ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 14
'ओल्ड इस गोल्ड' के सभी सुननेवालों और पाठकों का बहुत बहुत स्वागत है आज की इस कडी में. दोस्तों, अगर आप किसी भी दौर के फिल्मी गीतों पर गौर करें तो पाएँगे की जिस भाषा का प्रयोग फिल्मी गीतों में होता है वो या तो आम बोलचाल की भाषा होती है या फिर उसमें उर्दू की भरमार होती है. शुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग इनकी तुलना में बहुत कम होता है. कुछ गीतकार ऐसे भी हुए हैं जिन्होने शुद्ध हिन्दी का बहुत सुंदर इस्तेमाल भी किया है. कुछ ऐसे गीतकारों के नाम हैं कवि प्रदीप, पंडित नरेन्द्र शर्मा, भारत व्यास, शैलेन्द्र, योगेश, अनजान, इन्दीवर आदि. आज हम शुद्ध हिन्दी की बात यहाँ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज जो गीत हम आपको सुनवाने जा रहे हैं वो भी कुछ इसी तरह का है. श्रृंगार रस में ओत-प्रोत यह गीत है फिल्म "सरस्वती चन्द्र" का. अब शायद आपको गीत के बोल बताने की ज़रूरत नहीं है.
फिल्म "सरस्वती चन्द्र" आई थी सन 1968 में. उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह फिल्म हिन्दी की आखिरी 'ब्लॅक & वाइट' फिल्म थी. नूतन और मनीष अभिनीत यह फिल्म गुजराती उपन्यासकार गोवर्धंरम की विख्यात उपन्यास पर आधारित थी. इस फिल्म को बहुत सारे पुरस्कार मिले, और संगीतकार कल्याणजी आनांदजी को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया था. राग कल्याण पर आधारित मुकेश की आवाज़ में "चंदन सा बदन चंचल चितवन" हमें श्रृंगार रस के एक अलग ही दुनिया में ले जाता है. विविध भारती पर एक मुलाक़ात में आनंद जी ने कहा था की जब भी वो मुकेश के लिए कोई गीत बनाते थे तो जान-बूझकर उसमें "न" वाले शब्दों का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करने की कोशिश करते थे क्योंकि मुकेश की आवाज़ 'नेज़ल' होने की वजह से उनके गले से इन शब्दों का उच्चारण बहुत अच्छा निकलता था. इस गीत में भी "चंदन", "बदन", "चंचल", "चितवन" जैसे शब्द आनंद जी के इसी बात की पुष्टि करता है. इंदीवर साहब का लिखा हुया यह गीत श्रृंगार रस पर लिखे गये श्रेष्ठ फिल्मी गीतों में से एक है. "चंचल चितवन" और "सिंदूरी सूरज" जैसे अनुप्रास अलंकार भी इस गीत में दिखाई पड्ते हैं. तो लीजिए पेश है मुकेश की आवाज़ में सरस्वती चन्द्र फिल्म की यह सुमधुर रचना -
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का लाजावाब संगीत, इस फिल्म का एक एक गीत आज तक संगीतप्रेमियों के दिल को छूता है.
२. फिल्म के अन्य सभी गीत रफी साहब के सोलो थे एक यही गाना था लता की आवाज़ में.
३. मजरूह साहब ने दोनों अंतरों में बहुत खूबी से एक शब्द युग्म इस्तेमाल किया -"तुम्हारी हंसी".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम-
तन्हा जी, उज्जवल जी, मनु जी और आचार्य सलिल जी ने सही जवाब दिए...बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'ओल्ड इस गोल्ड' के सभी सुननेवालों और पाठकों का बहुत बहुत स्वागत है आज की इस कडी में. दोस्तों, अगर आप किसी भी दौर के फिल्मी गीतों पर गौर करें तो पाएँगे की जिस भाषा का प्रयोग फिल्मी गीतों में होता है वो या तो आम बोलचाल की भाषा होती है या फिर उसमें उर्दू की भरमार होती है. शुद्ध हिन्दी के शब्दों का प्रयोग इनकी तुलना में बहुत कम होता है. कुछ गीतकार ऐसे भी हुए हैं जिन्होने शुद्ध हिन्दी का बहुत सुंदर इस्तेमाल भी किया है. कुछ ऐसे गीतकारों के नाम हैं कवि प्रदीप, पंडित नरेन्द्र शर्मा, भारत व्यास, शैलेन्द्र, योगेश, अनजान, इन्दीवर आदि. आज हम शुद्ध हिन्दी की बात यहाँ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज जो गीत हम आपको सुनवाने जा रहे हैं वो भी कुछ इसी तरह का है. श्रृंगार रस में ओत-प्रोत यह गीत है फिल्म "सरस्वती चन्द्र" का. अब शायद आपको गीत के बोल बताने की ज़रूरत नहीं है.
