Skip to main content

एक सम्मोहन का नाम है जगजीत सिंह


पुरुस्कार और म्युजिक थैरेपी

इसके अलावा भी उनकी और एलबम आयी जैसे कहकशां, चिराग जो बहुत लोकप्रिय हुईं। कुछ आलोचकों ने ( जी हां कुछ आलोचक अब भी बचे हुए थे) दबी जबान में कहना शुरु किया कि हांSSSSS , जगजीत सिंह सिर्फ़ सेमी क्लासिकल गजल ही गा सकते हैं उनके पास वेरायटी नहीं है। इस का जवाब दिया जगजीत जी ने पंजाबी गाने गा कर जो एकदम फ़ास्ट, जिंदा दिली से भरे हुए गाने थे जिन्हें सुनते ही आप के कदम अपने आप थिरकने लगें। साथ ही उन्हों ने गाये भजन जो मन को इतनी शांती देते हैं कि आप मेडिटेशन कर सकते हैं।

सबसे ऊंची प्रेम सगाई


और अब सुनिए एक पंजाबी गाना


और आज भी जगजीत जी गायकी के क्षेत्र में नये नये प्रयोग कर रहे हैं । लोग कहते हैं कि नब्बे के दशक से उनकी आवाज में, उनकी गायकी में और निखार आ गया है। मानव मन का ऐसा कोई एहसास नहीं जिसे जगजीत जी अपनी गजलों में न उतार सकते हों। इसी कारण अनेकों बार उन्हें अलग अलग सरकारों से सम्मान मिला है। उनके पिता जो साठ के दशक में उनके संगीत में अपना भविष्य बनाने के निश्चय से चिंतित थे आज गर्व से फ़ूले नहीं समाते। लेकिन सबसे बड़ा पुरुस्कार तो जगजीत जी की गायकी को तब मिला जब भोपाल के एक अस्तपताल ‘हमीदिया हॉस्पिटल’ में म्युजिक थैरेपी पर चल रहे प्रयोग के नतीजे सामने आये। इस प्रयोग में ये पाया गया कि जगजीत जी की गजलें जब ऑपरेशन थिएटर के अंदर बजायी गयीं तो मरीज को कम दर्द का एहसास हुआ, ये कहना था वहां के मुख्य ऐनेस्थिया देने वाले डाक्टर आर पी कौशल का। और इसी तरह जब अस्तपताल के दूसरे हिस्सों में जगजीत जी की गजलें बजायी गयी तो मरीजों का चित्त प्रसन्न रहता था और वो शीघ्र स्वास्थय लाभ ले कर घर को लौट जाते थे। ऐसा है जगजीत जी की गायकी का जादू।

सुनिए मेरी पसंद की दो और गज़लें-
जो भी भला बुरा है अल्लाह जानता है


आदमी आदमी को क्या देगा जो भी देगा खुदा देगा


कोई भी कलाकार अच्छा कलाकार तभी अच्छा कलाकार हो सकता है जब वो अच्छा इंसान हो। जगजीत जी भी इस नियम के अपवाद नहीं। जब वो साठ के दशक में बम्बई आये थे तो उन्हें अपनी जगह बनाने के लिए कई साल लगे थे और अथक परिश्रम करना पड़ा था, इस बात को वो आज तक नहीं भूले। नये कलाकारों को प्रोत्साहन देना मानों उन्होने अपना धर्म बना लिया हो। आज के कई नामी कलाकार उन्हीं की पारखी नजर और प्रोत्साहन का नतीजा हैं जैसे तलत अजीज, घनश्याम वासवानी, विनोद सहगल, सिजा रॉय, और अशोक खोसला को प्रोत्साहन देते हमने उन्हें खुद एक लाइव कॉन्सर्ट में देखा है। उन्हें कभी असुरक्षा की भावना ने त्रस्त नहीं किया कि ये लोग स्थापित हो गये तो मेरी मॉर्केट का क्या होगा। संगीत तो उनके लिए पूजा है।

सफ़लता का राज

एक बार किसी ने उनसे पूछा था कि आप इतने सालों से एक के बाद एक इतनी अच्छी गजलें कैसे दे पाते हैं, हर गजल अपने आप में एक नगीना होती हैं । उनका सीधा साधा उत्तर था कि मैं सबसे पहले ध्यान देता हूँ कवि पर, जिसकी नज्म या गजल मेरे दिल में उतर जाए उसी को मैं अपनी आवाज से सजाता हूँ, जो मेरे दिल में ही नहीं उतरे वो सुनने वाले के दिल में कैसे उतरेगी। उनकी चुनी हुई गजलों को देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें कविता की कितनी समझ है। उन्हों ने चुन चुन कर मिर्जा गालिब, आमीर मिनाई, कफ़ील आजर, सुदर्शन फ़ाकिर, निदा फ़ाजिल की की रचनाओं में से गजलें चुनीं।

