स्वरगोष्ठी – ५८ में आज ‘फूल रही वन वन में सरसों, आई बसन्त बहार रे...’ दो रागों के मेल से निर्मित रागों की श्रृंखला में बसन्त बहार अत्यन्त मनमोहक राग है। राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है यह बसन्त और बहार, दोनों रागों के मेल से बना है। इस राग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी प्रस्तुति में दोनों रागों की छाया परिलक्षित होती है। स मस्त संगीतानुरागियों का आज की ‘स्वरगोष्ठी’ के नवीन अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः स्वागत करता हूँ। इन दिनों हम बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले कुछ प्रमुख रागों पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। आज हमारी चर्चा का विषय है, राग ‘बसन्त बहार’। परन्तु इस राग पर चर्चा करने से पहले हम दो ऐसे फिल्मी गीतों के विषय में आपसे ज़िक्र करेंगे, जो राग ‘बसन्त बहार’ पर आधारित है। हम सब यह पहले ही जान चुके हैं कि राग ‘बसन्त बहार’ दो स्वतंत्र रागों- बसन्त और बहार के मेल से बनता है। दोनों रागों के सन्तुलित प्रयोग से राग ‘बसन्त बहार’ का वास्तविक सौन्दर्य निखरता है। कभी-कभी समर्थ कलासाधक प्रयुक्त दोनों रागों में से किसी एक को प्रधान बना कर दूसरे का स्पर्श देकर प्रस्तु...