Skip to main content

"प्यार किया तो डरना क्या..."- हिंदी फिल्म संगीत के प्रेमियों ने 100 दिनों तक एक सुर में दोहराई यही बात

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 100

'ओल्ड इज़ गोल्ड' की सुर धाराओं के साथ बहते बहते कैसे १०० दिन गुज़र गये पता ही नहीं चला। गुज़रे ज़माने के ये सदाबहार नग़में जितने भी सुने जायें मानो दिल ही नहीं भरता। शायद यही वजह है इन १०० दिनों के इतनी जल्दी जल्दी बीत जाने की। दोस्तों, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मना रहा है अपनी हीरक जयंती, यानी कि 'डायमंड जुबिली' एपिसोड, और इस ख़ास मौके पर हम इस शृंखला को लगातार पढ़ने और सुनने वालों का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। आप के लगातार सुझावों, विचारों, तारीफ़ों, और त्रुटि-सुधारों का ही यह परिणाम है कि यह शृंखला आज अपना हीरक जयंती पर्व मना रही है। इस मौके पर हम आपसे यही कहेंगे कि "तुम अगर साथ देने का वादा करो, हम युंही मस्त नग़में लुटाते रहें"। आज के इस ख़ास एपिसोड को और भी ज़्यादा ख़ास बनाने के लिए किस गीत को बजाया जाये, इस बारे में हमने काफ़ी मंथन किया, कई लोगों के परामर्श लिए और आख़िर में जो गीत निर्धारित हुआ वह आपके सम्मुख प्रस्तुत है। हिंदी फ़िल्म इतिहास की एक ऐतिहासिक फ़िल्म रही है 'मुग़ल-ए-आज़म' जो फ़िल्मी इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। इस फ़िल्म ने वह इतिहास क़ायम किया है कि जब भी हिंदी फ़िल्म इतिहास के १० सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों की सूची बनायी जाती है तो इस फ़िल्म का शुमार ज़रूर होता है। और जब फ़िल्म संगीत के १० सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की बात चलती है तो इसी फ़िल्म का "जब प्यार किया तो डरना क्या" का ज़िक्र ज़रूर होता है। इस गीत को फ़िल्म संगीत इतिहास का सबसे रोमांटिक गीत भी कहा जाता है। अब आप ही कहिए कि क्या आज के इस हीरक जयंती के अवसर पर इस गीत से बेहतर कोई गीत हो सकता था भला!