फिल्म "सरस्वती चन्द्र" आई थी सन 1968 में. उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह फिल्म हिन्दी की आखिरी 'ब्लॅक & वाइट' फिल्म थी. नूतन और मनीष अभिनीत यह फिल्म गुजराती उपन्यासकार गोवर्धंरम की विख्यात उपन्यास पर आधारित थी. इस फिल्म को बहुत सारे पुरस्कार मिले, और संगीतकार कल्याणजी आनांदजी को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया था. राग कल्याण पर आधारित मुकेश की आवाज़ में "चंदन सा बदन चंचल चितवन" हमें श्रृंगार रस के एक अलग ही दुनिया में ले जाता है. विविध भारती पर एक मुलाक़ात में आनंद जी ने कहा था की जब भी वो मुकेश के लिए कोई गीत बनाते थे तो जान-बूझकर उसमें "न" वाले शब्दों का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करने की कोशिश करते थे क्योंकि मुकेश की आवाज़ 'नेज़ल' होने की वजह से उनके गले से इन शब्दों का उच्चारण बहुत अच्छा निकलता था. इस गीत में भी "चंदन", "बदन", "चंचल", "चितवन" जैसे शब्द आनंद जी के इसी बात की पुष्टि करता है. इंदीवर साहब का लिखा हुया यह गीत श्रृंगार रस पर लिखे गये श्रेष्ठ फिल्मी गीतों में से एक है. "चंचल चितवन" और "सिंदूरी सूरज" जैसे अनुप्रास अलंकार भी इस गीत में दिखाई पड्ते हैं. तो लीजिए पेश है मुकेश की आवाज़ में सरस्वती चन्द्र फिल्म की यह सुमधुर रचना -
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का लाजावाब संगीत, इस फिल्म का एक एक गीत आज तक संगीतप्रेमियों के दिल को छूता है.
२. फिल्म के अन्य सभी गीत रफी साहब के सोलो थे एक यही गाना था लता की आवाज़ में.
३. मजरूह साहब ने दोनों अंतरों में बहुत खूबी से एक शब्द युग्म इस्तेमाल किया -"तुम्हारी हंसी".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम-
तन्हा जी, उज्जवल जी, मनु जी और आचार्य सलिल जी ने सही जवाब दिए...बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
इसी के सब गाने रफी ने गाये थे और कोई ek गीत था लता का,,,,पर याद नहीं,,,
गीत है शायद,,,
चुप चुप होंठों पे आये "तुम्हारी हंसी"
के हिसाब से........
गुडिया रूठी रहोगी कब तक ना हंसोगी ,देखो जी किरण सी लहराई,,,,,,
अब फिल्म भी शायद दोस्त ही हो,,,पर गाना यही होना चाहिए,,,
मगर मनु जी का जबाब पढ़ कर यद् आ गया
बिल्कुल सही जबाब दिया है ।
एक बात दो दिन से सोच रहा हूँ,,,,,,के जिस हेमंत कुमार वाले गीत का मुझे नहीं पता लगा,,
उसका तनहा जी को कैसे पता लग गया,,,,,,,उनकी उम्र के हिसाब से सोच रहा हूँ,,,,,मैं गलत भी हो सकता हूँ,,,,,,
पर तनहा जी से जान ना चाह रहा हूँ,,,की क्या सचमुच इसके लिए उन्होंने अपना स्वाभाविक ज्ञान इस्तेमाल किया था,,,,ऐसा नहीं के मुझे सारे गीत ही पता हों,,,,,पर एक आइडिया है ,,,के कौन सा गीत किस को पता हो सकता है,,,,,
यदि तनहा जी मेरी ज्ग्यासा शांत कर सकें तो,,,??
मुझे लगता है के इसका उत्तर आपने hone प्रशन के बाद जाना है,,,,,,,,,,
बस वैसे ही जानना चाह रहा हूँ,,,,
मैने अपने स्वाभाविक ज्ञान का इस्तेमाल नहीं किया था, गूगल सर्च किया था, लेकिन जब मैने सजीव जी को यह बात बताई तो उन्होंने कहा कि ऎसा नहीं करना चाहिए और मैने उनसे वादा कर लिया कि आगे से ऎसा नहीं करूँगा। मुझे क्या पता था कि मेरे एक गूगल सर्च से मनु जी इतने परेशान हो जाएँगे। मनु जी आगे से आपको कम्प्लेक्स फील नहीं होगा ,क्यूँकि आगे से मैं गूगल सर्च नहीं करने वाला और यह मैं आप सबसे वादा करता हूँ।
धन्यवाद,
विश्व दीपक
मुझे कुछ ऐसे ही उत्तर की इन्तेजार थी,,,,,आप ने सही कहकर मुझे ना केवल सही कर दिया बल्कि ये भी साबित कर दिया के आप भी अपनी कसौटी पर खरे उतरे,,,,
मगर देर हो चुकी है,,,,,,,
आपका नाम मनु की हित लिस्ट में लिखा जा चुका है,,,, :::::)))))