ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 22
"मेरे लिए न अश्क बहा मैं नहीं तो क्या, है तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्या, ज़िंदा रहेगा प्यार मेरा मैं नहीं तो क्या". दोस्तों, मदन मोहन द्वारा स्वरबद्ध इस गीत का एक एक शब्द जैसे उन्हीं के लिए लिखा गया हो. आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका अमर संगीत युगों युगों तक सुननेवालों के दिलों पर राज करता रहेगा. आज की शाम मदन मोहन, लता मंगेशकर और राजा महेंदी अली ख़ान के नाम. सन् 1964 में बनी फिल्म "वो कौन थी" अपने गीत संगीत की वजह से कालजयी बन गयी. आज 45 साल बाद भी जब हम इस फिल्म के गीतों को सुनते हैं तो इनमें वही ताज़गी, वही असर पाते हैं. शायद यही ख़ासीयत थी फिल्म संगीत के उस सुनहरे दौर की. दोस्तों, आशा भोंसले की आवाज़ में "वो कौन थी" फिल्म का एक गीत हमने कुछ दिन पहले आपको सुनवाया है. आज सुनिए इसी फिल्म से लता मंगेशकर की आवाज़ में एक दर्द भरा नग्मा . 1958 की फिल्म "अदालत" में भी लताजी और मदन मोहन साहब ने एक इसी तरह का गीत बनाया था "यूँ हसरतों के दाग़ मोहब्बत में धो लिए". कुछ ऐसा ही ग़मज़दा अंदाज़ "वो कौन थी" के इस गाने में भी, राजा महेंदी अली ख़ान साहब का रहा है. "जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यूँ रोए, तबाही तो हमारे दिल पे आई आप क्यूँ रोए". अमीन सयानी के लोकप्रिय 'रेडियो प्रोग्राम' बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में उस साल यह गीत 15-वें पायदान पर रहा.
इससे पहले कि आप यह गीत सुने, क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि लताजी ने अपने मदन भैया के ग़ज़लों के बारे में क्या कहा था अपनी श्रद्धांजलि में? लताजी ने कहा था - "पहले ग़ज़ल गाने का एक ख़ास रंग हुआ करता था. गिनी चुनी तर्जें हुआ करती थी. मदन भैया ने अलग अलग रंग के ग़ज़ल गानेवालों को सुना, और जब खुद ग़ज़लों की तर्जें बनाना शुरू किये, तो उनमें अपना एक नया रंग भर दिया, जो अनोखा था. सुर ऐसे चुने जिनमें सोज़ भी था, सुरूर भी. इसीलिए उनके ग़ज़लों के तेवर भी अलग थे. एक अजीब बांकपन था. फिल्मों के लिए ग़ज़लों की तर्जें कैसे बनाई जाती है, उन्हे कितने रूपों में पेश किया जा सकता है, यह मदन भैया हम सबको बता गये. मैं मदन भैया को ग़ज़लों का बादशाह मानती हूँ" तो उसी बादशाह की याद में पेश है आज का 'ओल्ड इस गोल्ड'.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. मुकेश के शुरआती दौर के नायाब गीतों में से एक.
२. नौशाद साहब का संगीत और शकील के कलम से निकला ये दर्द भरा नग्मा.
३. मुखड़े में शब्द है -"याद न आ"
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
नीलम जी ने खूब रंग जमाया, साथ में मनु जी और आचार्य जी को भी बधाई.
