के लिए बड़ा ही अशुभ रहा है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, आइए आज इस 'शनिवार विशेषांक' में जानने की कोशिश करें कि उस्ताद सुल्तान ख़ाँ साहब का फ़िल्म-जगत के किन किन कलाकारों के लिए योगदान रहा। वैसे तो वो फ़िल्म-संगीत से ज़्यादा जुड़े नहीं रहे, फिर भी कई जानी-मानी हस्तियों से उनका सम्पर्क हुआ, और एक साथ काम भी किया। अब इस फ़ेहरिस्त में लता मंगेशकर से बड़ा नाम और क्या हो सकता है भला? जी हाँ, १९६७ में लता जी की नज़र में ख़ाँ साहब आये और लता जी नें उन्हें उनके साथ रेकॉर्डिंग् में आने का निमंत्रण दे दिया। और रेकॉर्डिंग् हो रही थी मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़लों की और संगीतकार थे हृदयनाथ मंगेशकर। यही नहीं १९६८ में लता जी नें सुल्तान ख़ाँ को बम्बई बुला कर अपने घर में तीन महीने तक ठहराया भी। दोस्तों, यहाँ पर लता जी की गाई उन ग़ज़लों में से एक को सुनना अनिवार्य हो जाता है जिसमें ख़ाँ साहब नें सारंगी बजाई थी।
ग़ज़ल - फिर मुझे दीद-ए-तर याद आया (लता/ मिर्ज़ा ग़ालिब/ हृदयनाथ मंगेशकर)
इस तरह से फ़िल्मी दुनिया के साथ उस्ताद सुल्तान ख़ान का सम्पर्क हुआ, और एक सेशन म्युज़िशियन के रूप में फ़िल्म-इंडस्ट्री में सारंगी बजाने लगे। साथ ही शास्त्रीय कलाकारों को भी संगत देने लगे। बेगम अख़्तर के कई ग़ज़लों में भी ख़ाँ साहब नें सारंगी बजाया। १९६९ में दूरदर्शन के एक कन्सर्ट में नौशाद साहब के हिट गीतों के री-रिलीज़ पर ख़ाँ साहब नें सारंगी पर संगत किया। अभिनेत्री और शायरा मीना कुमारी की लिखी शायरी की किताब 'आइ रोट, आइ रिसाइट' (१९७१) को जब मीना जी नें अपनी ही आवाज़ में रेकॉर्ड करना चाही, तो सारंगी पर संगत के लिए सुल्तान ख़ाँ को ही चुना। लता मंगेशकर, बेगम अख़्तर, नौशाद, मीना कुमारी, इन सभी लीजेन्ड्स नें ख़ाँ साहब को ही बार-बार चुना, इसी से ख़ाँ साहब के हुनर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आइए यहाँ पर मीना कुमारी की आवाज़ में रेकॉर्ड की हुई एक ग़ज़ल सुनें जिसमें ख़ाँ साहब नें संगत किया है सारंगी पर।
ग़ज़ल - पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है (मीना कुमारी)
एक बार सुल्तान ख़ाँ साहब नें कहा था कि जो कलाकार संगत करते हैं उन्हें अपने अहम को त्याग कर मुख्य कलाकार से थोड़ा कम कम बजाना चाहिए। उन्होंने बड़ा अच्छा उदाहरण दिया था कि अगर आप बाराती बन के जा रहे हो किसी शादी में तो आपकी साज-सज्जा दुल्हे से बेहतर तो नहीं होगी न! पूरे बारात में दुल्हा ही केन्द्रमणि होता है। ठीक उसी तरह, संगत देने वाले कलाकार को भी (चाहे वो कितना भी बड़ा कलाकार हो) मुख्य कलाकार के साथ सहयोग देना चाहिए। और शायद यही वजह थी कि ख़ाँ साहब नें इतने सारे कलाकारों के साथ काम किया। अब आते हैं उनकी फ़िल्मी गायकी पर। उस्ताद सुल्तान ख़ाँ साहब नें संगीतकार इस्माइल दरबार के लिए फ़िल्म 'हम दिल दे चुके सनम' का एक गीत गाया था "अलबेला सजन आयो री", जिसमें सह-गायिका थीं कविता कृष्णमूर्ति। ख़ाँ साहब के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए दरबार साहब नें कहा, "मेरा उनके साथ एक अलग ही सम्बंध था। वो मेरे पिता के निकटतम मित्र थे। मैं पहला संगीतकार था जिसने उनसे किसी फ़िल्म में गवाया था। उन्होंने बहुत ख़ूबसूरती से "अलबेला सजन" गाया था। इण्डियन म्युज़िक इंडस्ट्री के लिए उनका चले जाना बहुत बड़ी क्षति है। उनके इस तरह से चले जाने का मुझे बेहद अफ़सोस है, मुझे पता था कि वो कुछ समय से बीमार चल रहे थे।"
गीत - अलबेला सजन आयो री (हम दिल दे चुके सनम)
