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तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोये...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 16

किसी ने ठीक ही कहा है कि दर्दीले गीत ज़्यादा मीठे लगते हैं. और वो गीत अगर स्वर-कोकिला लता मंगेशकर की आवाज़ में हो और उसका संगीत सी रामचंद्र ने तैयार किया हो तो फिर कहना ही क्या! आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम ऐसा ही एक सदाबहार नगमा लेकर आए हैं सन 1952 की फिल्म "शिन शिनाकी बबला बू" से. संतोषी प्रोडक्शन के 'बॅनर' तले पी एल संतोषी ने इस फिल्म का निर्माण किया था. "शहनाई" और "अलबेला" जैसी 'म्यूज़िकल कॉमेडीस' बनाने के बाद सी रामचंद्रा और पी एल संतोषी एक बार फिर "शिन शिनाकी बबला बू" में एक साथ नज़र आए. लेकिन इस फिल्म का जो गीत सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुआ वो एक दर्द भरा गीत था "तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोये, रैन गुज़ारी तारे गिन गिन चैन से जब तुम सोए". और यही गीत आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में. इस गीत में सारंगी का बेहद खूबसूरत इस्तेमाल हुया है जिसे इस गीत में बजाया है प्रख्यात सारंगी वादक पंडित राम नारायण ने. उन दिनों सारंगी का इस्तेमाल ज़्यादातर मुजरों में होता था. लेकिन कुछ संगीतकार जैसे सी रामचंद्र और ओ पी नय्यर ने इस साज़ को कोठे से निकालकर 'रोमॅन्स' में ले आए.

पी एल संतोषी के लिखे इस गीत के पीछे भी एक कहानी है. दोस्तों, मुझे यह ठीक से मालूम नहीं कि यह सच है या ग़लत, मैने कहीं पे पढा है कि संतोषी साहब अभिनेत्री रेहाना की खूबसूरती पर मर-मिटे थे. और रहाना इस फिल्म की 'हेरोईन' भी थी. संतोषी साहब ने कई बार रहना को अपनी भावनाओं से अवगत करना चाहा. यहाँ तक कि एक बार तो सर्दी के मौसम में सारी रात वो रहाना के दरवाज़े पर खडे रहे. लेकिन रहाना ने जब उनकी भावनाओं पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया तो संतोषी साहब अपने टूटे हुए दिल को लेकर घर वापस चले गये और घर पहुँचते ही उनके कलम से इसी गीत के बोल फूट पडे कि "तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोए". दोस्तों, इस गीत की एक और खासियत यह भी है कि इस गीत को राग भैरवी में संगीतबद्ध सबसे धीमी गति के गीतों में से एक माना जाता है. आप भी ज़रा अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालिए और कोई दूसरा ऐसा गीत याद करने की कोशिश कीजिए जो राग भैरवी पर आधारित हो और इससे भी धीमा है. लेकिन फिलहाल सुनिए "शिन शिनाकी बबला बू" से यह अमर रचना.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. "आल इन वन" किशोर की आवाज़ में उन्ही के द्वारा संगीतबद्ध एक सुपर हिट गीत.
२. मधुबाला इस फिल्म में उनकी नायिका थी.
३. यही फिल्म का शीर्षक गीत है.

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार सिर्फ उज्जवल जी ने कोशिश की और वो सफल भी हुए. नीलम जी, आचार्य सलिल जी, और संगीता जी का भी आभार, इससे पिछली पहेली का सही जवाब उदय जी और सुदेश तैलंग ने भी दिया था. उन्हें भी बधाई.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

आप सही हह रहे हैं. ये किस्सा मैने भी सुना है.

सारंगी की आवाज का दर्द , उसकी मींड का लोच और दूसरे किसी वाद्य में नहीं, वायलीन में भी नहीं. क्योंकि इसमें अपने दर्द का एहसास सारंगी खुद मीठी बनी रह कर करती है, गोया दिल का दर्द जुबां पर नहीं आया.( जैसा की गीत का विषय है)

अगला गीत है
मैं हूं झुम झुम -२ झूमरू,
do varsh honey aaye..ye geet mujhey kisi ne mail kiya thaa. phir bahut dino tak suna gayaa ...thx sajeev..
अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत है .. 'मैं हूं झूम झूम झूम झूम झूमरू' ।
शोभा said…
मधुर गीत के लिए आभार।
manu said…
yahi ,,,main hoon jhum jhum ,,,jhumroo,,,,,,,
आप का इशारा चलते का नाम गाडी के शीर्षक गीत की ओर तो नहीं है? बाबू! संजो इशारे होरां पुकारे पम पम पम, यहाँ चलती को गाडी, कहते हैं प्यारे पम पम पम. रूपमती मधुबाला की अल्हड़ता और नटखट किशोर कुमार की शरारत की जुगलबंदी ने इस चलचित्र को सदाबहार बना दिया.

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