Skip to main content

धूप के सिक्के है प्रसून का ताज़ा गीत

ताजा सुर ताल (4)

गीत - धूप के सिक्के
फिल्म - सिकंदर
गीतकार - प्रसून जोशी
संगीतकार - शंकर एहसान लॉय
गायन - शंकर महादेवन, आयिशा


"ठंडा मतलब कोला कोला" जुमला देकर प्रसून ने इस शीतल पेय को घर घर में स्थापित कर दिया, मूल रूप से खुद को हिंदी कवि कहने वाले प्रसून जोशी ने बेशक धनार्जन के लिए विज्ञापन इंडस्ट्री में पैठ जमाई पर उनके हुनर को असली मंजिल मिली हिंदी फिल्मों में गीत लिखकर. राज कुमार संतोषी की फिल्म "लज्जा" से उन्होंने गीतकारी की शुरुआत की. यश चोपडा की "हम तुम" में उनके लिखे गीत "सांसों को सांसों में घुलने दो ज़रा" को इतनी ख्याति मिली कि जानकार इसे हिंदी फिल्मों के श्रेष्ठतम युगल गीतों में शुमार करने लगे. इसी फिल्म में उनका लिखा "लड़कियां न जाने क्यों लड़कों सी नहीं होती" आदमी और औरत की मूलभूत प्रवर्तियों जो उनके बीच आकर्षण का भी कारण बनती है और मतभेद का भी, को बेहद खूबसूरत और दिलचस्प अंदाज़ में उजागर करता है. "रंग दे बसंती" को नयी सदी की एक मील का पत्थर फिल्म कही जा सकती है, यहाँ प्रसून को साथ मिला संगीत सरताज ए आर रहमान का. प्रसून ने न सिर्फ इस फिल्म के यादगार गीत लिखे बल्कि इस फिल्म में संवाद भी उन्ही के थे. इस फिल्म के "खलबली" गीत का जिक्र करते हुए प्रसून ने एक बार कहा था- "मैं और रहमान रात भर इस गीत पर काम करते रहे, सुबह मैं उनके रिकॉर्डिंग स्टूडियो से वापस लौट रहा था तो रहमान का फ़ोन आया. उन्होंने कहा कि वो जो हिस्सा है गीत का 'जिद्दी जिद्दी जिद्दी' वाला उसमें कुछ और तरह के शब्द चाहते हैं. पहले इस धुन पर मैंने कुछ और लिखा था पर जब उन्होंने जिद्द की यहाँ कुछ और लिखो तो मैंने फ़ोन पर ही उनसे कहा कि आप बहुत जिद्दी हैं और गाकर सुनाया जिद्दी जिद्दी रहमान...बस इसी तरह ये जिद्दी शब्द इस गीत में आया."

प्रसून और रहमान की जोड़ी ने "दिल्ली ६" और "गजिनी" में भी जम कर रंग जमाया. "फ़ना" में जतिन ललित के लिए "चाँद सिफारिश" और "तारे ज़मीन पर" में शंकर एहसान लॉय के लिए "माँ" जैसे गीत उनकी कलम से निकले कालजयी गीतों में शामिल हैं. २००७ और २००८ में उन्होंने लगातार फिल्म फेयर जीता. १६ सितम्बर १९७१ उत्तराखंड में जन्में प्रसून की लिखी कविताओं की किताब "मैं और वो" जब प्रकाशित हुई तब वह मात्र १७ वर्ष के थे. फ़िल्मी गीतों में भी उनका शब्दकोष सीमित नहीं है. नए शब्दों के साथ नए तजुर्बे करना उनकी खासियत है. "मसकली" की उड़ान हो या ज़मीन पर उतरे "तारों" का दर्द हो, स्त्री स्वतंत्रता की तान छेड़ते "मन के मंजीरे" हो फिर सिल्क रूट का "डूबा डूबा" प्यार का खुमार हो, प्रसून की छाप उनके लिखे हर गीत में झलकती है. शंकर एहसान लॉय की तिकडी के साथ उन्होंने फिर से काम किया है फिल्म "सिकंदर" में जिसका गीत आज हम यहाँ आपके लिए लेकर हाज़िर हुए हैं.

