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महानायक के लिए महागायक से बेहतर कौन

आवाज के दो बडे जादूगर--अमिताभ बच्चन और किशोर कुमार

वेदोनों ही अपनी आवाज से अनोखा जादू जगाते हैं। उनकी सधी हुई आवाज हमें असीम गहराई की ओर ले जाती है। इन दोनों में से एक महागायक है तो दूसरा महानायक। कभी इस महानायक की बुलंद आवाज को ऑल इंडिया रेडियो ने नकार दिया था और दूसरी दमदार आवाज उस इंसान की है जिनकी आवाज बिमारी के कारण प्रभावित हो गई थी। कालंतर में इन दोनों की आवाज एक दूसरे की सफलता की "वौइस्" बनी.



जैसे एक सच्चे तपस्वी ने कठिन तपस्या से अपनी कामनाओं को साध लिया हो उसी तरह इन दोनों महान कलाकारों ने अपनी आवाज को रियाज से साध लिया था। यदि अब तक आप इन दो विभूतियों को ना जान पाये हो तो हम बता देते हैं कि यहाँ बात हो रही है, महान नायक अमिताभ बच्चन और महान गायक स्वर्गीय किशोर कुमार की।



किस्मत देर सवेर अपना रंग दिखा ही देती हैं, कभी रेडियो द्वारा अस्वीकृत कर देने वाली अमिताभ बच्चन की आवाज को बाद में महान निदेशक सत्यजीत राय ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाडी में कमेंट्री के लिये चुना था, इससे बेहतर उनकी आवाज की प्रशंसा क्या हो सकती है।



उधर किशोर कुमार को भी पहले पहल केवल कुछ हल्के फुल्के गीत ही गाने को मिले। "फन्टूश" फिल्म के गीत "दुखी मन मेरे सुन मेरा करना" के बाद से ही उनके गायन को गम्भीरता से लिया जाने लगा। जब किशोर कुमार फिल्म गायकी की ओर मुडे तो पहले से ही मोहम्मद रफी, मुकेश और तलत महमुद भारतीय फिल्म संगीत के आसमान पर चमकते सितारे के रुप में चमक रहे थे। पर जब एक बार किशोर कुमार ने अपने कदम फिल्म इंडस्ट्री में जमा लिये तो फिर वे पूरी तरह से छा गये। किशोर कुमार ने संगीत की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। उनके गायन का अंदाज अपने समकालीनों से बिलकुल अलग था। उनका यह अलग अंदाज ही उन्हें बहुत दूर तक ले गया।



फिल्म "जिद्दी" के बाद तो वे बेहद मशहुर हो गये थे और जब ये दोनों किस्मत के धनी लोग आपस में मिले तो एक ने गायक के रूप में और दूसरे ने अभिनेता के रूप में अपनी ऊर्जा का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुये भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया।



जब एकदम से नये अभिनेता, अमिताभ बच्चन को, किशोर कुमार ने अपनी आवाज दी तब शायद वे नहीं जानते थे कि वे भविष्य के सुपर स्टार को अपनी आवाज दे रहे हैं। अभिमान, फिल्म के इस मशहुर गीत, "मीत ना मिला रे मन का" के बाद से ही किशोर कुमार अमिताभ की आवाज के रूप में स्थापित हो गये थे।



अमिताभ के विशाल व्यक्तित्व पर किशोर कुमार की बुलंद आवाज बिलकुल सही जमती है। किशोर कुमार जब अमिताभ के लिये गाते हैं तो लगता है यह आवाज किसी परदे के पीछे के गायक की नहीं बल्कि यह स्वयं अमिताभ की ही आवाज है। यहाँ यह बात गौर करने लायक है कि अमिताभ स्वयं भी अच्छा गला रखते हैं। "नीला आसमान सो गया","रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे","मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है" और हाल ही में निशब्द फिल्म में गाया हुआ उनका यह गीत, "रोजाना जिये रोजाना मरे तेरी यादों में" कुछ लाजवाब उदाहरण हैं।



अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा में एक एंग्री यंग मैन के रूप में उभरे और उन पर किशोर कुमार की गहरी आवाज बिलकुल सटीक बैठी। इस एंग्री यंग मैन पर फिल्माये गये, किशोर कुमार के कुछ उदासी भरे गीत जैसे "बडी सूनी सूनी है, "आये तुम याद मुझें"," भी उतना ही असर दिखाते है जितना एक संवेदनशील प्रेमी के रूप में उन पर फिल्माये हुये कभी कभी, फिल्म के गीत और "सिलसिला" फिल्म के ये खूबसूरत गीत "यह कहाँ आ गये हम"," देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुये", शक्ति फिल्म का यह मधुर गाना, "जाने कैसे कब कहाँ" और "अमर अकबर अन्थोनी" के कॉमेडी रोल में गाया हुआ यह गीत "माई नेम इज ऐन्थनी गोंसाल्विस" ।



७० से ८० तक के दशक में किशोर कुमार और अमिताभ दोनों के सितारें बुलंदी पर थे। संगीतकार राहुल देव बमन, गीतकार किशोर कुमार और अमिताभ बच्चन इन तीनों की तिकडी ने कई मधुर गीत फिल्म जगत को दिये। उस दौर के कुछ लाजवाब गीत हैं, "नहीं मैं नहीं देख सकता तुम्हें रोते हुये"," मीत ना मिला रे मन का"," तेरे मेरे मिलन की ये रैना", "रोते रोते हँसना सीखों", "यह अंधा कानून है"," कालीराम का बज गया ढोल", "अपने प्यार के सपनें", "देखा ना हाय हाय"," सा रे गा मा"," खाई के पान बनारस वाला", "अरे दिवानों मुझे पहचानों"," मैं प्यासा तुम सावन, मैं दिल तू मेरी धडकन"," तुम साथ हो मेरे", "जब से तुमको देखा, देखा ही करते हैं","अपनी तो ऐसे तैसे", "तेरा फुलों जैसा रंग',"ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना", "रोते हुये आते हैं सब", "मंजिले अपनी जगह हैं","रिमझिम गिरे सावन"," आज रपट जाये तो हमें ना", "पग घुँघरू बाँध मीरा नाची थी", "थोडी सी जो पी ली है"," तेरे जैसा यार कहाँ"," ऐ यार सुन तेरी यारी"," देखा इक ख्वाब तो ये सिलसिले हुये"," ये दोस्ती हम नहीं तोडेगें", और शराबी का यह प्रसिद्ध गीत--दे दे प्यार दे", " छू कर मेरे मन को", " तेरे जैसा यार कहाँ","खून पसीने की जो मिलेगी तो खायेंगें"।



फिल्म का निर्माण एक साँझा प्रयास होता है। इसमें संगीतकार,गीतकार, अभिनेता-अभिनेता, निर्देशक, सभी का योगदान होता है। जब कोई एक इनमें से अलग हो जाता है तो किसी न किसी पर इसका असर पडता है। यही हुआ अमिताभ के साथ, जब उनकी किशोर कुमार के साथ अनबन हो गई तो अमिताभ की नम्बर वन की कुर्सी भी धीरे-धीरे उनकें हाथ से खिसकती चली गई। किशोर कुमार मस्तमौला किस्म के इंसान थे और इस तरह के लोग जिद्दी होते हैं कोई उनकी बात ना माने यह उन्हें गवारा नहीं होता। कहा जाता है इस अनबन के पीछे बात यह थी कि किशोर कुमार की एक फिल्म में अमिताभ बच्चन ने काम करने से मना कर दिया था। पर जब तक इन दोनों का साथ रहा तब तक हिंदी फिल्म सिनेमाई संगीत अपनी झोली में कई गीत डाल चुका था।

"इंतहा हो गई इंतजार की", "मीत ना मिला रे मन का", "छू कर मेरे मन को","बडी सुनी सुनी है", जैसे मर्मस्पर्शी
गीत हमेशा संगीत प्रेमियों की पहली पसंद बने रहेगें।

प्रस्तुति - विपिन चौधरी


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