Skip to main content

क्या नील नितिन मुकेश में भी हैं गायिकी के गुण ?

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (14)
आ देखें ज़रा किसमें कितना है दम - नील की चुनौती
गायिकी के सरताज रहे मुकेश के सुपुत्र नितिन मुकेश ने भी गायिकी में ठीक ठाक मुकाम हासिल किया, पर बहुत अधिक कामियाब नहीं रह पाए तो उनके बेटे और सदाबहार मुकेश के पोते नील ने अभिनय का रास्ता चुना, "जोंनी गद्दार" में अपने शानदार अभिनय से नील ने एक लम्बी पारी की उम्मीद जगाई है. अब उनकी आने वाली नयी त्रिल्लर फिल्म "आ देखें ज़रा" में नील मात्र अभिनय नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने खानदान की परंपरा निभाते हुए उन्होंने इस फिल्म का शीर्षक गीत भी खुद ही गाया है, जो कि वास्तव में एक पुराने गीत "आ देखें ज़रा किस में कितना है दम" का नया वर्ज़न है. नील इस गीत के माध्यम से आर डी बर्मन और किशोर दा को अपनी श्रद्धांजली देना चाहते हैं. नील के दामन में इस वक़्त आदित्य चोपडा की "न्यू यार्क", मधुर भंडारकर की "जेल" और सुधीर मिश्रा की "तेरा क्या होगा जोंनी" जैसी फिल्में हैं. देखना ये होगा कि क्या इनमें से किसी फिल्म में भी श्रोताओं को उनकी गायिकी का नमूना देखने को मिलेगा.



भारतीय संगीत में भारतीयता होनी ही चाहिए - हरिहरन


फिल्मों में गायन हो या शास्त्रीय, या फिर किसी पॉप धुन पर ताल मिलाना हो, हरिहरन हमेशा अपनी मधुर आवाज़ और श्रेष्ठतम गायिकी को बेहद सधे हुए अंदाज़ में पेश करते रहे हैं. पर जब उनसे पुछा गया कि उन्हें सबसे अधिक क्या गाना पसंद है तो जवाब था कि ग़ज़ल गायन से अधिक संतुष्ठी किसी अन्य गायन में नहीं मिलती. उनका कहना है कि उन्होंने भाषा को सीखने में बहुत मेहनत की है, ग़ज़ल में शायरी, ख्याल, ठुमरी, सरगम, तान और रिदम का जबरदस्त संगम होता है, और चुनौती सबसे बड़ी ये होती है इन सब के बीच आपको शब्दों की गरिमा बनाये रखनी होती है, क्योंकि ग़ज़ल मुख्यता शब्द प्रधान होते हैं. हरिहरन मानते हैं कि माडर्न होना अपनी संस्कृति को भूलना नहीं है. भारतीय संगीत की आत्मा में भारतीयता होनी ही चाहिए. वो अपनी एल्बम "कोलोनिअल कसिन" की कमियाबी का श्रेय भी इसी भारतीयता में बसी अपनी जड़ों को मानते हैं.


अभिजीत सावंत अब नायक भी

फिल्म के चाहने वालों के लिए इस हफ्ते एक नहीं दो नहीं बल्कि ५ नयी फिल्में प्रदर्शन के लिए उतरी है. और मज़े की बात है कि इन पांचों फिल्मों के माध्यम से ५ नए निर्देशकों ने अपनी कला को दुनिया के सामने रखा है. इनमें अभिनेत्री नंदिता दास (फिराक) भी शामिल हैं. पहले इंडियन आइडल रहे अभिजीत सावंत अभिनीत "लौटरी" का निर्देशन किया है हेमंत प्रभु ने, अन्य नवोदित निर्देशकों में हैं रजा मेनोन (बारह आना), रूबी ग्रेवाल (आलू चाट), और पार्वती बलागोपालन (स्ट्रेट). एक और अच्छी खबर ये है कि अब भारतीय फिल्म संगीत की तरह हिंदी फिल्मों की कहानियां भी हॉलीवुड के निर्देशकों को भा रही है, हालिया प्रर्दशित माधवन अभिनीत "१३ बी" अब विदेशी कलाकारों को लेकर अंग्रेजी में भी बनेगी. तो दोस्तों इस सप्ताह की ५ नयी फिल्मों के अलावा आपके पास "13 बी" और "गुलाल" जैसी फिल्में भी हैं, देखने के लिए. अब तक नहीं देखी तो अब देखिये.

दिल गिरा कहीं दफतन

किसी भी गीत की कामियाबी में उसके फिल्मांकन का भी बहुत बड़ा हाथ होता है. आज के "साप्ताहिक गीत" शृंखला में हम न सिर्फ आपको एक गीत सुनवायेंगें बल्कि उसका विडियो भी दिखाएंगें. दिल्ली ६ के यूँ तो सभी गीत मशहूर हुए हैं पर इस गीत को बहुत अधिक लोकप्रियता नहीं मिल पायी, पर शायद इसीलिए निर्देशक राकेश ने इस गीत को चुना अपनी कल्पनाशीलता की ऊंचाईयां दिखाने का जरिए. गीत बहुत धीमा है पर जब आप इसे परदे पर देखते हैं तो शब्द और संगीत कहीं पीछे छूट जाते हैं और दृश्य आप पर जादू सा कर देते हैं. न्यू यार्क शहर में दिल्ली ६ को स्थापित करता ये गीत दो संस्कृतियों को जैसे एक कर देता है, और प्रेम की सुखद अनुभूतियों के बीच धीमे धीमे स्पंधित होता है पार्श्व में - प्रसून के बोल और ए आर आर का संगीत.
निश्चित ही बहतरीन फिल्मांकित गीतों में सूची में ये गीत एक नया शाहकार है - देखिये और सुनिए



(विडियो क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है )

Comments

जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं.
जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं.
सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं-
जो प्यास को लें जीत वे मधुमास होते हैं.

पग चल रहे जो वे सफल प्रयास होते हैं
न थके रुक-झुककर वही हुलास होते हैं.
चीरते जो सघन तिमिर को सतत 'सलिल'-
वे दीप ही आशाओं की उजास होते है.

जो डिगें न तिल भर वही विश्वास होते हैं.
जो साथ न छोडें वही तो खास होते हैं.
जो जानते सीमा, 'सलिल' कह रहा है सच देव!
वे साधना-साफल्य का इतिहास होते हैं

मुकेश जैसी प्रतिभा सदियों में किसी एक में होती है. प्रतिभा विरासत में नहीं मिलाती. मुकेश का स्थ्सं नितिन नहीं ले पाए, उनका स्थान नील नहीं ले सकेंगे. जिसमें खुद पर विश्वास होता है वह बाप-दादा के नाम का सहारा मेकर नहीं अपने कम के बल पर नाम पाता है. फिर भी सफलता के लिए शुभकामनाएं

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की