सुधीर मिश्रा की सिने रास और बिग पिक्चर के बैनर पर बनी यह फिल्म एक सस्पेंस थ्रिल्लर है, जो एक १४ साल के बच्चे के इर्द गिर्द घूमती है. "किंग ऑफ़ बॉलीवुड" और "चलो अमेरिका" जैसी फिल्मों के निर्देशक पियूष झा ने संभाली है निर्देशन की कमान तो परजान दस्तूर (याद कीजिये कुछ कुछ होता है का वो नन्हा सरदार) हैं सिकंदर की भूमिका में, साथ में हैं संजय सूरी और आर माधवन. फिल्म ब्लैक की नन्ही लड़की आयेशा कपूर ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. दो संगीतकार हैं शंकर एहसान लॉय और सन्देश संदलिया. प्रसून के आलावा नीलेश मिश्रा और कुमार ने भी गीत लिखे हैं फिल्म के लिए. फिल्म का अधिकतर हिस्सा कश्मीर की वादियों में शूट हुआ है, और तमाम हिंसा के बीच भी फिल्म शांति का सन्देश देती है. फिल्म जल्दी ही आपके नजदीकी सिनेमा घरों में होगी, पर आज आप सुनिए इस फिल्म से ये ताज़ा तरीन गीत, प्रसून जोशी का लिखा, धुन है शंकर एहसान लॉय की, और गाया है खुद शंकर ने और साथ दिया है आयिशा ने. पर गीत को सुनने से पहले देखिये प्रसून के हुनर की ये बानगी.

धूप के सिक्के उठाकर गुनगुनाने दो उसे,
बैंगनी कंचे हथेली पर सजाने दो उसे,
भोली भाली भोली भाली रहने दो
जिन्दगी को जिन्दगी को बहने दो....

बारूद जब बच्चा था वो तितली पकड़ता था,
वो अम्बिया भी चुराता था पतंगों पर झगड़ता था,
अगर तुम उसका मांझा लूटते वो कुछ नहीं कहता,
थोडा नाराज़ तो होता मगर फिर भी वो खुश रहता,
मगर धोखे से तुमने उसका बचपन भी तो लूटा है,
ज़रा देखो तो उसकी आँखों में वो कबसे रूठा है,
जुगनुओं की रोशनी में दिल लगाने दो उसे...

बहुत जल्दी दुपट्टे ओढ़ना सिखा रहे हैं हम,
क्यों जिंदगी को रात से मिलवा रहे हैं हम,
वो पल्लू से चिपक कर माँ के चलती थी तो अच्छी थी,
अकेला छोड़कर उसकी क्या कहना चाह रहे हैं हम,
एक गहरी नींद से हमको जगाने दो उसे....

भोली भाली...


और अब सुनिए ये ताज़ा संगीत -

Comments

सजीव जी, यूँ तो मैं गुलज़ार साहब का जबर्दस्त फ़ैन हूँ, लेकिन यह स्वीकारता हूँ कि उनके बाद जिनका लिखा मुझे सबसे ज्यादा भाता है, वो हैं प्रसून जोशी साहब। बिना कुछ कहे हीं सब कुछ कह जाने की इनकी अदा काबिल-ए-तारीफ़ है। गानों में मुझे वही गाने पसंद आते है,जिनमें नए भाव हों और उससे भी ज्यादा नए शब्द हों और नए न भी हों तो लीक से हटकर शब्द हों और इस फ़न में प्रसून साहब माहिर हैं। "रत्ती", "खुरदरा", "खलबली" जैसे शब्द कितने लोग हैं, जो गानों में इस्तेमाल करना चाहते है!

प्रसून जोशी जी का यह गाना सुनवाने के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रिया।

-विश्व दीपक
Manju Gupta said…
Prasun ji ka yah gana suna.

Navinta ke liye badayi.



Manju Gupta.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट