ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 105
'राज कपूर को समर्पित इन विशेषांकों में हम न केवल राज साहब के फ़िल्मों के गाने आप तक पहुँचा रहे हैं, बल्कि उनके साथ अन्य कलाकारों से जुड़ी बातें भी साथ साथ बताते जा रहे हैं। इसी अंदाज़ को क़ायम रखते हुए आज हम बात करेंगे राज कपूर और मन्ना डे के साथ की। उन दिनों मुकेश राज कपूर का प्लेबैक कर रहे थे। ऐसे मे मन्ना डे किस तरह से राज कपूर की आवाज़ बने, पढ़िये मन्ना डे साहब के ही शब्दों में जो उन्होने विविध भारती को एक बार बताया था - "संगीतकार शंकर मुझसे हमेशा कहते थे कि आप की आवाज़ को संगीतकारों ने ठीक से 'एक्सप्लायट' नहीं कर पाये; जब भी सही मौका आयेगा, मैं आपको गवाउँगा। और वह फ़िल्म थी 'चोरी चोरी'। जब मैं 'चोरी चोरी' फ़िल्म का एक गीत गाने के लिए 'रिकॉर्डिंग स्टूडियो' पहुँचा, लताजी भी वहीं पर थीं। फ़िल्म के निर्माता चेटानी साहब ने शंकर से कहा कि 'यह बहुत 'इम्पार्टेंट' गाना है, मुकेश को क्यों नहीं बुलाया?' यह सुनकर मेरा तो दिल बिल्कुल बैठ गया। शंकर जयकिशन ने उन्हे समझाया कि मन्ना डे की आवाज़ मे यह गीत ज़्यादा अच्छा लगेगा। जब गाना 'रिकार्ड' हुआ तो राज कपूर साहब ने मुझे कहा कि 'मुझे पता ही नहीं था कि आप इतना अच्छा गाते हैं।' और इस तरह से मेरी 'एंट्री' 'रोमांटिक' गानों में हुई, 'थैंक्स टू शंकर'!" तो देखा दोस्तों आपने कि किस तरह से मन्ना दा राज कपूर की टोली में शामिल हुए थे! यह तो थी फ़िल्म 'चोरी चोरी' के "ये रात भीगी भीगी" गीत के 'रिकॉर्डिंग' का क़िस्सा। लेकिन आज राज कपूर और मन्ना डे की जोड़ी का जो गीत हम लेकर आये हैं वह है फ़िल्म 'श्री ४२०' का। आशा भोंसले, मन्ना डे और साथियों की आवाज़ों में बेहद लोकप्रिय यह क्लब गीत है "मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के"।
'श्री ४२०' १९५५ की सबसे बड़ी ब्लाकबस्टर फ़िल्म थी। राज कपूर, नरगिस, नादिरा और ललिता पवार के जानदार अभिनय तो थे ही, साथ ही शंकर जयकिशन और हसरत-शैलेन्द्र के धूम मचाते गीत संगीत ने इस फ़िल्म को अमर बना दिया है। फ़िल्म का हर एक गीत कहानी के साथ कहानी को आगे बढ़ाते हुए ले जाता है। गीतों के मूड और रफ़्तार भी किरदारों के मन की स्थिति को बयाँ करते हैं। जैसे कि इसी गीत को ले लीजिये, गीत शुरु होता है नादिरा की धीमी नशीली चाल के साथ, लेकिन बाद मे राज कपूर वाले हिस्से मे उसकी रफ़्तार तेज़ हो जाती है जो उनके दिल की हलचल और बेक़रारी की स्थिति को दर्शाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह गीत शुरु मे फ़िल्म मे नही था। लेकिन राज कपूर को जब नादिरा की नृत्यकला के बारे मे पता चला तो उन्होने ख़ास उनके नृत्य को फ़िल्म मे जगह देने के लिए एक 'सिचुयशन' बनाया और शंकर जयकिशन से गाना तैयार करने को कहा। नादिरा फ़िल्म मे खलनायिका की भूमिका मे थीं, इसलिए उसी अंदाज़ में यह गाना लिखा गया, संगीतबद्ध किया गया और उसी मादक अंदाज़ मे गाया भी गया। ट्रम्पेट साज़ का बेहद ख़ूबसूरत इस्तेमाल इस गीत मे सुनने को मिलता है। तो अब और देरी किस बात की, सुनिए और झूमिये।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. एक मशहूर साहित्यकार के मशहूर उपन्यास पर आधारित थी ये फिल्म.