संगीतकार सलीम मर्चैण्ट नें कहा, "मैंने अपना उस्ताद खो दिया, उस्ताद सुल्तान ख़ाँ, मेरा गुरु, मेरा दोस्त, मेरा आइडल। हमें उन जैसा सारंगीवादक दूसरा नहीं मिल सकता।" जहाँ एक तरफ़ लता और मीना कुमारी के साथ ख़ाँ साहब नें काम किया है, वहीं दूसरी तरफ़ इस दौर की गायिका श्रेया घोषाल नें भी उनके साथ गाया है "ले जा ले जा रे"। ख़ाँ साहब नें राहुल बोस की पहली निर्देशित फ़िल्म 'Everybody Says I'm Fine!' के साउण्डट्रैक में सारंगी बजाई थी। राहुल बोस अभिनीत फ़िल्म 'मिस्टर ऐण्ड मिसिस अय्यर' में भी उस्ताद सुल्तान ख़ाँ नें एक गीत गाया था उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के साथ मिलकर जिसके बोल थे "किथे मेहर अली"। इस फ़िल्म के संगीतकार थे उस्ताद ज़ाकिर हुसैन। इसके अलावा ज़ाकिर साहब नें सुल्तान साहब से एक अन्य गीत में आलाप गवाया था। तो इस तरह से उस्ताद सुल्तान ख़ाँ साहब नें कई फ़िल्मों के लिए या फ़िल्मी कलाकारों के लिए अपनी आवाज़ या सारंगी वादन के माध्यम से अपना अमूल्य योगदान दिया। यूं तो ख़ाँ साहब एक शास्त्रीय फ़नकार के रूप में ही याद किए जाएंगे, पर फ़िल्मी कलाकारों के लिए उनका योगदान भी हमेशा रखा रखा जाएगा। और अब इस प्रस्तुति को समाप्त करने की अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार.
एक बार सुल्तान ख़ाँ साहब नें कहा था कि जो कलाकार संगत करते हैं उन्हें अपने अहम को त्याग कर मुख्य कलाकार से थोड़ा कम कम बजाना चाहिए। उन्होंने बड़ा अच्छा उदाहरण दिया था कि अगर आप बाराती बन के जा रहे हो किसी शादी में तो आपकी साज-सज्जा दुल्हे से बेहतर तो नहीं होगी न! पूरे बारात में दुल्हा ही केन्द्रमणि होता है। ठीक उसी तरह, संगत देने वाले कलाकार को भी (चाहे वो कितना भी बड़ा कलाकार हो) मुख्य कलाकार के साथ सहयोग देना चाहिए।
शास्त्रीय संगीत का एक और नक्षत्र डूब गया। उस्ताद सुल्तान ख़ाँ के निधन से सारंगी और शास्त्रीय संगीत जगत की जो क्षति हुई है, उस शून्य को पूरा कर पाना सम्भव नहीं। पहले जगजीत सिंह, फिर भूपेन हज़ारिका, और अब ख़ाँ साहब, २०११ का वर्ष संगीत-जगत के लिए बड़ा ही अशुभ रहा है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, आइए आज इस 'शनिवार विशेषांक' में जानने की कोशिश करें कि उस्ताद सुल्तान ख़ाँ साहब का फ़िल्म-जगत के किन किन कलाकारों के लिए योगदान रहा। वैसे तो वो फ़िल्म-संगीत से ज़्यादा जुड़े नहीं रहे, फिर भी कई जानी-मानी हस्तियों से उनका सम्पर्क हुआ, और एक साथ काम भी किया। अब इस फ़ेहरिस्त में लता मंगेशकर से बड़ा नाम और क्या हो सकता है भला? जी हाँ, १९६७ में लता जी की नज़र में ख़ाँ साहब आये और लता जी नें उन्हें उनके साथ रेकॉर्डिंग् में आने का निमंत्रण दे दिया। और रेकॉर्डिंग् हो रही थी मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़लों की और संगीतकार थे हृदयनाथ मंगेशकर। यही नहीं १९६८ में लता जी नें सुल्तान ख़ाँ को बम्बई बुला कर अपने घर में तीन महीने तक ठहराया भी। दोस्तों, यहाँ पर लता जी की गाई उन ग़ज़लों में से एक को सुनना अनिवार्य हो जाता है जिसमें ख़ाँ साहब नें सारंगी बजाई थी।
ग़ज़ल - फिर मुझे दीद-ए-तर याद आया (लता/ मिर्ज़ा ग़ालिब/ हृदयनाथ मंगेशकर)
