ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 33
सुर संगीतकार का क्षेत्र है तो गीत गीतकार का. एक अच्छा सुरीला गीत बनने के लिए सुर और गीत, यानी कि संगीतकार और गीतकार का आपस में तालमेल होना बेहद ज़रूरी है, वरना गीत तो किसी तरह से बन जायेगा लेकिन शायद उसमें आत्मा का संचार ना हो सकेगा. शायद इसी वजह से फिल्म संगीत जगत में कई संगीतकार और गीतकारों ने अपनी अपनी जोडियाँ बनाई जिनका आपस में ताल-मेल 'फिट' बैठ्ता था, जैसे कि नौशाद और शक़ील, शंकर जयकिशन और हसरत शैलेन्द्र, गुलज़ार और आर डी बर्मन, वगैरह. ऐसी ही एक जोड़ी थी गीतकार भारत व्यास और संगीतकार वसंत देसाई की. इस जोडी ने भी कई मधुर से मधुर संगीत रचनाएँ हमें दी हैं जिनमें शामिल है फिल्म "गूँज उठी शहनाई". इस फिल्म का एक सुरीला नग्मा आज गूँज रहा है 'ओल्ड इस गोल्ड' में.
फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने एक बार किसी संगीत सम्मेलन में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान का शहनाई वादन सुन लिया था. वो उनसे और उनकी कला से इतने प्रभावित हुए कि वो न केवल अपनी अगली फिल्म का नाम रखा 'गूँज उठी शहनाई', बल्कि फिल्म की कहानी भी एक शहनाई वादक के जीवन पर आधारित थी. और क्या आप जानते हैं दोस्तों कि कहानी और फिल्म में जान डालने के लिए विजय भट्ट ने उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान से ही निवेदन किया कि फिल्म में वही शहनाई बजाएँ. ख़ान साहब ने न केवल पूरी फिल्म में शहनाई बजाई बल्कि इस फिल्म का एक गीत खुद स्वरबद्ध भी किया, और वो गीत है "दिल का खिलौना हाय टूट गया". लेकिन यह गीत हम आप को फिर कभी सुनवाएँगे, आज सुनिए लता मंगेशकर का ही गाया एक दूसरा गीत इस फिल्म का. गूँज उठी शहनाई 1959 की फिल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे राजेन्द्र कुमार, अमीता और अनिता गुहा. तो पेश है राग बिहाग पर आधारित फिल्म संगीत के सुनहरे दौर का एक सुनहरा नग्मा - "तेरे सुर और मेरे गीत".
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. जब घडी की दोनों सुईयां मिलती है इस वक़्त को जो अंग्रेजी में कहा जाता है वही है फिल्म का नाम.
२. ओपी नय्यर का संगीतबद्ध गीत है मादक आवाज़ है गीत दत्त की.
३. मुखडा शुरू होता है "अरे" शब्द से.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
नीरज जी लौटे हैं शतक के साथ बहुत बहुत बधाई. पारुल, मनु और दिलीप जी के लिए वैसे ये कोई मुश्किल नहीं था, जैसा कि मनु जी ने बताया कि ये गाना उनका "अलार्म" भी है, आप सब को इस प्यारे से गीत की बधाई. महेंद्र मिश्र जी आपका स्वागत, और आचार्य जी आपकी देरी भी सर आँखों पर.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
सुर संगीतकार का क्षेत्र है तो गीत गीतकार का. एक अच्छा सुरीला गीत बनने के लिए सुर और गीत, यानी कि संगीतकार और गीतकार का आपस में तालमेल होना बेहद ज़रूरी है, वरना गीत तो किसी तरह से बन जायेगा लेकिन शायद उसमें आत्मा का संचार ना हो सकेगा. शायद इसी वजह से फिल्म संगीत जगत में कई संगीतकार और गीतकारों ने अपनी अपनी जोडियाँ बनाई जिनका आपस में ताल-मेल 'फिट' बैठ्ता था, जैसे कि नौशाद और शक़ील, शंकर जयकिशन और हसरत शैलेन्द्र, गुलज़ार और आर डी बर्मन, वगैरह. ऐसी ही एक जोड़ी थी गीतकार भारत व्यास और संगीतकार वसंत देसाई की. इस जोडी ने भी कई मधुर से मधुर संगीत रचनाएँ हमें दी हैं जिनमें शामिल है फिल्म "गूँज उठी शहनाई". इस फिल्म का एक सुरीला नग्मा आज गूँज रहा है 'ओल्ड इस गोल्ड' में.
फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने एक बार किसी संगीत सम्मेलन में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान का शहनाई वादन सुन लिया था. वो उनसे और उनकी कला से इतने प्रभावित हुए कि वो न केवल अपनी अगली फिल्म का नाम रखा 'गूँज उठी शहनाई', बल्कि फिल्म की कहानी भी एक शहनाई वादक के जीवन पर आधारित थी. और क्या आप जानते हैं दोस्तों कि कहानी और फिल्म में जान डालने के लिए विजय भट्ट ने उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान से ही निवेदन किया कि फिल्म में वही शहनाई बजाएँ. ख़ान साहब ने न केवल पूरी फिल्म में शहनाई बजाई बल्कि इस फिल्म का एक गीत खुद स्वरबद्ध भी किया, और वो गीत है "दिल का खिलौना हाय टूट गया". लेकिन यह गीत हम आप को फिर कभी सुनवाएँगे, आज सुनिए लता मंगेशकर का ही गाया एक दूसरा गीत इस फिल्म का. गूँज उठी शहनाई 1959 की फिल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे राजेन्द्र कुमार, अमीता और अनिता गुहा. तो पेश है राग बिहाग पर आधारित फिल्म संगीत के सुनहरे दौर का एक सुनहरा नग्मा - "तेरे सुर और मेरे गीत".
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. जब घडी की दोनों सुईयां मिलती है इस वक़्त को जो अंग्रेजी में कहा जाता है वही है फिल्म का नाम.
२. ओपी नय्यर का संगीतबद्ध गीत है मादक आवाज़ है गीत दत्त की.
३. मुखडा शुरू होता है "अरे" शब्द से.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
नीरज जी लौटे हैं शतक के साथ बहुत बहुत बधाई. पारुल, मनु और दिलीप जी के लिए वैसे ये कोई मुश्किल नहीं था, जैसा कि मनु जी ने बताया कि ये गाना उनका "अलार्म" भी है, आप सब को इस प्यारे से गीत की बधाई. महेंद्र मिश्र जी आपका स्वागत, और आचार्य जी आपकी देरी भी सर आँखों पर.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
आयर गीत शायद जानते हुए भी बहुत मुश्किल,,,,,
शायद ना ही बता पाए,,,,,,,