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राग पीलू : SWARGOSHTHI – 274 : RAG PILU

स्वरगोष्ठी – 274 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 7 : मदन मोहन और लता का सुरीला संगम ‘मैंने रंग ली आज चुनरिया, सजना तोरे रंग में...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की सातवीं कड़ी में आज हम आपको राग पीलू के स्वरों में पिरोये गए 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘दुल्हन एक रात की’ से राग पीलू पर आधारित एक गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस राग आधारि

राग श्यामकल्याण : SWARGOSHTHI – 256 : RAG SHYAM KALYAN

स्वरगोष्ठी – 256 में आज दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 4 : राग श्यामकल्याण उस्ताद अमजद अली खाँ और किशोर कुमार से सुनिए श्यामकल्याण की प्रस्तुतियाँ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता

सरोद और अमजद अली : SWARGOSHTHI – 240 : SAROD & AMJAD ALI

स्वरगोष्ठी – 240 में आज संगीत के शिखर पर – 1 : सरोद वादन सरोद वादन में अप्रतिम उस्ताद अमजद अली खाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ हो रही हमारी नई श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनकी प्रस्तुतियों की चर्चा करेंगे। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर उनके व्यक्तित्व और उनकी कृतियों को प्रस्तुत करेंगे। आज श्रृंखला की पहली कड़ी में हम अत्यन्त लोकप्रिय तंत्रवाद्य सरोद और इसके विश्वविख्यात वादक उस्ताद अमजद अली खाँ के व्यक्तित्व तथा कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और उनका बजाया राग श्याम कल्याण, कामोद और भैरवी की रचनाएँ सुनेगे। सं गीत रत्नाकर’ ग्रन्थ के अनुसार भारतीय संगीत के वाद्ययंत्रों को चार मुख्य वर्ग- तत्, सुषिर, अवनद्ध और घन में बांटा गया है। जिन वाद्यों में ताँत या तार

‘जय जय हे जगदम्बे माता...’ : नवरात्र पर विशेष

स्वरगोष्ठी – 140 में आज रागों में भक्तिरस – 8 राग यमन में सांध्य-वन्दन के स्वर        ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम भारतीय संगीत के सर्वाधिक लोकप्रिय राग कल्याण अर्थात यमन पर चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए दो रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। पहले आप सुनेंगे 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘गंगा की लहरें’ से शक्तिस्वरूपा देवी दुर्गा की प्रशस्ति करता एक आरती गीत। आज के अंक में यह भक्तिगीत इसलिए भी प्रासंगिक है कि आज पूरे देश में शारदीय नवरात्र पर्व के नवें दिन देवी के मातृ-स्वरूप की आराधना पूरी आस्था के साथ की जा रही है। इसके साथ ही विश

पाँचवें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी – 107 में आज राग और प्रहर – 5 शाम के अन्धकार को प्रकाशित करते राग ‘स्वरगोष्ठी’ के 107वें अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का इस मंच पर हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछले रविवार को इस स्तम्भ का अगला अंक मैं अपनी पारिवारिक व्यस्तता के कारण प्रस्तुत नहीं कर सका था। आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, पाँचवें प्रहर के कुछ मधुर रागों में चुनी हुई रचनाएँ। तीन-तीन घण्टों की अवधि में विभाजित दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहरों के रूप में पहचाना जाता है। इनमें पाँचवाँ प्रहर अर्थात रात्रि का पहला प्रहर, सूर्यास्त के बाद से लेकर रात्रि लगभग नौ बजे तक की अवधि को माना जाता है। इस प्रहर में गाये-बजाए जाने वाले राग गहराते अन्धकार में प्रकाश के विस्तार की अनुभूति कराते हैं। आज के अंक में हम ऐसे ही कुछ रागों पर आपसे चर्चा करेंगे। पाँ चवें प्रहर के रागों में आज हम सबसे पहले राग कामोद पर चर्चा करेंगे। कल्याण थाट और कल्याण अंग से संचालित होने वाले इस राग को कुछ विद्वान काफी थाट के अंतर्गत भी मानते हैं। औड़व-सम्पूर्ण जाति