बात एक एल्बम की (9)
फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा
फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम.
एल्बम "वादा" से अब तक आप तीन रचनायें सुन चुके हैं. आज आपको सुनवाते हैं दो और नायाब गीत इसी एल्बम से. गुलज़ार साहब पर हम आवाज़ पर पहले भी काफी विस्तार से चर्चा कर चुके हैं- मैं इस जमीन पर भटकता रहा हूँ सदियों तक और गुलज़ार - एक परिचय जैसे आलेखों में. महफ़िल-ए-ग़ज़ल में जब भी उनका जिक्र छिड़ा, तख्लीक-ए-गुलज़ार और परवाज़-ए-गुलज़ार से फिजा गुलज़ार नुमा हो गयी. फिल्मों में उनके लिखे ढेरों गीत हमेशा हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज़ करेंगें पर ये भी एक सच है कि उन्होंने ढेरों गैर फिल्म संगीत एल्बम को अपनी कलम से प्रेरणा दी. उनके साथ काम कर चुके ढेरों कलाकारों ने जब भी कभी फिल्मों से इतर अपनी कला का मुजाहरा करने का मन बनाया गुलज़ार साहब की कविताओं/ ग़ज़लों ने उन्हें अपने प्रेम पाश में बाँध लिया. फिर चाहे वो भूपेंद्र सिंह हो, सुरेश वाडेकर, भूपेन हजारिका, विशाल भारद्वाज हो या फिर जगजीत सिंह, कोई भी उनकी कविताओं के नर्मो-नाज़ुक जादू से बच नहीं पाया. गुलज़ार साहब खुद जिन फनकारों के मुरीद रहे उनके काम को जन जन तक पहुंचाने में भी उनकी अहम् भूमिका रही. मिर्जा ग़ालिब और अमृता प्रीतम के नाम इनमें प्रमुख हैं. अमृता प्रीतम की कविताओं को जिस एल्बम के माध्यम से गुलज़ार ने नयी सांसें दी उस एल्बम का भी हम आवाज़ पर ज़िक्र कर चुके हैं.
अब इसे दुर्भाग्य ही कहिये कि उनके बहुत से उन्दा काम पर्याप्त प्रचार और स्टार वेल्यू के अभाव में उतनी कमियाबी को नहीं पा सके जिसके कि वो हक़दार थे. "बूढे पहाडों पर" और "वादा" उनकी ऐसी ही कुछ अल्बम्स हैं. हाँ पर उनके दीवानों की कहीं कोई कमी नहीं है, जो हर उस एल्बम को अपने संग्रह का हिस्सा बनाते हैं जिनसे उनका नाम जुड़ जाता है. अक्सर उनकी कवितायें गहरे भाव और सरल शब्दों में गुंथी होने के कारण संगीतकारों को उन्हें स्वरबद्ध करने के लिए प्रेरित करती ही है. विशाल ने उनकी कविता "यार जुलाहे" को बहुत खूबसूरत रूप से स्वरबद्ध किया था. ऐसे में उस्ताद अमजद अली खान साहब भी कहाँ पीछे रहते भला. वादा एल्बम में भी गुलज़ार साहब के लिखे कुछ बेहद गहरे उतरते शब्दों को खान साहब ने बहुत प्यार से सुरों में पिरो कर पेश किया है.
"रोजे-अव्वल ही से आवारा हूँ आवारा रहूँगा..." कहानी है एक अनजाने अजनबी खला में भटकते यायावर की. गीत से पहले और बीच बीच में गुलज़ार साहब की आवाज़ में कुछ पंक्तियाँ है, संगीत ऐसा है कि यदि ऑंखें बंद सुनेंगें तो आप खुद को इतना हल्का महसूस करेंगे कि कहीं अन्तरिक्ष की खलाओं में भ्रमण करते हुए पायेंगें, जहाँ गुलज़ार साहब आपको चेताते मिलेंगें -"उल्काओं से बच के गुजरना, कॉमेट हो तो पंख पकड़ना..." तो चलिए हमारे साथ आज इस सफ़र में सुनिए ये गीत एल्बम "वादा" से.
अब सुनिए एक और डूबता गीत, जो पहले गीत से बिलकुल अलग रंग का है. रूप कुमार राठोड के गाये बहतरीन गीतों में इसका शुमार है. सुनिए इसी एल्बम से -"डूब रहे हो और बहते हो..." जहाँ गुलज़ार साहब लिखते हैं - "याद आते हैं वादे जिनके, तेज़ हवा में सूखे तिनके, उनकी बातें क्यों कहते हो....."
(जारी....)
"बात एक एल्बम की" एक साप्ताहिक श्रृंखला है जहाँ हम पूरे महीने बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की.यदि आप भी किसी ख़ास एल्बम या कलाकार को यहाँ देखना सुनना चाहते हैं तो हमें लिखिए.
फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा
फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम.
