ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 122
समय समय पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हास्य व्यंग की बौछार लेकर आते रहे हैं हमारे और आपके, सब के प्रिय किशोर दा। संजीदे, भावुक और ग़मगीन गीतों को सुनते सुनते जब दिल भर आता है, ऐसे में किशोर दा के चुलबुले गीत एक ठंडी हवा के झोंके की तरह आते है और हमें गुदगुदा जाते है। आज भी कुछ ऐसा ही रंगीन समा बँध रहा है इस महफ़िल में। किशोर कुमार के अभिनय से सजी हास्य फ़िल्मों की बात करें तो 'चलती का नाम गाड़ी' एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही है। फ़िल्म की खासियत यह है कि इसमें किशोर कुमार, अशोक कुमार और अनूप कुमार तीनों ने अभिनय किया है और फ़िल्म में भी इन्होने तीन भाइयों के किरदार निभाये हैं। के. एस. फ़िल्म्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था सत्येन बोस ने। किशोर कुमार की जोड़ी इस फ़िल्म में मधुबाला के साथ बनायी गयी। फ़िल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी कि ये तीन भाई एक मोटर गैरज चलाते हैं। एक रात बारिश में भीगती हुई एक अमीर लड़की (मधुबाला) गैरज में आती है अपनी गाड़ी ठीक करवाने के लिए। गैरज में उस वक़्त मौजूद होते हैं किशोर दा। और आगे चलकर दोनों में हो जाता है प्यार। इस हास्य फ़िल्म को सफल बनाने में किशोर दा के मैनरिज़्म्स के साथ साथ फ़िल्म के गीत संगीत का भी ज़बरदस्त हाथ रहा है। मजरूह साहब के गीत और सचिन देव बर्मन के पाश्चात्य शैली में रचे संगीत ने सभी को थिरकने पर मजबूर कर दिया था। फिर चाहे वो "बाबु समझो इशारे" हो या "एक लड़की भीगी भागी सी", "पाँच रुपया बारह आना" हो या फिर "हम थे वो थीं और समा रंगीन समझ गये ना"। जी हाँ आज सुनिये समा को रंगीन बनाता हुआ यह नग़मा। इस गीत की खासियत है इसकी कैच लाइन, जो है "मन्नु, तेरा हुआ, अब मेरा क्या होगा", जिसे हर अंतरे के बाद अनूप कुमार गाते हैं। यहाँ पर यह बताना आवश्यक है कि फ़िल्म में मन्नु किशोर कुमार के किरदार का नाम होता है।
दोस्तों, शायद आप को याद हो, बरसों पहले विविध भारती पर एक प्रायोजित कार्यक्रम हुआ करता था 'फ़िल्मी मुक़द्दमा', जिसे पेश किया करते थे अमीन सायानी साहब। तो एक बार उसमें किशोर कुमार ने शिरकत की थी और जिसमें उन्होने सचिन देव बर्मन के बारे में विस्तार से बताया था। तो दोस्तों, आज जब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में मौका हमारे हाथ लगा है किशोर दा के गाये और सचिन दा के स्वरबद्ध किये गीत को सुनवाने का, तो क्यों न उसी कार्यक्रम से एक अंश यहाँ पर पेश कर दिया जाये! किशोर दा कहते हैं - "मैं बम्बई आ गया। मेरे बड़े भाई साहब, यानी आप के अशोक कुमार साहब उस समय बहुत बड़े 'फ़िल्म स्टार' बन गये थे। मैं आते ही उनसे कहा, 'दादामुनि, आप तो फ़िल्मों में सब कुछ कर सकते हो, मेरा भी एक काम कर दो ना!' उन्होने कहा 'क्या काम?' मैने कहा 'मुझे सचिन देव बर्मन से मिला दो ना'। उन्होंने बोला 'बस इतनी सी बात, मै तो