इस तरह से फ़िल्मी दुनिया के साथ उस्ताद सुल्तान ख़ान का सम्पर्क हुआ, और एक सेशन म्युज़िशियन के रूप में फ़िल्म-इंडस्ट्री में सारंगी बजाने लगे। साथ ही शास्त्रीय कलाकारों को भी संगत देने लगे। बेगम अख़्तर के कई ग़ज़लों में भी ख़ाँ साहब नें सारंगी बजाया। १९६९ में दूरदर्शन के एक कन्सर्ट में नौशाद साहब के हिट गीतों के री-रिलीज़ पर ख़ाँ साहब नें सारंगी पर संगत किया। अभिनेत्री और शायरा मीना कुमारी की लिखी शायरी की किताब 'आइ रोट, आइ रिसाइट' (१९७१) को जब मीना जी नें अपनी ही आवाज़ में रेकॉर्ड करना चाही, तो सारंगी पर संगत के लिए सुल्तान ख़ाँ को ही चुना। लता मंगेशकर, बेगम अख़्तर, नौशाद, मीना कुमारी, इन सभी लीजेन्ड्स नें ख़ाँ साहब को ही बार-बार चुना, इसी से ख़ाँ साहब के हुनर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आइए यहाँ पर मीना कुमारी की आवाज़ में रेकॉर्ड की हुई एक ग़ज़ल सुनें जिसमें ख़ाँ साहब नें संगत किया है सारंगी पर।
ग़ज़ल - पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है (मीना कुमारी)
एक बार सुल्तान ख़ाँ साहब नें कहा था कि जो कलाकार संगत करते हैं उन्हें अपने अहम को त्याग कर मुख्य कलाकार से थोड़ा कम कम बजाना चाहिए। उन्होंने बड़ा अच्छा उदाहरण दिया था कि अगर आप बाराती बन के जा रहे हो किसी शादी में तो आपकी साज-सज्जा दुल्हे से बेहतर तो नहीं होगी न! पूरे बारात में दुल्हा ही केन्द्रमणि होता है। ठीक उसी तरह, संगत देने वाले कलाकार को भी (चाहे वो कितना भी बड़ा कलाकार हो) मुख्य कलाकार के साथ सहयोग देना चाहिए। और शायद यही वजह थी कि ख़ाँ साहब नें इतने सारे कलाकारों के साथ काम किया। अब आते हैं उनकी फ़िल्मी गायकी पर। उस्ताद सुल्तान ख़ाँ साहब नें संगीतकार इस्माइल दरबार के लिए फ़िल्म 'हम दिल दे चुके सनम' का एक गीत गाया था "अलबेला सजन आयो री", जिसमें सह-गायिका थीं कविता कृष्णमूर्ति। ख़ाँ साहब के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए दरबार साहब नें कहा, "मेरा उनके साथ एक अलग ही सम्बंध था। वो मेरे पिता के निकटतम मित्र थे। मैं पहला संगीतकार था जिसने उनसे किसी फ़िल्म में गवाया था। उन्होंने बहुत ख़ूबसूरती से "अलबेला सजन" गाया था। इण्डियन म्युज़िक इंडस्ट्री के लिए उनका चले जाना बहुत बड़ी क्षति है। उनके इस तरह से चले जाने का मुझे बेहद अफ़सोस है, मुझे पता था कि वो कुछ समय से बीमार चल रहे थे।"
गीत - अलबेला सजन आयो री (हम दिल दे चुके सनम)
संगीतकार सलीम मर्चैण्ट नें कहा, "मैंने अपना उस्ताद खो दिया, उस्ताद सुल्तान ख़ाँ, मेरा गुरु, मेरा दोस्त, मेरा आइडल। हमें उन जैसा सारंगीवादक दूसरा नहीं मिल सकता।" जहाँ एक तरफ़ लता और मीना कुमारी के साथ ख़ाँ साहब नें काम किया है, वहीं दूसरी तरफ़ इस दौर की गायिका श्रेया घोषाल नें भी उनके साथ गाया है "ले जा ले जा रे"। ख़ाँ साहब नें राहुल बोस की पहली निर्देशित फ़िल्म 'Everybody Says I'm Fine!' के साउण्डट्रैक में सारंगी बजाई थी। राहुल बोस अभिनीत फ़िल्म 'मिस्टर ऐण्ड मिसिस अय्यर' में भी उस्ताद सुल्तान ख़ाँ नें एक गीत गाया था उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के साथ मिलकर जिसके बोल थे "किथे मेहर अली"। इस फ़िल्म के संगीतकार थे उस्ताद ज़ाकिर हुसैन। इसके अलावा ज़ाकिर साहब नें सुल्तान साहब से एक अन्य गीत में आलाप गवाया था। तो इस तरह से उस्ताद सुल्तान ख़ाँ साहब नें कई फ़िल्मों के लिए या फ़िल्मी कलाकारों के लिए अपनी आवाज़ या सारंगी वादन के माध्यम से अपना अमूल्य योगदान दिया। यूं तो ख़ाँ साहब एक शास्त्रीय फ़नकार के रूप में ही याद किए जाएंगे, पर फ़िल्मी कलाकारों के लिए उनका योगदान भी हमेशा रखा रखा जाएगा। और अब इस प्रस्तुति को समाप्त करने की अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार.
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