ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 117
जहाँ तक मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त के गाये युगल गीतों की बात है, हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कई बार ऐसे गीत बजाये हैं। और वो सभी के सभी नय्यर साहब के संगीत निर्देशन में थे। आज भी एक रफ़ी-गीता डुएट लेकर हम ज़रूर आये हैं लेकिन ओ. पी. नय्यर के संगीत में नहीं, बल्कि एन. दत्ता के संगीत निर्देशन में। जी हाँ, यह गीत है फ़िल्म 'मिलाप' का। वही देव आनंद - गीता बाली वाली 'मिलाप' जो बनी थी सन् १९५५ में और जिसमें एन. दत्ता ने पहली बार बतौर स्वतंत्र संगीतकार संगीत दिया था। केवल एन. दत्ता का ही नहीं, बल्कि फ़िल्म के निर्देशक राज खोंसला का भी यह पहला निर्देशन था। इससे पहले उन्होने गुरु दत्त के सहायक निर्देशक के रूप में फ़िल्म 'बाज़ी' ('५१), 'जाल' ('५२), 'बाज़' ('५३) और 'आर पार' (१९५४) काम कर चुके थे। इसलिए एक अच्छे फ़िल्म निर्देशक बनने के सारे गुण उनमे समा चुके थे। जिस तरह से इस फ़िल्म में उन्होने नायिका गीता बाली की 'एन्ट्री' करवाई है "हमसे भी कर लो कभी कभी तो" गीत में, यह हमें याद दिलाती है गुरु दत्त साहब की जिन्होने कुछ इसी अंदाज़ में शक़ीला का 'एन्ट्री' करवाया था "बाबुजी धीरे चलना" गीत में, फ़िल्म 'आर पार' में। फ़िल्म 'मिलाप' फ़्रैंक काप्रा के मशहूर कृति 'मिस्टर डीड्स गोज़ टु टाउन' (१९३६) से प्रेरीत था। इस फ़िल्म के पहले दिन की शूटिंग से संबंधित एक हास्यास्पद घटना आपको बताते हैं। हुआ यूँ कि राज खोंसला साहब, जो अब तक गुरु दत्त के सहायक हुआ करते थे, उन्हे अब 'मिलाप' में निर्देशक बना दिया गया था। तो पहले दिन की शूटिंग के वक़्त जब उन्हे यह बताया गया कि शॉट रेडी है, तो वो अपनी पुरानी आदत के मुताबिक बोल उठे, "गुरु दत्त को बुलाओ"। यह सुनकर के. एन. सिंह, जो पास ही बैठे हुए थे, ज़ोर से हँस पड़े।
'मिलाप' के संगीतकार दत्ता नाइक, जिन्हे हम और आप एन. दत्ता के नाम से जानते हैं, की यह पहली फ़िल्म थी बतौर स्वतंत्र संगीतकार। इससे पहले वो सचिन दा के सहायक हुआ करते थे। उनकी प्रतिभा नज़रंदाज़ नहीं हुई और उन्हे इस फ़िल्म में पहला ब्रेक मिल गया। बर्मन दादा के साथ काम करते वक़्त एन. दत्ता साहिर लुधियानवी के संस्पर्श में भी आये जिनके क्रांतिकारी ख्यालातों से वो काफ़ी मुतासिर भी थे। एन. दत्ता और साहिर की जोड़ी बनी और दोनो ने साथ साथ कई फ़िल्मों का गीत संगीत तैयार किया। 'मिलाप' पहली फ़िल्म थी। आज फ़िल्म 'मिलाप' को याद किया जाता है तो गीता दत्त के गाये "जाते हो तो जाओ तुम जाओगे कहाँ, मेरे जैसा दिल तुम पायोगे कहाँ" गीत की वजह से। हालाँकि इस फ़िल्म के और भी कई गीत उस समय काफ़ी लोकप्रिय हुए थे, लेकिन यह गीत सबसे ज़्यादा चला था। गीता दत्त और रफ़ी साहब की आवाज़ों में जिस गीत का ज़िक्र हमने उपर किया और जिस गीत को आज हम सुनवा रहे हैं वह गीत है "बचना ज़रा ये ज़माना है बुरा, कभी मेरी गली में ना आना". जॉनी वाकर और गीता बाली पर फ़िल्माये गये इस गीत में राज खोंसला और एन. दत्ता ने वही बात पैदा करने की कोशिश की है जो गुरु दत्त और ओ. पी. नय्यर या बर्मन दादा किया करते थे। फ़िल्म 'मिलाप' के संगीत ने एन. दत्ता को फ़िल्म जगत में काफ़ी हद तक स्थापित कर दिया। तो लीजिये आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में संगीतकार एन. दत्ता को याद करते हुए सुनिये यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. नायिका की सुन्दरता का बयां है ये गीत.
२. रचा है आनंद बख्शी ने.