एक सूचना -कल आवाज़ पर दो बड़ी पुस्तकों के विमोचन के चलते "ओल्ड इस गोल्ड" की अगली कड़ी का प्रसारण रविवार शाम होगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
"मेरे लिए न अश्क बहा मैं नहीं तो क्या, है तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्या, ज़िंदा रहेगा प्यार मेरा मैं नहीं तो क्या". दोस्तों, मदन मोहन द्वारा स्वरबद्ध इस गीत का एक एक शब्द जैसे उन्हीं के लिए लिखा गया हो. आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका अमर संगीत युगों युगों तक सुननेवालों के दिलों पर राज करता रहेगा. आज की शाम मदन मोहन, लता मंगेशकर और राजा महेंदी अली ख़ान के नाम. सन् 1964 में बनी फिल्म "वो कौन थी" अपने गीत संगीत की वजह से कालजयी बन गयी. आज 45 साल बाद भी जब हम इस फिल्म के गीतों को सुनते हैं तो इनमें वही ताज़गी, वही असर पाते हैं. शायद यही ख़ासीयत थी फिल्म संगीत के उस सुनहरे दौर की. दोस्तों, आशा भोंसले की आवाज़ में "वो कौन थी" फिल्म का एक गीत हमने कुछ दिन पहले आपको सुनवाया है. आज सुनिए इसी फिल्म से लता मंगेशकर की आवाज़ में एक दर्द भरा नग्मा . 1958 की फिल्म "अदालत" में भी लताजी और मदन मोहन साहब ने एक इसी तरह का गीत बनाया था "यूँ हसरतों के दाग़ मोहब्बत में धो लिए". कुछ ऐसा ही ग़मज़दा अंदाज़ "वो कौन थी" के इस गाने में भी, राजा महेंदी अली ख़ान साहब का रहा है. "जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यूँ रोए, तबाही तो हमारे दिल पे आई आप क्यूँ रोए". अमीन सयानी के लोकप्रिय 'रेडियो प्रोग्राम' बिनाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में उस साल यह गीत 15-वें पायदान पर रहा.
इससे पहले कि आप यह गीत सुने, क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि लताजी ने अपने मदन भैया के ग़ज़लों के बारे में क्या कहा था अपनी श्रद्धांजलि में? लताजी ने कहा था - "पहले ग़ज़ल गाने का एक ख़ास रंग हुआ करता था. गिनी चुनी तर्जें हुआ करती थी. मदन भैया ने अलग अलग रंग के ग़ज़ल गानेवालों को सुना, और जब खुद ग़ज़लों की तर्जें बनाना शुरू किये, तो उनमें अपना एक नया रंग भर दिया, जो अनोखा था. सुर ऐसे चुने जिनमें सोज़ भी था, सुरूर भी. इसीलिए उनके ग़ज़लों के तेवर भी अलग थे. एक अजीब बांकपन था. फिल्मों के लिए ग़ज़लों की तर्जें कैसे बनाई जाती है, उन्हे कितने रूपों में पेश किया जा सकता है, यह मदन भैया हम सबको बता गये. मैं मदन भैया को ग़ज़लों का बादशाह मानती हूँ" तो उसी बादशाह की याद में पेश है आज का 'ओल्ड इस गोल्ड'.
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. मुकेश के शुरआती दौर के नायाब गीतों में से एक.
२. नौशाद साहब का संगीत और शकील के कलम से निकला ये दर्द भरा नग्मा.
३. मुखड़े में शब्द है -"याद न आ"
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
नीलम जी ने खूब रंग जमाया, साथ में मनु जी और आचार्य जी को भी बधाई.
एक सूचना -कल आवाज़ पर दो बड़ी पुस्तकों के विमोचन के चलते "ओल्ड इस गोल्ड" की अगली कड़ी का प्रसारण रविवार शाम होगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
भूलने वाले याद न आ....२
देख हमें मजबूर न कर,
तुझको कसम दुख दूर न कर,
हम तो जिये बस तेरे लिये
तूने कुछ ऐसे रंज दिये...
कसम से, क्या गीत याद दिलवाया है। हमारी तो सुबह सफ़ल हो गयी।
इस श्रृंखला के लिये बहुत आभार,
वाकई मदन मोहन जी ने फिल्म संगीत में जो प्रयोग किये ,,,वो सब लाजवाब रहे,,,,
सुमित भारद्वाज