जितनी अच्छी उनकी गायकी है उतनी ही अच्छी उनकी विभिन्न भाषाओं पर पकड़ है। फ़िर भी वो इस बात का ध्यान रखते हैं कि वो जो भी गायें वो इतने सीधे सादे शब्दों में हो कि लोगों को आसानी से समझ में आ जाए। अगर आप अपना ज्ञान ब्खान कर रहे हैं लेकिन सुनने वाले को कुछ समझ ही नहीं आ रहा तो वो ऐसे ही है कि ‘भैंस के आगे बीन बजाए भैंस खड़ी पगुराए’, इस बात को जगजीत जी बखूबी समझते हैं और इसी लिए उनके नगमें हर दिल अजीज होते हैं।

तीसरी बात जो ध्यानाकर्षण करती है वो ये कि जगजीत जी मानते हैं कि आजकल के संगीत में शोर ज्यादा है और आत्मा कहीं खो गयी है। उसका कारण है आज की मौजूदा तकनीकी सुविधा। आज एक संगीतकार को कई प्रकार की मशीनें उपलब्ध हैं जैसे रिदम मशीन, सिन्थेसाइजर, सेम्पलरस्। ऐसे में संगीत तो मशीन देती है संगीतकार थोड़े ही देता है तो संगीत में आत्मा कहां से आयेगी, मेहनत के पसीने की सौंधी खुशबू कहां से आयेगी। जितने कम से कम वाद्ध्य का इस्तेमाल होगा संगीत उतना ही मधुर होगा। हमें ये बात एकदम सही लगती है, आप क्या कहते है?

बकौल जगजीत जी संगीत न सिर्फ़ हमारी आत्मा को तृप्त करता है बल्कि हमारे जीवन को भी संवारता है , आप पूछेगे कैसे? तो जगजीत जी बताते है कि जब एक गायक नियमित रियाज करता है तो उसके जीवन में अनुशासन आता है और ये अनुशासन सिर्फ़ संगीत के क्षेत्र में ही नहीं उसके जीवन के दूसरे अंग भी छूता है। अनुशासित व्यक्ति अपने आप सफ़ल हो जाता है ये तो जग जाहिर बात है।

अंत में हम तो यही कहेगें जगजीत सिंह वो कलाकार है जो समय के साथ साथ और कुंदन सा निखरता जाता है और जिसकी आवाज के जादू से उसके पीछे सम्मोहित से चलने वालों की भीड़ और बड़ती जाती है। ऐसे हैं हमारे जगजीत सिंह “The Pied Piper”.

यूं तो जगजीत जी के कई गाने हैं जो मुझे पसंद है और उनमें से कुछ गीत चुनना बहुत ही मुश्किल काम है फ़िर भी एक दो गीत और हो जाएं?

होठों से छू कर तुम मेरे गीत अमर कर दो


वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी...


चलते चलते देखें कैसे सम्मोहित करते हैं जगजीत सिंह अपनी गायकी से श्रोताओं को -


प्रस्तुति - अनीता कुमार


Comments

mamta said…
जगजीत सिंह की आवाज के क्या कहने ।
और live सुनने मे तो और भी मजा आता है ।
म्यूजिक थेरिपी वाली बात तो मुझे नहीं पता चली। जगजीत सिंह के हर पहलू पर पेनीदृष्टि डालने का शुक्रिया।
जगजीत सिंह जी पर आपने रुचिकर सामग्री दी, धन्यवाद. जबलपुर के प्रसिद्द हृद्रोग विशेषज्ञ डॉ. शर्मा ने उच्च रक्त चाप और हृद्रोग से पीडितों को गायत्री मन्त्र का श्रवण और जाप कराकर तेजी से सुधर देखा. दुधारू पशुओं को संगीत सुनाते हुए दुहने से अधिक उत्पादन देखा गया. अतः जगजीत जी आवाज के चिकित्सकीय प्रभाव को स्वीकारने में मुझे कोई विस्मय नहीं है.
neelam said…
allah jaanta hai ,
kaafi dino baad
ye gazal sunne ko mili aap ke sojanya se ,hum kitne khush hain ise sunkar ,allah jaanta hai .....
dhanyabaad achche lekh ke saath achche gazalon ki prastuti ke liye .
aage bhi aise hi padhne aur sunne ko milega ,isi umeed ke saath ,
khuda haafij

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...