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‘झगड़े नउवा मूँडन की बेरिया...’ समाज के हर वर्ग का सम्मान है, संस्कार गीतों में

आज की कड़ी में बालक के मुंडन संस्कार पर ही हम केन्द्रित रहेंगे। पिछले दो अंकों में हमने जातकर्म अर्थात जन्म संस्कार तक की चर्चा की थी। जन्म और मुंडन के बीच नामकरण, निष्क्रमण और अन्नप्राशन संस्कार होते हैं। इन तीनों संस्कारों के अवसर पर क्रमशः शिशु को एक नया नाम देने, पहली बार शिशु को घर के बाहर ले जाने और छः मास का हो जाने पर शिशु को ठोस आहार देने के प्रसंग उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं। मुंडन संस्कार अत्यन्त हर्षपूर्ण वातावरण में मनाया जाता है। बालक के तीन या पाँच वर्ष की आयु में उसके गर्भ के बालों का मुंडन कर दिया जाता है। इससे पूर्व बालक के बालों को काटना निषेध होता है। इस अवसर को चूड़ाकर्म संस्कार भी कहा जाता है।

सुर संगम- 46 – संस्कार गीतों में अन्तरंग सम्बन्धों की सोंधी सुगन्ध
(तीसरा भाग)

‘सुर संगम’ में जारी संस्कार गीतों की श्रृंखला के तीसरे अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब लोक-संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछले दो अंकों में आपने मानव जीवन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘जातकर्म’ अर्थात जन्म-संस्कार से जुड़े कुछ मोहक गीतों का रसास्वादन किया है। आज हम जीवन के १६ संस्कारों के क्रम को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए ‘चौलकर्म’ अर्थात मुंडन संस्कार पर चर्चा करेंगे। लोकगीतों का प्रवाह श्रुति परम्परा के माध्यम से ही होता आया है। अवधी में संस्कार गीतों का पहला संग्रह सम्भवतः गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामलला नहछू’ है। यह लघु कृति तुलसीदास की प्रथम रचना मानी जाती है। नहछू में दशरथ-पुत्र रामचन्द्र के विवाह-संस्कारों का वर्णन है। परन्तु इस इस लघु कृति में सोहर छन्द में नहछू लोकाचार का वर्णन हुआ है। ‘सोहर' अवध क्षेत्र का लोकप्रिय छन्द है। इसके अतिरिक्‍त कर्णवेध, मुंडन और उपनयन संस्‍कारों तथा नहछू लोकाचारों पर स्त्रियाँ इसे गाती हैं। कवि ने जीवन में शास्‍त्र सम्‍मत विधानों के साथ लोकाचार के परिपालन का भी महत्त्व निरूपित किया है- 'लोक वेद मंजुल दुइ कूला'। वेदाचार लिखित संविधान की भाँति ग्रन्थबद्ध और व्‍यापक है, लेकिन लोकाचार परम्पराओं पर आधारित होता है। नहछू लोकाचार का शास्‍त्रीय विधान न होते हुए भी अवध में कम से कम पाँच सौ वर्षों से व्‍यापक रूप से प्रचलित है।

नहछू अर्थात विवाह से जुड़े संस्कारों पर विस्तार से चर्चा, श्रृंखला की आगे की कड़ियों में करेंगे। आज की कड़ी में बालक के मुंडन संस्कार पर ही हम केन्द्रित रहेंगे। पिछले दो अंकों में हमने जातकर्म अर्थात जन्म संस्कार तक की चर्चा की थी। जन्म और मुंडन के बीच नामकरण, निष्क्रमण और अन्नप्राशन संस्कार होते हैं। इन तीनों संस्कारों के अवसर पर क्रमशः शिशु को एक नया नाम देने, पहली बार शिशु को घर के बाहर ले जाने और छः मास का हो जाने पर शिशु को ठोस आहार देने के प्रसंग उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं। मुंडन संस्कार अत्यन्त हर्षपूर्ण वातावरण में मनाया जाता है। बालक के तीन या पाँच वर्ष की आयु में उसके गर्भ के बालों का मुंडन कर दिया जाता है। इससे पूर्व बालक के बालों को काटना निषेध होता है। इस अवसर को चूड़ाकर्म संस्कार भी कहा जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में चारो भाइयो के मुंडन संस्कार का वर्णन करते हुए लिखा है-

