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Showing posts with the label Satish Vammi

भर के गागर कलियों से, ज्यों ढलके हों मोगरे....ब्रिज भाषा की मिठास और क्लास्सिकल पाश्चात्य संगीत का माधुर्य जब मिले

Season 3 of new Music, Song # 20 दोस्तों आज का हमारा नया गीत एकदम खास है, क्योंकि इसमें पहली बार ब्रिज भाषा की मिठास घुल रही है. नए प्रयोगों के लिए जाने जाने वाले हमारे इन हॉउस गीतकार विश्व दीपक लाए है एक बहुत मधुर गीत जिसे एक बेहद मीठी सी धुन देकर संवारा है सतीश वम्मी ने जो इससे पहले इसी सत्र में "जीनत" देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर चुके हैं. गायिका हैं "बुलबुला" में जिंदगी का फलसफा देने वाली आवाज़ की शान गायिका ह्रिचा देबराज नील मुखर्जी. तो दोस्तों अब और अधिक भूमिका में आपको न उलझाते हुए सीधे गीत की तरफ़ बढते हैं. ऑंखें मूँद के सुनिए और खो जाईये, इस ताज़ा तरीन गीत की रुमानियत में....और हाँ हमारे युवा संगीतकार सतीश जी को विवाह की बधाईयां भी अवश्य दीजियेगा, क्योंकि कहीं न कहीं उनके जीवन में आये इस नए प्रेम का भी तो योगदान है इस गीत में. हैं न ? गीत के बोल - ढाई आखर अंखियों से जब झलके हैं तो मोहे मिल जावे चैना.... मोरे सांवरे!! भर के गागर कलियों से ज्यों ढलके हों मोगरे बिछ जावें भौंरे..... होके बावरे!! तोसे पुछूँ तू नैनन से यूँ पल-पल छल कर... लूटे है मोहे.. कि पक्की...

किस अदा से ज़ीनत का दूँ हर शै को पता- पाँचवा ताज़ा गीत

Season 3 of new Music, Song # 05 आवाज़ के लिए शुक्रवार का मतलब होता है बिलकुल ताज़ा। खुद के लिए और श्रोताओं के लिए ताज़े संगीत से सजे एक गीत को प्रस्तुत करना। संगीतबद्ध गीतों का तीसरा सत्र जो हमारे बिना किसी प्रयास के नये संगीतकारों-गायकों-लेखकों में आवाज़ महोत्सव 2010 के रूप में जाना जाने लगा है, में अब तक 4 नये गीत रीलिज हो चुके हैं। पाँचवें गीत के माध्यम से हम एक बिल्कुल नया संगीतकार सतीश वम्मी आवाज़ की दुनिया को दे रहे हैं। इस गीत के रचयिता आवाज़ के जाने-माने स्तम्भकार हैं जो किसी एक ग़ज़ल पर इतनी चर्चा करते हैं कि इंटरनेट पर कहीं एक जगह इतना-कुछ मिलना लगभग असम्भव है। गीत की आत्मा यानी गायिका कुहू गुप्ता 'जो तुम आ जाते एक बार' और 'प्रभु जी' से श्रोताओं के दिल में निवास करने लगी हैं। गीत के बोल - मुखड़ा : होठों को खोलूँ न खोलूँ, बता, आँखों से बोलूँ न बोलूँ, बता, साँसों की भीनी-सी खुशबू को मैं, बातों में घोलूँ न घोलूँ, बता.. तू बता मैं किस अदा से ज़ीनत का दूँ हर शै को पता.. तू बता जो इस फ़िज़ा को ज़ीनत सौंपूँ तो होगी ख़ता? होठों को खोलूँ न खोलूँ, बता, आँखों से बोलूँ...