एल्बम "वादा" से अब तक आप तीन रचनायें सुन चुके हैं. आज आपको सुनवाते हैं दो और नायाब गीत इसी एल्बम से. गुलज़ार साहब पर हम आवाज़ पर पहले भी काफी विस्तार से चर्चा कर चुके हैं- मैं इस जमीन पर भटकता रहा हूँ सदियों तक और गुलज़ार - एक परिचय जैसे आलेखों में. महफ़िल-ए-ग़ज़ल में जब भी उनका जिक्र छिड़ा, तख्लीक-ए-गुलज़ार और परवाज़-ए-गुलज़ार से फिजा गुलज़ार नुमा हो गयी. फिल्मों में उनके लिखे ढेरों गीत हमेशा हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज़ करेंगें पर ये भी एक सच है कि उन्होंने ढेरों गैर फिल्म संगीत एल्बम को अपनी कलम से प्रेरणा दी. उनके साथ काम कर चुके ढेरों कलाकारों ने जब भी कभी फिल्मों से इतर अपनी कला का मुजाहरा करने का मन बनाया गुलज़ार साहब की कविताओं/ ग़ज़लों ने उन्हें अपने प्रेम पाश में बाँध लिया. फिर चाहे वो भूपेंद्र सिंह हो, सुरेश वाडेकर, भूपेन हजारिका, विशाल भारद्वाज हो या फिर जगजीत सिंह, कोई भी उनकी कविताओं के नर्मो-नाज़ुक जादू से बच नहीं पाया. गुलज़ार साहब खुद जिन फनकारों के मुरीद रहे उनके काम को जन जन तक पहुंचाने में भी उनकी अहम् भूमिका रही. मिर्जा ग़ालिब और अमृता प्रीतम के नाम इनमें प्रमुख हैं. अमृता प्रीतम की कविताओं को जिस एल्बम के माध्यम से गुलज़ार ने नयी सांसें दी उस एल्बम का भी हम आवाज़ पर ज़िक्र कर चुके हैं.
अब इसे दुर्भाग्य ही कहिये कि उनके बहुत से उन्दा काम पर्याप्त प्रचार और स्टार वेल्यू के अभाव में उतनी कमियाबी को नहीं पा सके जिसके कि वो हक़दार थे. "बूढे पहाडों पर" और "वादा" उनकी ऐसी ही कुछ अल्बम्स हैं. हाँ पर उनके दीवानों की कहीं कोई कमी नहीं है, जो हर उस एल्बम को अपने संग्रह का हिस्सा बनाते हैं जिनसे उनका नाम जुड़ जाता है. अक्सर उनकी कवितायें गहरे भाव और सरल शब्दों में गुंथी होने के कारण संगीतकारों को उन्हें स्वरबद्ध करने के लिए प्रेरित करती ही है. विशाल ने उनकी कविता "यार जुलाहे" को बहुत खूबसूरत रूप से स्वरबद्ध किया था. ऐसे में उस्ताद अमजद अली खान साहब भी कहाँ पीछे रहते भला. वादा एल्बम में भी गुलज़ार साहब के लिखे कुछ बेहद गहरे उतरते शब्दों को खान साहब ने बहुत प्यार से सुरों में पिरो कर पेश किया है.
"रोजे-अव्वल ही से आवारा हूँ आवारा रहूँगा..." कहानी है एक अनजाने अजनबी खला में भटकते यायावर की. गीत से पहले और बीच बीच में गुलज़ार साहब की आवाज़ में कुछ पंक्तियाँ है, संगीत ऐसा है कि यदि ऑंखें बंद सुनेंगें तो आप खुद को इतना हल्का महसूस करेंगे कि कहीं अन्तरिक्ष की खलाओं में भ्रमण करते हुए पायेंगें, जहाँ गुलज़ार साहब आपको चेताते मिलेंगें -"उल्काओं से बच के गुजरना, कॉमेट हो तो पंख पकड़ना..." तो चलिए हमारे साथ आज इस सफ़र में सुनिए ये गीत एल्बम "वादा" से.
अब सुनिए एक और डूबता गीत, जो पहले गीत से बिलकुल अलग रंग का है. रूप कुमार राठोड के गाये बहतरीन गीतों में इसका शुमार है. सुनिए इसी एल्बम से -"डूब रहे हो और बहते हो..." जहाँ गुलज़ार साहब लिखते हैं - "याद आते हैं वादे जिनके, तेज़ हवा में सूखे तिनके, उनकी बातें क्यों कहते हो....."
(जारी....)
"बात एक एल्बम की" एक साप्ताहिक श्रृंखला है जहाँ हम पूरे महीने बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की.यदि आप भी किसी ख़ास एल्बम या कलाकार को यहाँ देखना सुनना चाहते हैं तो हमें लिखिए.
Comments
उस्ताद अमजद अली खान साहब के सरोद का तो मैं पहले से हीं प्रशंसक रहा हूँ, लेकिन वे ऐसा भी संगीत दे सकते हैं,ये मैने नहीं सोचा था। बहुत हीं उच्चकोटि का संगीत !!
रुप जी और साधना जी के बारे में क्या कहूँ, मेरा सौभाग्य था कि "पुणे में आयोजित रहमान कंसर्ट" में मुझे इन दोनों को देखने का मौका मिला।
सजीव जी.... आप प्रशंसा के पात्र है, क्योंकि अमूमन ऐसे उम्दा गाने, जो कि ज्यादा लोगों तक पहुँचे नहीं हो, दूसरे मंचों पर नवाजे नहीं जाते। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
badahie.
Manju Gupta.