ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 15
दोस्तों, कभी आप ने किसी रूठे हुए बच्चे को मनाया है? बच्चे जितनी जल्दी रूठ जाते हैं उतनी ही जल्दी उन्हे मना भी सकते हैं. मन के बहुत ही सच्चे होते हैं यह मासूम बच्चे. निदा फाजली ने ठीक ही कहा है कि "घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए". जी हाँ, रोते हुए बच्चे को हंसाना किसी इबादत से कम नहीं. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' के लिए हमने एक ऐसा ही गीत चुना है जिसमें एक छोटी सी नन्ही सी गुडिया को हंसाने की कोशिश की जा रही है.
सन 1964 में एक फिल्म आई थी दोस्ती.सत्यन बोस ने इस फिल्म का निर्देशन किया था और सुधीर कुमार और सुशील कुमार ने इस फिल्म में दो अपाहिज किरदार निभाए थे जो एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त भी थे. संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और गायक मोहम्मद रफ़ी को इस फिल्म के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया था. रफ़ी साहब ने इस फिल्म में कुछ ऐसे गीत गाए हैं जो कालजयी बनकर रह गये हैं. "चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे", "जानेवालों ज़रा मुड्के देखो मुझे", "मेरी दोस्ती मेरा प्यार", "मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राह में है", और "राही मनवा दुख की चिंता क्यूँ सताती है" जैसे गाने आज भी कहीं ना कहीं से सुनने को मिल जाते हैं. लेकिन इस फिल्म में लता मंगेशकर ने भी एक गीत गाया था जिसे आज हम इस श्रृंखला में शामिल कर रहे हैं. राग पहाड़ी पर आधारित यह प्यारा सा गीत "गुडिया हमसे रूठी रहोगी" सुनकर आपके चेहरे पर भी खुशी की किरण लहरा जाएगी ऐसा हम उम्मीद करते हैं. इस गाने को सुनते हुए आप में से कुछ लोगों को शायद "मिलन" फिल्म का वो गीत भी याद आ जाए "गुज़र जाए सुख से तेरी दुख भरी रतिया", भाई मुझे तो इन दोनो गीतों की धुनों में थोड़ी बहुत समानता महसूस होती है. तो लीजिए आप भी सुनिए और अगर आप के घर में छोटी सी नन्ही सी गुडिया रानी है तो अगली बार जब वो रूठ जाए तो इसी गाने से उसे मनाईएगा.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. पी एल संतोषी के बोल और सी रामचंद्र का संगीत.
२. सारंगी वादक पंडित राम नारायण का नाम जुडा है इस गीत से.
३. लता की मधुर आवाज़ है इस दर्द भरे गीत में.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी ने लडखडाते हुए ही सही पर जवाब दिया. उज्जवल ने भी हामी भरी. जी हाँ जवाब सही है...बधाई.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
दोस्तों, कभी आप ने किसी रूठे हुए बच्चे को मनाया है? बच्चे जितनी जल्दी रूठ जाते हैं उतनी ही जल्दी उन्हे मना भी सकते हैं. मन के बहुत ही सच्चे होते हैं यह मासूम बच्चे. निदा फाजली ने ठीक ही कहा है कि "घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए". जी हाँ, रोते हुए बच्चे को हंसाना किसी इबादत से कम नहीं. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' के लिए हमने एक ऐसा ही गीत चुना है जिसमें एक छोटी सी नन्ही सी गुडिया को हंसाने की कोशिश की जा रही है.
सन 1964 में एक फिल्म आई थी दोस्ती.सत्यन बोस ने इस फिल्म का निर्देशन किया था और सुधीर कुमार और सुशील कुमार ने इस फिल्म में दो अपाहिज किरदार निभाए थे जो एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त भी थे. संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और गायक मोहम्मद रफ़ी को इस फिल्म के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया था. रफ़ी साहब ने इस फिल्म में कुछ ऐसे गीत गाए हैं जो कालजयी बनकर रह गये हैं. "चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे", "जानेवालों ज़रा मुड्के देखो मुझे", "मेरी दोस्ती मेरा प्यार", "मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राह में है", और "राही मनवा दुख की चिंता क्यूँ सताती है" जैसे गाने आज भी कहीं ना कहीं से सुनने को मिल जाते हैं. लेकिन इस फिल्म में लता मंगेशकर ने भी एक गीत गाया था जिसे आज हम इस श्रृंखला में शामिल कर रहे हैं. राग पहाड़ी पर आधारित यह प्यारा सा गीत "गुडिया हमसे रूठी रहोगी" सुनकर आपके चेहरे पर भी खुशी की किरण लहरा जाएगी ऐसा हम उम्मीद करते हैं. इस गाने को सुनते हुए आप में से कुछ लोगों को शायद "मिलन" फिल्म का वो गीत भी याद आ जाए "गुज़र जाए सुख से तेरी दुख भरी रतिया", भाई मुझे तो इन दोनो गीतों की धुनों में थोड़ी बहुत समानता महसूस होती है. तो लीजिए आप भी सुनिए और अगर आप के घर में छोटी सी नन्ही सी गुडिया रानी है तो अगली बार जब वो रूठ जाए तो इसी गाने से उसे मनाईएगा.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. पी एल संतोषी के बोल और सी रामचंद्र का संगीत.
२. सारंगी वादक पंडित राम नारायण का नाम जुडा है इस गीत से.
३. लता की मधुर आवाज़ है इस दर्द भरे गीत में.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी ने लडखडाते हुए ही सही पर जवाब दिया. उज्जवल ने भी हामी भरी. जी हाँ जवाब सही है...बधाई.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
tanhaa ji khoj kar batayein :::)))