ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 682/2011/122 फ़ि ल्म संगीत में ठुमरी के प्रयोग पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है! कल की कड़ी में आपने राग "झिंझोटी" की ठुमरी के माध्यम से विरह की बेचैनी का अनुभव किया था| आज के ठुमरी गीत में श्रृंगार रस के वियोग पक्ष को रेखांकित किया गया है| नायिका अपनी विरह-व्यथा को नायक तक पहुँचाने के लिए वही मार्ग अपनाती है, जैसा कालिदास के "मेघदूत" में अपनाया गया है| "मेघदूत" का यक्ष जहाँ अपनी विरह वेदना की अभिव्यक्ति के लिए मेघ को सन्देश-वाहक बनाता है, वहीं आज के ठुमरी गीत की नायिका अपनी विरह व्यथा की अभिव्यक्ति के लिए चाँद को दूत बनने का अनुरोध कर रही है| आज के ठुमरी गीत के बारे में कुछ और चर्चा से पहले आइए "ठुमरी" शैली पर थोड़ी बातचीत हो जाए| ठुमरी एक भाव-प्रधान, चपल-चाल वाला गीत है| मुख्यतः यह श्रृंगार प्रधान गीत है; जिसमें लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का श्रृंगार मौजूद होता है| इसीलिए ठुमरी में लोकगीत जैसी कोमल शब्दावली और अपेक्षाकृत हलके रागों का ही प्रयोग होता है| अधिकतर ठु...