‘चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई, विप्रन पुनि दछिना बहु पाई।
परम मनोहर चरित अपारा, करत फिरत चारिउ सुकुमारा।।’


यहाँ थोड़ा रुक कर पहले हम एक मैथिली मुंडन गीत का रसास्वादन करेंगे। इस गीत में पूनम और साथियों के स्वर हैं।

मैथिली मुंडन गीत : ‘कौने बाबा छुरिया गढ़ावल सोने से...’ : स्वर : पूनम और साथी


मुंडन गीतों का वर्ण्य-विषय अत्यन्त रोचक और मोहक होता है। इनमें कहीं, माता मुंडन के अवसर पर इन्द्र से वर्षा न करने की प्रार्थना करती है, कहीं बालक के बुआ को मान-सम्मान से आमंत्रित करने की बात होती है तो कहीं ननद अपनी भाभी से नेग में आभूषणों की माँग करती है। परन्तु इन सबके बीच बाल काटने वाले नाई का आदर भी कम नहीं होता। बालक के माता-पिता कई प्रकार के भेंट-उपहार से नाई को सन्तुष्ट करते हैं। भारतीय संस्कारों में विभिन्न सेवाकर्मियों का महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है। मुंडन के अवसर पर नाई एक प्रकार से मुख्य अतिथि होता है। घर के सभी सदस्य उसे सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हैं। मुंडन संस्कार में नाई के महत्त्व को रेखांकित करने वाला एक अवधी मुंडन गीत अब हम आपको सुनवाते हैं। यह पारम्परिक मुंडन गीत लोकसंगीत-विदुषी प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव ने एक कार्यशाला में प्रतिभागी बालिकाओं और महिलाओं को सिखाया था।

अवधी मुंडन गीत : .‘झगड़े नउवा मूँडन की बेरिया...’ : संगीत निर्देशन – प्रो. कमला श्रीवास्तव


इसी के साथ संस्कार गीतों की इस श्रृंखला को कुछेक सप्ताह के लिए विराम देते हैं। अगले अंक में हम आपसे एक शास्त्रीय वाद्य और उसके विद्वान वादक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे।

और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अन्दर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। सुर संगम के जिस श्रोता/पाठक के हो जाएँगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

सुर संगम 47 की पहेली : नीचे दिये गए संगीत के अंश को सुनिए वाद्य को पहचानिए। सही पहचान करने पर आपको मिलेंगे 5 अंक, और यदि आपने तबले पर बजने वाली ताल का नाम भी बता दिया तो आपको मिलेंगे 5 बोनस अंक।


पिछ्ली पहेली का परिणाम - सुर संगम के 46वें अंक में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर है- चौलकर्म अर्थात मुंडन तथा यज्ञोपवीत संस्कार। पहेली का सही उत्तर फिर एक बार क्षिति जी ने दिया है। बहुत-बहुत बधाई!

अब समय आ गया है, आज के सुर संगम के अंक को यहीं पर विराम देने का। अगले रविवार को हम पुनः उपस्थित होंगे। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तम्भ को और रोचक बना सकते हैं। आप अपने विचार और सुझाव हमें लिख भेजिए playbackmagic@gmail.com के ई-मेल पते पर। शाम ६-३० बजे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई श्रृंखला के प्रवेशांक में, पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

खोज व आलेख - कृष्णमोहन मिश्र

Comments

Anonymous said…
itne durlabh geet kahan se dhoondh laate hain aap sir - sajeev

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