२. फिल्म के निर्माता ने अपना सब कुछ झोंक दिया इस फिल्म में, पर फिल्म को मिले राष्ट्रपति सम्मान को पाने के लिए जीवित न रह सके.
३. इस लोक गीत रुपी गीत के मुखड़े में शब्द है -"पियारी".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आपका स्कोर ८ पर आ गया है बधाई...आपने अपने बारे में जो बताया उसे जानकार ख़ुशी हुई, अपने अनुभव कभी हम सब के साथ बांटिएगा. पराग जी आपकी स्पिरिट कबीले तारीफ है. बहुत बहुत शुभकामनाएं. मनु जी और मनोज मिश्र जी बने रहिये इस महफ़िल में.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'राज कपूर को समर्पित इन विशेषांकों में हम न केवल राज साहब के फ़िल्मों के गाने आप तक पहुँचा रहे हैं, बल्कि उनके साथ अन्य कलाकारों से जुड़ी बातें भी साथ साथ बताते जा रहे हैं। इसी अंदाज़ को क़ायम रखते हुए आज हम बात करेंगे राज कपूर और मन्ना डे के साथ की। उन दिनों मुकेश राज कपूर का प्लेबैक कर रहे थे। ऐसे मे मन्ना डे किस तरह से राज कपूर की आवाज़ बने, पढ़िये मन्ना डे साहब के ही शब्दों में जो उन्होने विविध भारती को एक बार बताया था - "संगीतकार शंकर मुझसे हमेशा कहते थे कि आप की आवाज़ को संगीतकारों ने ठीक से 'एक्सप्लायट' नहीं कर पाये; जब भी सही मौका आयेगा, मैं आपको गवाउँगा। और वह फ़िल्म थी 'चोरी चोरी'। जब मैं 'चोरी चोरी' फ़िल्म का एक गीत गाने के लिए 'रिकॉर्डिंग स्टूडियो' पहुँचा, लताजी भी वहीं पर थीं। फ़िल्म के निर्माता चेटानी साहब ने शंकर से कहा कि 'यह बहुत 'इम्पार्टेंट' गाना है, मुकेश को क्यों नहीं बुलाया?' यह सुनकर मेरा तो दिल बिल्कुल बैठ गया। शंकर जयकिशन ने उन्हे समझाया कि मन्ना डे की आवाज़ मे यह गीत ज़्यादा अच्छा लगेगा। जब गाना 'रिकार्ड' हुआ तो राज कपूर साहब ने मुझे कहा कि 'मुझे पता ही नहीं था कि आप इतना अच्छा गाते हैं।' और इस तरह से मेरी 'एंट्री' 'रोमांटिक' गानों में हुई, 'थैंक्स टू शंकर'!" तो देखा दोस्तों आपने कि किस तरह से मन्ना दा राज कपूर की टोली में शामिल हुए थे! यह तो थी फ़िल्म 'चोरी चोरी' के "ये रात भीगी भीगी" गीत के 'रिकॉर्डिंग' का क़िस्सा। लेकिन आज राज कपूर और मन्ना डे की जोड़ी का जो गीत हम लेकर आये हैं वह है फ़िल्म 'श्री ४२०' का। आशा भोंसले, मन्ना डे और साथियों की आवाज़ों में बेहद लोकप्रिय यह क्लब गीत है "मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के"।