३. मुखड़े में शब्द है -"हुस्न".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न मंजूषा जी १० अंकों के लिए बधाई. शरद जी, रचना जी आप सब को भी सही गीत पहचानने के लिए बधाई. पराग जी बहुत अच्छी जानकारी दी आपने, वाकई इस तीनों गायिकाओं का एक फिल्म में गीत होना दुर्लभ ही है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
जहाँ तक मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त के गाये युगल गीतों की बात है, हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कई बार ऐसे गीत बजाये हैं। और वो सभी के सभी नय्यर साहब के संगीत निर्देशन में थे। आज भी एक रफ़ी-गीता डुएट लेकर हम ज़रूर आये हैं लेकिन ओ. पी. नय्यर के संगीत में नहीं, बल्कि एन. दत्ता के संगीत निर्देशन में। जी हाँ, यह गीत है फ़िल्म 'मिलाप' का। वही देव आनंद - गीता बाली वाली 'मिलाप' जो बनी थी सन् १९५५ में और जिसमें एन. दत्ता ने पहली बार बतौर स्वतंत्र संगीतकार संगीत दिया था। केवल एन. दत्ता का ही नहीं, बल्कि फ़िल्म के निर्देशक राज खोंसला का भी यह पहला निर्देशन था। इससे पहले उन्होने गुरु दत्त के सहायक निर्देशक के रूप में फ़िल्म 'बाज़ी' ('५१), 'जाल' ('५२), 'बाज़' ('५३) और 'आर पार' (१९५४) काम कर चुके थे। इसलिए एक अच्छे फ़िल्म निर्देशक बनने के सारे गुण उनमे समा चुके थे। जिस तरह से इस फ़िल्म में उन्होने नायिका गीता बाली की 'एन्ट्री' करवाई है "हमसे भी कर लो कभी कभी तो" गीत में, यह हमें याद दिलाती है गुरु दत्त साहब की जिन्होने कुछ इसी अंदाज़ में शक़ीला का 'एन्ट्री' करवाया था "बाबुजी धीरे चलना" गीत में, फ़िल्म 'आर पार' में। फ़िल्म 'मिलाप' फ़्रैंक काप्रा के मशहूर कृति 'मिस्टर डीड्स गोज़ टु टाउन' (१९३६) से प्रेरीत था। इस फ़िल्म के पहले दिन की शूटिंग से संबंधित एक हास्यास्पद घटना आपको बताते हैं। हुआ यूँ कि राज खोंसला साहब, जो अब तक गुरु दत्त के सहायक हुआ करते थे, उन्हे अब 'मिलाप' में निर्देशक बना दिया गया था। तो पहले दिन की शूटिंग के वक़्त जब उन्हे यह बताया गया कि शॉट रेडी है, तो वो अपनी पुरानी आदत के मुताबिक बोल उठे, "गुरु दत्त को बुलाओ"। यह सुनकर के. एन. सिंह, जो पास ही बैठे हुए थे, ज़ोर से हँस पड़े।
'मिलाप' के संगीतकार दत्ता नाइक, जिन्हे हम और आप एन. दत्ता के नाम से जानते हैं, की यह पहली फ़िल्म थी बतौर स्वतंत्र संगीतकार। इससे पहले वो सचिन दा के सहायक हुआ करते थे। उनकी प्रतिभा नज़रंदाज़ नहीं हुई और उन्हे इस फ़िल्म में पहला ब्रेक मिल गया। बर्मन दादा के साथ काम करते वक़्त एन. दत्ता साहिर लुधियानवी के संस्पर्श में भी आये जिनके क्रांतिकारी ख्यालातों से वो काफ़ी मुतासिर भी थे। एन. दत्ता और साहिर की जोड़ी बनी और दोनो ने साथ साथ कई फ़िल्मों का गीत संगीत तैयार किया। 'मिलाप' पहली फ़िल्म थी। आज फ़िल्म 'मिलाप' को याद किया जाता है तो गीता दत्त के गाये "जाते हो तो जाओ तुम जाओगे कहाँ, मेरे जैसा दिल तुम पायोगे कहाँ" गीत की वजह से। हालाँकि इस फ़िल्म के और भी कई गीत उस समय काफ़ी लोकप्रिय हुए थे, लेकिन यह गीत सबसे ज़्यादा चला था। गीता दत्त और रफ़ी साहब की आवाज़ों में जिस गीत का ज़िक्र हमने उपर किया और जिस गीत को आज हम सुनवा रहे हैं वह गीत है "बचना ज़रा ये ज़माना है बुरा, कभी मेरी गली में ना आना". जॉनी वाकर और गीता बाली पर फ़िल्माये गये इस गीत में राज खोंसला और एन. दत्ता ने वही बात पैदा करने की कोशिश की है जो गुरु दत्त और ओ. पी. नय्यर या बर्मन दादा किया करते थे। फ़िल्म 'मिलाप' के संगीत ने एन. दत्ता को फ़िल्म जगत में काफ़ी हद तक स्थापित कर दिया। तो लीजिये आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में संगीतकार एन. दत्ता को याद करते हुए सुनिये यह गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. नायिका की सुन्दरता का बयां है ये गीत.
२. रचा है आनंद बख्शी ने.
३. मुखड़े में शब्द है -"हुस्न".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न मंजूषा जी १० अंकों के लिए बधाई. शरद जी, रचना जी आप सब को भी सही गीत पहचानने के लिए बधाई. पराग जी बहुत अच्छी जानकारी दी आपने, वाकई इस तीनों गायिकाओं का एक फिल्म में गीत होना दुर्लभ ही है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगे
फिल्म का नाम है फूल बने अंगारे
गायक मुकेश
वर्ष १९६३
हम सभी हिंदी-युग्म में प्रतियोगिताओं वाले पन्नों का इंतज़ार करते रहते हैं, लेकिन इन सबको हम तक पहुँचाने में कितने लोगों की मेहनत होती है, इसे बिलकुल भूल जाते हैं, मैंने देखा है की सजीव सारथी जी हर पोस्ट को बिलकुल समय पर हम तक लाते हैं, मैं सजीव जी को बधाई देना चाहती हूँ, और यह भी बताना चाहती हूँ कि आप लोगों का हर शेत्र में , कविता, कहानी, पहेली इत्यादि पर बिलकुल टाइम से पोस्टिंग करना बहुत प्रभावशाली है, और इसके लिए हम सभी आभारी हैं,
शरद जी मैंने आप को एक इमेल भेजा है, आप के जवाब का इंतज़ार रहेगा.
आभार
पराग