'मुग़ल-ए-आज़म', के. आसिफ़ की फ़िल्म थी और बताने की ज़रूरत नहीं है कि फ़िल्म के मुख्य किरदारों में थे पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला और दुर्गा खोटे। शक़ील बदायूनी के बोल और नौशाद का संगीत गूँजा था इस फ़िल्म के अमर गीतों में। नौशाद साहब के जुबान से 'मुग़ल-ए-आज़म' के साथ जुड़ी उनकी यादों के उजाले पेश हैं, नौशाद साहब की ये बातें हमें प्राप्त हुईं हैं विविध भारती के 'नौशाद-नामा' कार्यक्रम के ज़रिए - "मुझे एक क़िस्सा याद है, इसी घर में (जहाँ उनका यह साक्षात्कार रिकार्ड हुआ था) छत पर एक कमरा है। एक दिन मैं वहाँ बैठकर अपनी आँखें बंद करके फ़िल्म 'अमर' का एक गाना बना रहा था। ऐसे में के. आसिफ़ वहाँ आये और नोटों की एक गड्डी, जिसमें कुछ ५०,००० रूपए थे, उन्होने मेरी तरफ़ फेंका। यह अगली फ़िल्म के लिए 'अडवांस' था। मेरा सर फिर गया और उन पर चिल्लाया, "यह आपने क्या किया, आपने मेरा सारा काम ख़राब कर दिया, आप अभी ये पैसे उठाकर ले जाओ और ऐसे किसी आदमी को दे दो जो पैसों के बग़ैर काम नहीं करता हो।" थोड़ी देर के बाद आसिफ़ साहब कहने लगे कि मैं 'मुग़ल-ए-आज़म' बनाने जा रहा हूँ। मैने कहा, "कोई भी आज़म बनाइए, मैं आपके साथ हूँ क्योंकि आपका और हमारा उस वक़्त का साथ है जब दादर पर हम इरानी होटल में एक कप चाय आधी आधी पीते थे"। हमने कहा कि "हमारा आपका साथ उस वक़्त का है, क्या आप ये पैसे नहीं देंगे तो मैं काम नहीं करूँगा?" वो नीचे गये और मेरी पत्नी से कहा कि "अरे, वो उपर छत पर नोट फेंक रहे हैं।" वो मेरी पत्नी को उपर ले आये और ज़मीन पर फैले नोटों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "मैनें दिया था उनको 'अडवांस', वो रखे नहीं"। तब मैने कहा, "देखिए, यह आप रखिए पैसे अपने, आप बनाइए, मैं आपके साथ हूँ, ख़ुदा आपको कामयाबी दे"। फिर वह फ़िल्म बनी, और बहुत सारे साल गुज़र गये इस फ़िल्म के बनते बनते। यह वही घर है जहाँ उस फ़िल्म की मीटिंग वगैरह हुआ करती थी। आख़िर में 'मुग़ल-ए-आज़म' बनकर तैयार हो गयी।" तो दोस्तों, ये तो थी नौशाद साहब की बातें। अब ज़रा इस गीत को गानेवालीं सुरकोकिला लता मंगेशकर की भी राय जान लें इस गीत के बनने की कहानी के बारे में। अभी हाल में जब IBN7 TV Channel वालों ने एक मुलाक़ात में लताजी से पूछा "६० के दशक की बात करें तो एक फ़िल्म जिसे हम नज़रंदाज़ नहीं कर सकते, 'मुग़ल-ए-आज़म'। वह एक गाना, जो आज भी लोगों को उतना ही 'हौंटिंग फ़ीलिंग' देता है, लोग कहते हैं कि 'रोंगटे खड़े हो जाते हैं उस गाने को सुनकर', 'प्यार किया तो डरना क्या'। गाना बहुत ही 'लीजेन्डरी' है, कहते हैं कि नौशाद साहब ने आपको बाथरूम मे वह गाना गवाया था, बताइए क्या यह सच है?" सवाल सुनते ही लताजी के साथ साथ सभी दर्शक ज़ोर से हँस पड़े, और फिर लताजी ने जवाब दिया - "नहीं, बाथरूम मे नहीं गवाया था, वह गाना जब हमने रिकार्ड किया, तो 'लास्ट लाइन' उनको 'रिपीट' करनी थी 'इको इफ़ेक्ट' के लिए। पर 'इको इफ़ेक्ट' तब ऐसे नहीं आता था, किसी मशीन से नहीं आता था। तो मुझे उन्होने दूसरे कमरे में खड़ा किया था, और वहाँ से मैने गाया, थोड़ा नज़दीक जाके गाया, मतलब, वही सर्कस ही चलता रहा, यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ, इस तरह से उन्होने रिकार्ड किया था।" तो दोस्तों, अब सुनिए आप यह गीत और एक बार फिर से आप सभी को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की हीरक जयंती पर हिन्दयुग्म की तरफ़ से हार्दिक धन्यवाद!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रखिये सबसे पहले सही जवाब देने वाले को २ अंक मिलेंगें, और २५ सही जवाबों के बाद आप बन जायेंगें हमारे "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. चूँकि अगले ७ एपिसोड "राजकपूर विशेष" हैं, तो पहला सूत्र तो यही रहेगा कि गीत राज कपूर की फिल्म का है.
२. इस गीत का interlude राज कपूर के एक अन्य गीत "प्यार हुआ इकरार हुआ" में भी सुनाई देता है.
३. पहला अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"फूल".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी लौटे हैं विजेता बनकर. स्वप्न मंजूषा जी, रचना जी सुमित जी और मनु जी भी सही जवाब पर आकर रुके. बवाल (?) जी आप मज़े से फिल्म देखिये पर ओल्ड इस गोल्ड पर भी आते रहिये. तपन जी चलिए आज ही से शुभारम्भ कीजिये..और हाँ मनु जी, सालगिरह की बहुत बहुत बधाई पूरे युग्म परिवार की तरफ से भी.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

फ़िल्म है ’बरसात’
गीत है ’छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड गए
मुकेश और लता की आवाज़।
लेकिन इस गाने का प्रयोग interlude की तरह जीना यहाँ मरना यहाँ’ में किया गया है ।
बहुत सुन्दर गीत के लिये आभार्
Shamikh Faraz said…
बहुत ही खुबसूरत गीत और उस पर लता और मुकेश जी की आवाज़ इस को और भी खुबसूरत बना देती है.
manu said…
युग्म टीम का आभार,,,

फूल संग मुस्काएं कलियाँ,,,
मैं कैसे मुस्काऊँ,,,यही गीत है,,,
ये कहाण आ गये हम, यूंहि साथ साथ चलते...

बधाईयां , और शुभकामनायें....

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...