'श्री ४२०' १९५५ की सबसे बड़ी ब्लाकबस्टर फ़िल्म थी। राज कपूर, नरगिस, नादिरा और ललिता पवार के जानदार अभिनय तो थे ही, साथ ही शंकर जयकिशन और हसरत-शैलेन्द्र के धूम मचाते गीत संगीत ने इस फ़िल्म को अमर बना दिया है। फ़िल्म का हर एक गीत कहानी के साथ कहानी को आगे बढ़ाते हुए ले जाता है। गीतों के मूड और रफ़्तार भी किरदारों के मन की स्थिति को बयाँ करते हैं। जैसे कि इसी गीत को ले लीजिये, गीत शुरु होता है नादिरा की धीमी नशीली चाल के साथ, लेकिन बाद मे राज कपूर वाले हिस्से मे उसकी रफ़्तार तेज़ हो जाती है जो उनके दिल की हलचल और बेक़रारी की स्थिति को दर्शाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह गीत शुरु मे फ़िल्म मे नही था। लेकिन राज कपूर को जब नादिरा की नृत्यकला के बारे मे पता चला तो उन्होने ख़ास उनके नृत्य को फ़िल्म मे जगह देने के लिए एक 'सिचुयशन' बनाया और शंकर जयकिशन से गाना तैयार करने को कहा। नादिरा फ़िल्म मे खलनायिका की भूमिका मे थीं, इसलिए उसी अंदाज़ में यह गाना लिखा गया, संगीतबद्ध किया गया और उसी मादक अंदाज़ मे गाया भी गया। ट्रम्पेट साज़ का बेहद ख़ूबसूरत इस्तेमाल इस गीत मे सुनने को मिलता है। तो अब और देरी किस बात की, सुनिए और झूमिये।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. एक मशहूर साहित्यकार के मशहूर उपन्यास पर आधारित थी ये फिल्म.
२. फिल्म के निर्माता ने अपना सब कुछ झोंक दिया इस फिल्म में, पर फिल्म को मिले राष्ट्रपति सम्मान को पाने के लिए जीवित न रह सके.
३. इस लोक गीत रुपी गीत के मुखड़े में शब्द है -"पियारी".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी आपका स्कोर ८ पर आ गया है बधाई...आपने अपने बारे में जो बताया उसे जानकार ख़ुशी हुई, अपने अनुभव कभी हम सब के साथ बांटिएगा. पराग जी आपकी स्पिरिट कबीले तारीफ है. बहुत बहुत शुभकामनाएं. मनु जी और मनोज मिश्र जी बने रहिये इस महफ़िल में.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
गीत : लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया
पिया कि पियारी भोली भाली रे दुल्हनिया
निर्माता : शैलेन्द्र
कहानी : तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफ़ाम
लेखक : फ़णीश्वर नाथ रेणु
सुजोय जी, आप भी क्या नायाब गीत लेकर आते हैं.
पराग
बहुत बहुत बधाई हो
गाना तो यही है पर आप से आगे कोई नहीं
सादर
रचना
शायद लोक गीत..?
गाँव की बच्चीयाँ कैसे भाग रही थी वहीदा के पीछे ,,,,,
बाकी हमें न कहानी का पता , न उपन्यास का....
बस ये फिल्म देखि थी बचपन में जो तभी बस गयी थी मन में,,,,
अबरू की कटारी से,
नयनों की दुधारी से,
मारे गए गुलफाम......अजी हाँ....मारे गए गुलफाम
धन्यवाद .
तीसरी कसम के हर गाने बेजोड़ हैं पर इस गीत पर , जहाँ मंदिर दर्शन कर अपना 'वर' हीरामन बिना हीरा बाई को भी बताये , देवी मैया से मांग मगन मन से लौट रहा है , टप्पर गाडी में , हीरा बाई को दुल्हन समझ बच्चे गाडी के पीछे गाते चलते हैं , गीत से ही दोनों के कोमल मन भावः समझा दिए .
फिल्म में इस गीत में , सितुअशन , गीत और फिल्मांकन का अनूठा संयोजन है . मन पर अमित रह जाने वाला .
