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चित्रकथा - 13: हिन्दी फ़िल्मों में किशोरी अमोनकर

अंक - 13 हिन्दी फ़िल्मों में किशोरी अमोनकर "मेघा झर झर बरसत रे..."  ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  पिछले सोमवार दिनांक 3 अप्रैल 2017 को शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध गायिका पद्मविभूशण किशोरी अमोनकर (आमोणकर) का 84 वर्ष की आयु में देहावसन हो जाने से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन जगत को गहरी हानी पहुँची है। शास्त्रीय संगीत जगत में किशोरी जी का ज...

तू छुपी है कहाँ, मैं तड़पता यहाँ.....अपने आप में अनूठा है नवरंग का ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 68 'न वरंग' हिंदी फ़िल्म इतिहास की एक बेहद मशहूर फ़िल्म रही है। वी. शांताराम ने १९५५ में 'म्युज़िकल' फ़िल्म बनाई थी 'झनक झनक पायल बाजे'। गोपीकिशन और संध्या के अभिनय और नृत्य तथा वसंत देसाई के जादूई संगीत ने इस फ़िल्म को एक बहुत ऊँचा मुक़ाम दिलवाया था। 'झनक झनक पायल बाजे' की अपार सफलता के बाद सन् १९५९ में शांतारामजी ने कुछ इसी तरह की एक और नृत्य और संगीतप्रधान फ़िल्म बनाने की सोची। यह फ़िल्म थी 'नवरंग'। महिपाल और संध्या इस फ़िल्म के कलाकार थे और संगीत का भार इस बार दिया गया अन्ना साहब यानी कि सी. रामचन्द्र को। फ़िल्म के गाने लिखे भरत व्यास ने। आशा भोंसले और मन्ना डे के साथ साथ नवोदित गायक महेन्द्र कपूर को भी इस फ़िल्म में गाने का मौका मिला। बल्कि इस फ़िल्म को महेन्द्र कपूर की पहली 'हिट' फ़िल्म भी कहा जा सकता है। लेकिन आज हमने इस फ़िल्म का जो गीत चुना है उसे आशाजी और मन्नादा ने गाया है। यह गीत अपने आप में बिल्कुल अनूठा है। इस गीत को यादगार बनाने में गीतकार भरत व्यास के बोलों का उतना ही हाथ था जितना की सी. रामचन्द्र...

टिम टिम टिम तारों के दीप जले...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 08 'ओल्ड इस गोल्ड' में आज बारी है एक सदाबहार युगल गीत को सुनने की. दोस्तों, फिल्मकार वी शांताराम और संगीतकार वसंत देसाई प्रभात स्टूडियो के दिनो से एक दूसरे से जुडे हुए थे, जब वसंत देसाई वी शांताराम के सहायक हुआ करते थे. वी शांताराम को वसंत देसाई के प्रतिभा का भली भाँति ज्ञान था. इसलिए जब उन्होंने प्रभात छोड्कर अपने 'बैनर' राजकमल कलामंदिर की नीव रखी तो वो अपने साथ वसंत देसाई को भी ले आए. "दहेज", "झनक झनक पायल बाजे", "तूफान और दीया", और "दो आँखें बारह हाथ" जैसी चर्चित फिल्मों में संगीत देने के बाद वसंत देसाई ने राजकमल कलामंदिर की फिल्म "मौसी" में संगीत दिया था सन 1958 में. इस फिल्म में एक बडा ही प्यारा सा गीत गाया था तलत महमूद और लता मंगेशकर ने. यही गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' में. हालाँकि वी शांताराम प्रभात स्टूडियो छोड चुके थे, लेकिन उसे अपने दिल से दूर नहीं होने दिया. उन्होने अपने बेटे का नाम इसी 'स्टूडियो' के नाम पर प्रभात कुमार रखा. और उनके इसी बेटे ने फिल्म ...