होली के शुभ अवसर पर पंकज सुबीर की रोचक कहानी पलाश
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं रोचक कहानियां, नई और पुरानी। पिछले सप्ताह आपने नीलम मिश्रा की आवाज़ में कुर्रत-उल-ऐन हैदर की रचना ''फोटोग्राफर'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज होली के शुभ अवसर पर हम लेकर आये हैं पंकज सुबीर की रोचक कहानी "पलाश", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 18 मिनट।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।
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#Twenty Eighth Story, Palash: Pankaj Subeer/Hindi Audio Book/2009/09. Voice: Anurag Sharma
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं रोचक कहानियां, नई और पुरानी। पिछले सप्ताह आपने नीलम मिश्रा की आवाज़ में कुर्रत-उल-ऐन हैदर की रचना ''फोटोग्राफर'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज होली के शुभ अवसर पर हम लेकर आये हैं पंकज सुबीर की रोचक कहानी "पलाश", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 18 मिनट।
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'मेड़ पर पड़े हुए पेड़ के कटे हुए हिस्से पर बैठ कर फाल्गुनी पलाश के फूलों पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगी, कितने मुलायम हैं ये फूल मखमल की तरह । एक एक रंग को खूबसूरती के साथ सजाया है प्रकृति ने इसकी पंखुरियों पर, बीच में ज़र्द पीले रंग का छींटा, फ़िर सिंदूरी और किनारों पर कहीं कहीं चटख़ लाल, संपूर्णता का एहसास लिये ।' (पंकज सुबीर की "पलाश" से एक अंश) |
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Comments
जितनी सुंदर कहानी उतनी ही सुन्दरता से आपने पढ़ा भी उसे. लेखक को भी बहुत बधाई. कहानी की शुरुआत एक खूबसूरत कविता सी लगी जिसमे होली के रंग बिखरे हैं. और समाप्ति भी एक कविता की तरह हुई. क्या खूब! और आपने आखिर में कुछ पंक्तियाँ गायीं भी. बड़ा अच्छा लगा.
सुनते वक्त मन जैसे गुदगुदाने लगा था मन ही मन हस रहा था जो होठो पे मुज्स्कान लिए थोड़े देर तक रुक जाती रही...
ये तो बिश्वास है उनका पलाश पे और पलाश को उसे बचा के रखना है .... एक बिश्वास के अलावा बाकी सारी चीजे टूट के जुड़ जाती है ... ओहो क्या बात कही है गुरु देव न इस n जानते तो सभी है मगर इस बात से परिचय गुरु जी ने कराया...
पानी में धीरे धीरे पलाश अपना रंग छोड़ रहा था .... क्या बात है ... उफ्फ्फ्फ़ .....एक अद्भुत प्रेम कहानी पलाश और गुनी की जो मर्यादा में रहते हुए पुरे बाग़ को खुशबु से तर बतर करती रही...
देता रहा वो धुप में छाया गुलों से ही ..
उस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था....
नतमस्तक हूँ गुरु जी के लेख पे ..
आभार
अर्श