मानना है कथावाचक शन्नो अग्रवाल का
पिछली बार पूजा अनिल ने आपको आवाज़ के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की संचालिका डॉ॰ मृदुल कीर्ति से मिलवाया था। इस बार ये एक नई शख्सियत के साथ हाज़िर हैं, एक नये प्रयोग के साथ। मृदुल कीर्ति के साक्षात्कार को इन्होंने लिखित रूप से प्रस्तुत किया था, लेकिन इस बार बातचीत को आप सुन भी सकते हैं। इंटरव्यू है प्रेमचंद की कहानियों का वाचन कर श्रोताओं का मन जीत चुकी शन्नो अग्रवाल का। यह इंटरव्यू 'स्काइपी' की मदद से सीधी बातचीत की रिकॉर्डिंग है। सुनें और बतायें कि यह प्रयोग आपको कैसा लगा?
पिछली बार पूजा अनिल ने आपको आवाज़ के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की संचालिका डॉ॰ मृदुल कीर्ति से मिलवाया था। इस बार ये एक नई शख्सियत के साथ हाज़िर हैं, एक नये प्रयोग के साथ। मृदुल कीर्ति के साक्षात्कार को इन्होंने लिखित रूप से प्रस्तुत किया था, लेकिन इस बार बातचीत को आप सुन भी सकते हैं। इंटरव्यू है प्रेमचंद की कहानियों का वाचन कर श्रोताओं का मन जीत चुकी शन्नो अग्रवाल का। यह इंटरव्यू 'स्काइपी' की मदद से सीधी बातचीत की रिकॉर्डिंग है। सुनें और बतायें कि यह प्रयोग आपको कैसा लगा?
Comments
रहे समन्वित-संतुलित, निर्मल अपनी दृष्टि.
अनिल तरंगों को मिला जब से ध्वनि का साथ.
दूर हो गयीं दूरियाँ, वाक् मिले ज्यों हाथ.
पूजा जी ने लिया है, साक्षात् जीवंत.
शन्नो जी की सहजता, देती खुशी अनंत.
अग्र रहीं वे सीखकर, वाचन कला प्रवीण.
तनिक बतातीं-तीव्र कब?,कब रखतीं ध्वनि क्षीण.
भावों के अनुरूप जब, कहतीं हैं संवाद.
पड़ती हैं या कथ्य को, कर लेती हैं याद?
धन्यवाद है युग्म का, जोड़े मन के तार.
शब्दकार आये निकट, कहे-सुने उदगार.
-सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
सराहना के लिए बहुत धन्यबाद.
पूजा जी आपका यह प्रयोग बहुत अच्छा है। इसे ज़ारी रखिए।