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सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'बड़े घर की बेटी'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'बड़े घर की बेटी'

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'बोहनी' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "बड़े घर की बेटी", जिसको स्वर दिया है शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 23 मिनट।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।



मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं
~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी

आनंदी अपने नये घर में आयी, तो यहॉँ का रंग-ढंग कुछ और ही देखा। जिस टीम-टाम की उसे बचपन से ही आदत पड़ी हुई थी, वह यहां नाम-मात्र को भी न थी। हाथी-घोड़ों का तो कहना ही क्या, कोई सजी हुई सुंदर बहली तक न थी। रेशमी स्लीपर साथ लायी थी; पर यहॉँ बाग कहॉँ। मकान में खिड़कियॉँ तक न थीं, न जमीन पर फर्श, न दीवार पर तस्वीरें।
(प्रेमचंद की 'बड़े घर की बेटी' से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis
रविवार २९ मार्च २००९ को सुनना न भूलें, पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का महादेवी वर्मा विशेषांक


#Fourteenth Story, Bade Ghar Ki Beti: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2009/09. Voice: Shanno Aggarwal

Comments

यह कहानी मुझे बहुत पसंद है ... बहुत अच्‍छा लगा सुनकर।
neelam said…
hum sun nahipaa rahe hain ,kuch system me problem hai ,kuch behad pasandida kahaaniyon me se ek thi .
chidh rahen hain ,kahaani ka sheershak moonh chidha rahaa hai ,koi baat nahi monday tak sun hi lenge .badi aaturta bhi hai jaanne kii,ki shanno ji ne kitna nyaay kiya hai is kahaani ko hum sab ko sunwa kar .
शन्नो जी,

बहुत ही बढ़िया वाचन। मैंने इसे ७-८ साल पहले पढ़ी थी, जितना अच्छी उस समय लगा थी, उतनी ही आज भी।
समयजयी कथाकार की कालजयी कहानी का भाव और रस के अनुकूल पाठ सुनकर मन आनंदित है. वाचिका बधाई की पात्र हैं संयोजक को साधुवाद.
manu said…
हमारे सिस्टम का तो पता नहीं,,,पर रात सवा तीन बजे स्पीकर आन करने का दुसाहस नहीं कर पा रहा हूँ,,,,कल देखते हैं,,
पारिवारिक पृष्ठभूमि पर प्रेमचंद की पकड़ बेमिसाल रही है. आम किरदारों को जिस सूक्ष्मता से वो प्रस्तुत करते थे वो कमाल था. शन्नो जी ने इस कालजयी कहानी को फिर से जिन्दा कर दिया आज आवाज़ पर ...आभार.
shanno said…
मेरे कथा-वाचन को सराहने के लिए आप सभी को अति धन्यबाद. मैं सभी को अपना आभार अर्पित करती हूँ.
neelam said…
bahut achchi kahaani ,achchi sanwaad adaaygi
अच्छी कहानी और प्रभावशाली वाचन!
पहले तो आवाज से लगा कि ये पुष्पा भारती जी की आवाज है, पर तुरंत पोस्ट देख कर पता चला कि ये शन्नो अग्रवाल जी की आवाज है।

आवाज में जो खनक थी, उसके साथ इस कहानी को सुनने का आनंद दुगुना हो गया। बहुत बढिया।

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