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अपनी आँखों में बसा कर कोई इकरार करूँ...प्रेम की कोमल भावनाओं से सराबोर एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 86 क हा जाता है कि प्यार अंधा होता है, या फिर प्यार इंसान को अंधा बना देता है। लेकिन उस प्यार को आप क्या कहेंगे जो एक नेत्रहीन व्यक्ति अपनी मन की आँखों से करे? वह कैसे अपने प्यार का इज़हार करे, कैसे वह अपनी महबूबा की ख़ूबसूरती का बयान करे? आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में जो गीत हम आपको सुनवाने जा रहे हैं वही गीत इन सवालों का जवाब भी है। यह गीत इस बात का सबूत है कि प्यार की बस एक ही शर्त है, कि वो दो सच्चे दिलवालों में होनी चाहिए, बाक़ी और कुछ भी कोई मायने नहीं रखता। अगर दिल प्यार की अनुभूती को महसूस कर सकता है तो फिर आँखों की क्या ज़रूरत है! फ़िल्म 'ठोकर' का प्रस्तुत गीत "अपनी आँखों में बसाकर कोई इक़रार करूँ" प्रमाण है इस बात का कि एक नज़रों से लाचार आदमी के लिए प्यार कितना सुंदर हो सकता है। गीत में नेत्रहीन नायक अपनी नायिका को अपनी आँखों में बसाने की बात करता है क्योंकि उसे यक़ीन है कि आँखों के ज़रिए प्यार सीधे दिल में उतर जायेगा। ७० के दशक के बीचों बीच आयी इस गीत में रफ़ी साहब की आवाज़ का जादू वैसा ही बरक़रार है जैसा कि ५० और ६० के दशक में थ...