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चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे...अमर कर दिया है रफी साहब ने इस गीत को अपनी आवाज़ से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 110

न् १९६४ की फ़िल्म 'दोस्ती' संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के करीयर की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही है। सत्येन बोस निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सुधीर कुमार और सुशील कुमार जिन्होने इस फ़िल्म में दो अपाहिज दोस्तों के किरदार अदा किये थे। इस फ़िल्म का लता मंगेशकर का गाया एकमात्र गीत हम आपको इस शृंखला में पहले ही सुनवा चुके हैं। फ़िल्म के बाक़ी सभी गीत (मेरे ख़याल से ६ में से ५ गीत) रफ़ी साहब की एकल आवाज़ मे हैं। "जानेवालों ज़रा मुड़के देखो मुझे, एक इंसान हूँ मैं तुम्हारी तरह", "कोई जब राह न पाये, मेरे संग आये और पग पग दीप जलाये, मेरी दोस्ती मेरा प्यार", "राही मनवा दुख की चिंता क्युं सताती है, दुख तो अपना साथी है", "मेरा तो जो भी क़दम है तुम्हारी राहों में है" जैसे गीत ज़ुबाँ ज़ुबाँ पर चढ़ गये थे, लेकिन सबसे ज़्यादा जिस गीत को ख्याती मिली थी वह गीत था "चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे, आवाज़ मैं न दूँगा", और यही गीत आज आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। कहा जाता है कि शुरु में यह गीत लताजी गाने वाली थीं और मजरूह साहब ने बोल भी नायिका की दृष्टि से लिखे हुए थे। लेकिन गीत की धुन सभी को इतनी अच्छी लगी कि इस गीत को फ़िल्म के नायक पर फ़िल्माने का निर्णय लिया गया क्यूंकि यह नायक प्रधान फ़िल्म थी। लता का स्वर तो इस गाने मे नहीं गूँज पाया लेकिन रफ़ी साहब की आवाज़ कमाल कर गयी।

प्यारेलाल ने एक बार कहा था कि १९६३ में प्रदर्शित उनकी पहली कामयाब फ़िल्म 'पारसमणि' के लिए उन्हे कुछ ४००० रूपए मिले थे, लेकिन उसके अगले ही साल आयी फ़िल्म 'दोस्ती' के लिए उन्होने लिया था १०,००० रूपए, जो उन दिनों के हिसाब से काफ़ी बड़ी रकम थी। यह तो आपको पता ही होगा दोस्तों कि फ़िल्म 'दोस्ती' के लिये लक्ष्मी-प्यारे को उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार मिला था। लेकिन इस पुरस्कार को पाने के लिए उन्होने क्या किया था, यह आप पढ़िये ख़ुद प्यारेलालजी के ही शब्दों में, विविध भारती के सौजन्य से - "१०,००० रूपए हमने लिया था, और फ़िल्म-फ़ेयर अवार्ड के लिए ६५,००० रुपयों का हमने लोन लिया था। फ़िल्म-फ़ेयर में वो भरने के लिए, फ़िल्म-फ़ेयर के फ़ार्म भरने के लिए ६५,००० रूपए हमने लगाये। फ़िल्म-फ़ेयर की एक कापी ख़रीदनी पड़ती थी, उसमें एक फ़ार्म होता था, उसमें आपको 'बेस्ट म्युज़िक' के अंदर अपना नाम लिखना पड़ता था। यह उस ज़माने में होता था, वही आज भी चल रहा है। इसमें कोई बुरी बात नहीं है, यह 'बिज़नस' है, जब तक आप कुछ करेंगे नहीं तो 'बिज़नस' चलेगा नहीं। आप बहुत सत चलेंगे तो नहीं चल पायेंगे। तो हमने फ़िल्म-फ़ेयर की कापी लेकर 'हीरो', 'हीरोइन', 'डायरेक्टर', सब ख़रीद लिए, रकम तो मुझे याद नहीं लेकिन लाख दो लाख रूपया होगा। तो हमने, मान लीजिये २५,००० फ़िल्म-फ़ेयर की प्रतियाँ ख़रीदी, उसमें हर प्रति में एक फ़ार्म है, तो सब में 'बेस्ट म्युज़िक डिरेक्टर' में अपना नाम लिख कर भेज दिया। वैसे ही 'हीरो' के लिए, 'डिरेक्टर' के लिए। इसमें फ़ायदा कुछ नहीं है, बस हमको शौक था।" तो देखा दोस्तों, प्यारेजी ने किस इमानदारी से यह बात पूरे देश की जनता को बता दी। आपको बता दें कि उस साल प्रतियोगिता में मदन मोहन की 'वो कौन थी' और शंकर जयकिशन का 'संगम' इसी पुरस्कार की दौड़ में शामिल थे। लेकिन इसमें भी कोई शक़ नहीं कि 'दोस्ती' के गीत भी यह पुरस्कार जीतने के उतने ही क़ाबिल थे जितने कि इन दोनों फ़िल्मों के गीत। तो सुनते हैं अब यह गीत और उससे पहले आपको यह भी बता दें कि रफ़ी और मजरूह साहब ने भी इसी फ़िल्म के लिए फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार जीते थे।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. कल विश्व बाल श्रम दिवस था, ये गीत बच्चों पर फिल्माए गए बेहतरीन गीतों में एक है.
२. गीतकार शैलेन्द्र ने इस फिल्म में एक छोटी सी भूमिका भी की थी.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"भीख".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी एक बार फिर बधाई, लगता है आप इतने आगे निकल जायेंगें कि दूसरों के लिए आपको पकड़ पाना मुश्किल हो जायेगा, आपके अंक हो गए बढ़ कर -१६. मनु जी, मंजू जी, तपन जी और शमिख जी सबके जवाब सही पर हमेशा की तरह इस बार भी आप सब ज़रा सा पिछड़ गए.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



Listen Sadabahar Geetओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.



Comments

Parag said…
पहेली का जवाब है

नन्हे मुन्हे बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है

एक अंतरा शुरू होता है
भीख में जो मोती मिले लोगे या न लोगे

आभारी
पराग
Shamikh Faraz said…
पराग जी बहुत खूब गाना पहचाना है आपने. बधाई.
Manju Gupta said…
Jawab hai :" bheek mein jo moti mile loge ya na loge....."

isbar paheli ne soch mein dal diya.

Manju Gupta.
Nasir said…
The sterling fact is that it was Rafi Sahaab who was responsible for the "Dosti Mania" (craze)in 1964 and afterwards. I have written a detailed account about this in my Blog, http://www.nasir-eclectic.blogspot.com as I have seen those times and experienced the pulse of the people.

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