उन्हे अच्छी तरह जानता हूँ, मेरे फ़िल्म में म्युज़िक भी दे रहे हैं, चल उनके घर चलें। और हम पहुँच गये उनके घर। और जब उनसे मिला मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। बड़े निराले लगे, धोती-कुर्ता और दोनो कलाइयों में चमेली के गजरे। तम्बाकू वाला पान चबाते चबाते हारमोनियम बजा रहे थे। और उनके बाजू में बैठा एक छोटा सा लड़का चश्मा लगाये तबला बजा रहा था। जानते हैं वो बच्चा कौन था? आप के आर. डी. बर्मन और हम लोगों का पंचम। थोड़ी देर के बाद दादामुनि ने बताया कि 'यह जो मेरा छोटा भाई है न, यह भी थोड़ा थोड़ा गा लेता है।' उन्होने कहा 'तुम्हरा भाई, क्या नाम है तुम्हारा?' मैनें कहा 'मेरा नाम किशोर'। बोले 'ओ किशोर, ज़रा गायो तो।' मैने उनका वही गाना गाया जो उस वक़्त बहुत पापुलर था, बंगला में। गाना था "कौन नगरिया जायो रे बंसीवाले, कौन नगरिया जायो"। वो तो हँसते हँसते बोले, "वंडरफ़ुल, ये तो हमारा कापी करता है, दादामुनि इसका आवाज़ बहुत अच्छा, ए तो खूब भालो गान कोरे, आमि एके निश्चोई चांस देबो' (ये तो बहुत अच्छा गाता है, मैं इसे ज़रूर चांस दूँगा)। मैं सोच भी नहीं सकता था कि सचिन दा मुझे गाना गवायेंगे। मैं तो फूल के गुब्बारा हो गया।"
तो आप ने पढ़ा दोस्तों किशोर दा और सचिन दा की पहली मुलाक़ात का क़िस्सा! आगे चलकर इसी कार्यक्रम से और भी मज़ेदार बातें और क़िस्से आप तक पहुँचाये जायेंगे इस शृंखला के अंतर्गत। तो आज बस यहीं तक, अब आप सुनिये आज का प्रस्तुत गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. लता और मन्ना डे का युगल स्वर.
२. संगीत मदन मोहन का.
३. मुखड़े में शब्द है -"सितारे".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह शरद जी सही जवाब देकर २४ अंकों पर पहुँचने की बधाई. स्वप्न मंजूषा जी ऐसा हो जाता है अक्सर, एक बात कहेंगें आपकी तारीफ में, जब से आप ओल्ड इस गोल्ड के हमसफ़र हुए हैं, तब से श्रोताओं में प्रस्तुत गीत की चर्चा खूब हो रही है, जिसे आप बहुत अच्छी तरह संभाल भी रही हैं, दरअसल हमें भी तब अधिक मज़ा आता है जब हमारे श्रोता प्रस्तुत गीत से जुड़े उनके खुद के अनुभव और ज्ञान को सबके साथ बांटते हैं. बहुत बहुत धन्येवाद आपका. राज जी आपकी फरमाईश हमने नोट कर ली है, जल्द ही इस गीत पर भी चर्चा करेंगें, दिशा जी, पराग जी, मनु जी आप सब का आना सुखद लगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
समय समय पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हास्य व्यंग की बौछार लेकर आते रहे हैं हमारे और आपके, सब के प्रिय किशोर दा। संजीदे, भावुक और ग़मगीन गीतों को सुनते सुनते जब दिल भर आता है, ऐसे में किशोर दा के चुलबुले गीत एक ठंडी हवा के झोंके की तरह आते है और हमें गुदगुदा जाते है। आज भी कुछ ऐसा ही रंगीन समा बँध रहा है इस महफ़िल में। किशोर कुमार के अभिनय से सजी हास्य फ़िल्मों की बात करें तो 'चलती का नाम गाड़ी' एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही है। फ़िल्म की खासियत यह है कि इसमें किशोर कुमार, अशोक कुमार और अनूप कुमार तीनों ने अभिनय किया है और फ़िल्म में भी इन्होने तीन भाइयों के किरदार निभाये हैं। के. एस. फ़िल्म्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था सत्येन बोस ने। किशोर कुमार की जोड़ी इस फ़िल्म में मधुबाला के साथ बनायी गयी। फ़िल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी कि ये तीन भाई एक मोटर गैरज चलाते हैं। एक रात बारिश में भीगती हुई एक अमीर लड़की (मधुबाला) गैरज में आती है अपनी गाड़ी ठीक करवाने के लिए। गैरज में उस वक़्त मौजूद होते हैं किशोर दा। और आगे चलकर दोनों में हो जाता है प्यार। इस हास्य फ़िल्म को सफल बनाने में किशोर दा के मैनरिज़्म्स के साथ साथ फ़िल्म के गीत संगीत का भी ज़बरदस्त हाथ रहा है। मजरूह साहब के गीत और सचिन देव बर्मन के पाश्चात्य शैली में रचे संगीत ने सभी को थिरकने पर मजबूर कर दिया था। फिर चाहे वो "बाबु समझो इशारे" हो या "एक लड़की भीगी भागी सी", "पाँच रुपया बारह आना" हो या फिर "हम थे वो थीं और समा रंगीन समझ गये ना"। जी हाँ आज सुनिये समा को रंगीन बनाता हुआ यह नग़मा। इस गीत की खासियत है इसकी कैच लाइन, जो है "मन्नु, तेरा हुआ, अब मेरा क्या होगा", जिसे हर अंतरे के बाद अनूप कुमार गाते हैं। यहाँ पर यह बताना आवश्यक है कि फ़िल्म में मन्नु किशोर कुमार के किरदार का नाम होता है।
दोस्तों, शायद आप को याद हो, बरसों पहले विविध भारती पर एक प्रायोजित कार्यक्रम हुआ करता था 'फ़िल्मी मुक़द्दमा', जिसे पेश किया करते थे अमीन सायानी साहब। तो एक बार उसमें किशोर कुमार ने शिरकत की थी और जिसमें उन्होने सचिन देव बर्मन के बारे में विस्तार से बताया था। तो दोस्तों, आज जब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में मौका हमारे हाथ लगा है किशोर दा के गाये और सचिन दा के स्वरबद्ध किये गीत को सुनवाने का, तो क्यों न उसी कार्यक्रम से एक अंश यहाँ पर पेश कर दिया जाये! किशोर दा कहते हैं - "मैं बम्बई आ गया। मेरे बड़े भाई साहब, यानी आप के अशोक कुमार साहब उस समय बहुत बड़े 'फ़िल्म स्टार' बन गये थे। मैं आते ही उनसे कहा, 'दादामुनि, आप तो फ़िल्मों में सब कुछ कर सकते हो, मेरा भी एक काम कर दो ना!' उन्होने कहा 'क्या काम?' मैने कहा 'मुझे सचिन देव बर्मन से मिला दो ना'। उन्होंने बोला 'बस इतनी सी बात, मै तो उन्हे अच्छी तरह जानता हूँ, मेरे फ़िल्म में म्युज़िक भी दे रहे हैं, चल उनके घर चलें। और हम पहुँच गये उनके घर। और जब उनसे मिला मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। बड़े निराले लगे, धोती-कुर्ता और दोनो कलाइयों में चमेली के गजरे। तम्बाकू वाला पान चबाते चबाते हारमोनियम बजा रहे थे। और उनके बाजू में बैठा एक छोटा सा लड़का चश्मा लगाये तबला बजा रहा था। जानते हैं वो बच्चा कौन था? आप के आर. डी. बर्मन और हम लोगों का पंचम। थोड़ी देर के बाद दादामुनि ने बताया कि 'यह जो मेरा छोटा भाई है न, यह भी थोड़ा थोड़ा गा लेता है।' उन्होने कहा 'तुम्हरा भाई, क्या नाम है तुम्हारा?' मैनें कहा 'मेरा नाम किशोर'। बोले 'ओ किशोर, ज़रा गायो तो।' मैने उनका वही गाना गाया जो उस वक़्त बहुत पापुलर था, बंगला में। गाना था "कौन नगरिया जायो रे बंसीवाले, कौन नगरिया जायो"। वो तो हँसते हँसते बोले, "वंडरफ़ुल, ये तो हमारा कापी करता है, दादामुनि इसका आवाज़ बहुत अच्छा, ए तो खूब भालो गान कोरे, आमि एके निश्चोई चांस देबो' (ये तो बहुत अच्छा गाता है, मैं इसे ज़रूर चांस दूँगा)। मैं सोच भी नहीं सकता था कि सचिन दा मुझे गाना गवायेंगे। मैं तो फूल के गुब्बारा हो गया।"
तो आप ने पढ़ा दोस्तों किशोर दा और सचिन दा की पहली मुलाक़ात का क़िस्सा! आगे चलकर इसी कार्यक्रम से और भी मज़ेदार बातें और क़िस्से आप तक पहुँचाये जायेंगे इस शृंखला के अंतर्गत। तो आज बस यहीं तक, अब आप सुनिये आज का प्रस्तुत गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. लता और मन्ना डे का युगल स्वर.
२. संगीत मदन मोहन का.
३. मुखड़े में शब्द है -"सितारे".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह शरद जी सही जवाब देकर २४ अंकों पर पहुँचने की बधाई. स्वप्न मंजूषा जी ऐसा हो जाता है अक्सर, एक बात कहेंगें आपकी तारीफ में, जब से आप ओल्ड इस गोल्ड के हमसफ़र हुए हैं, तब से श्रोताओं में प्रस्तुत गीत की चर्चा खूब हो रही है, जिसे आप बहुत अच्छी तरह संभाल भी रही हैं, दरअसल हमें भी तब अधिक मज़ा आता है जब हमारे श्रोता प्रस्तुत गीत से जुड़े उनके खुद के अनुभव और ज्ञान को सबके साथ बांटते हैं. बहुत बहुत धन्येवाद आपका. राज जी आपकी फरमाईश हमने नोट कर ली है, जल्द ही इस गीत पर भी चर्चा करेंगें, दिशा जी, पराग जी, मनु जी आप सब का आना सुखद लगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
mera email:
kavya.manjusha@gmail.com
aapke email ka intezaar rahega
main wahan email check karungi,
ek baar fir ham saath saath hai , very good, aapko bhi badhai aur mujhe bhi, ab mai chalti hun
सादर
रचना
मै www.geetadutt.com पर गया था download/ jukebox पर click किया पर वो काम नही कर रहा, बार बार home page ही खुल रहा है
लगता हैं शरद जी और स्वप्न मंजूषा जी बहुत जल्द अपनी पसंद के गाने हमें सुनवायेंगे
सुजॉय जी, एक बार ५० अंक मिलनेके बाद क्या होगा ? शरद जी को "हॉल ऑफ़ फेम" में शामिल करेंगे, या उनके लिए अंकोंकी गिनती फिर शून्य से शुरू करेंगे?
अभी से सोच के रखना पडेगा
आभारी
पराग
सुमित भैया के कमेन्ट चार चार....
अब के आप ही को न बनाया जाए यूनिपाठक.....??
शन्नो जी भी यही कह रही हैं,,,
हमारी वेबसाइट को देखने के लिए बहुत शुक्रिया. उम्मीद है की आप को हमारी यह कोशीश पसंद आयी होगी. जुक्बोक्स विभाग अभी चालू नहीं है. उम्मीद है की भविष्य में इसे भी बना देंगे ताकि संगीत प्रेमी गीता जी के गाये गीत सुन सके. तबतक आप हमारे यूट्यूब चैनल पर जाकर गीता जी के गाये लगभग २८० गाने सुन और देख सकते हैं. पता नीचे दे रहा हूँ
http://www.youtube.com/user/wwwgeetaduttcom
आभारी
पराग
OIG zindabaad !!