तेलंग जी बधाई भी और निवेदन भी की आप अब सिर्फ ' निर्णायक मंडल ' में बैठें .आपके रहते कौन बाजी मर ले जायेगा :) . सुपर चैम्पियन अब सिर्फ जौहरी रहे .
दादा अब , मेरी और से भी , इसी फिल्म की एक उप पहेली मान , प्यारी सी ............. सुनवा दिजीये ...गायक गायिका और गाना तीनो बहुत अलग किस्म के और हट कर हैं .गायक गायिका दोनों , खास कर गायक ने बहुत कम ही गाया है फिल्मों में .
और पूरी फिल्म का संगीत तो शंकर जयकिशन का था पर इस भाग का संगीत संयोजन एक प्रसिद्द कव्वालों की जोड़ी का था और उनमे से एक इस गाने में गायक भी था . इस तर्ज़ को लोकविधा से लिया गया है. यह अंश भी फिल्म के गीत कारों ने नहीं लिखा था बल्कि लोकनाट्य से लिया गया था
गाने के शुरुआत के बोलों में ' बाँकी अदा ' है .और ये भी की परदे पर इस गाने के युगल नृत्य में वहीदा रहमान थीं पर इस दृश्य का ' नायक ' कोई अनजान सा . संगीत में नगाडा भी शामिल था .
शरद तेलंग जी आप पहले ही प्रतियोगिता से ' आउट ' हैं . निर्णायक मंडल में शामिल हैं मेरे साथ !.
तो दादा हो जाये ! कुछ हटके !
to iske gayak gayika aur sangeetkar.........
kaun the ?
पुनश्च : शर्त अगर इस सीरीज की राज कपूर के होने की है तो गाने के बीच उन पर कैमरा ' बड़ी ' बाँकी अदा ' से गुजरा है .
' तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफाम '
पर आधारित है .
' ताई ' के स्नेह नाम से पुकारी जाने वाली उनकी आत्मीय पारिवारिक मित्र के साथ शैलेन्द्र जी से दो बार मुलाकात का सौभाग्य पाया , उसी ' दुस्काल ' में जब ' तीसरी कसम ' आर्थिक संकट में फंस ठप हो गयी थी .शैलेन्द्र जी अपने अवसाद विषाद में घिर गए थे .
ताई जीवन बीमा की एजेंट थीं और साम्यवादी कार्यकर्त्ता भी .और शैलेन्द्र जी की जीवन बीमा पालिसी भी उन्हीं ने कराई थी . उन्हीं बुरे दिनों में ,शैलेन्द्र जी किश्तें भी न भर पाए और मृत्यु होने पर सालों से चली आ रही पॉलिसी के पैसे से भी परिवार महरूम रह गया .
सब याद कर के मन भर जाता है की शैलेन्द्र जी ने सेल्ल्यूलायिद पर लिखी एक कोमल प्रणय कथा , हर लिहाज़ से अप्रतिम , मील का पत्थर , हमारे लिए छोड़ गए , पर कीमत क्या चुकाई !
agar aapke paas iska mp3 maujood ho to zaroor bhejiyega. aur teesri kasam sambandhit saari jaankaariyon ke liye bahut dhanyavaad
DADA MAIN COMPUTER SAKCHARATA ME KAREEB KAREEB NIRAKCHAR HOON , AUR MERE PAS JO SANGRAH HAI UNAME BADE SARE AUDIO CD VAGAIRAH HEE HAIN AUR AB KEE AUDIO CD DVD VAGAIRAH .MUMBAI ME MERA YE KAM BHEE (TECHNICAL) TEAM SADASY HEE KARTE HAIN .DVD SE MP3 CONVERSION AGAR AAP KAR SAKEN TO THEEK HAI VARNA KAHEN TO PHONE KAR MUMBAI SE IS GANE KA DVD SE UTAR MP3 BANVA AAPKO BHIJVAOON .
DADA BRAVO ! AAP TO ONE MAN ARMY HAIN .BAS AISE HEE CHALATA RAHE