ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 121
लता मंगेशकर की आवाज़ में मदन मोहन के संगीत से सजी हुई ग़ज़लें हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। यूँ तो ये ग़ज़लें ज़्यादातर राजा मेहंदी अली ख़ान, राजेन्द्र कृष्ण, और कुछ हद तक कैफ़ी आज़्मी ने लिखे थे, लेकिन एक फ़िल्म ऐसी भी रही है जिसमें मदन साहब की तर्ज़ पर इनमें से किसी ने भी नहीं बल्कि गीतकार नक्श ल्यालपुरी ने कम से कम दो बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़लें लिखी हैं। यह फ़िल्म थी 'दिल की राहें' और आज इस महफ़िल में पेश-ए-ख़िदमत है इसी फ़िल्म से एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल लताजी की आवाज़ में। 'दिल की राहें' बनी थी सन् १९७३ में जिसका निर्माण किया था एस. कौसर ने। बी. आर. इशारा निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राकेश पाण्डेय, रेहाना सुल्तान, और दिलीप दत्त प्रमुख। छोटी बजट की फ़िल्म थी और फ़िल्म नहीं चली, लेकिन आज अगर इस फ़िल्म को कोई याद करता है तो १००% इसके गीत संगीत की वजह से। मदन मोहन के जादूई संगीत, गीतकार और शायर नक्श ल्यालपुरी के पुर-असर अल्फ़ाज़, तथा लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर और मन्ना डे के मधुर आवाज़ों ने इस फ़िल्म के गीतों को एक अलग ही बुलंदी तक पहुँचा दिया था। लताजी के गाये ग़ज़लों के अलावा इस फ़िल्म में मन्ना डे और उषा जी की आवाज़ों में "अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो यह गीत अमर हो जाये" भी सचमुच आज अमर हो गया है। जब हम दर्द में डूबे हुए नग़मों की बात करते हैं तो मदन मोहन का नाम यकायक ज़हन में आ जाता है। उनके बनाये फ़िल्मी ग़ज़लों को सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे ये इस धरती पर नहीं बल्कि जन्नत में बनाये गये हों। गीतकारों और गायकों का भी उतना ही योगदान रहा है उनकी तर्ज़ों को यादगार बनाने में। गीतकार नक्श ल्यालपुरी ने मदन मोहन के साथ तीन फ़िल्मों में काम किया था - एक तो था 'दिल की राहें', दूसरी 'प्रभात', और तीसरी फ़िल्म अधूरी ही रह गयी थी।
अभी हाल ही में नक्श ल्यालपुरी तशरीफ़ लाये थे विविध भारती के स्टुडियो में 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम के लिए। उसमें उन्होने इस ग़ज़ल के बनने की कहानी बतायी थी। पेश है उन्ही के शब्दों में इस ग़ज़ल के बनने की दास्तान - "मैने एक गीत रविवार को लिखा था जिसे सोमवार को रिकार्ड होना था। लता जी ने डेट दिया हुआ था। तो मैं गीत लेकर मदन मोहन साहब के पास गया तो पता चला कि फ़िल्म के निर्माता चाहते हैं कि गीत के बदले कोई ग़ज़ल हो। उनका कहना था कि अगर मदन मोहन के साथ ग़ज़ल नहीं बनायी तो फिर क्या काम किया! मैने गीत लिखा था, मदन साहब चाहते थे कि मैं उसी धुन पर कोई ग़ज़ल लिख दूँ। उस वक़्त ११ बज रहे थे। मैने सोचा कि अगर मैं पेडर रोड से मुलुंड तक वापस जाऊँगा तो उसमें काफ़ी वक़्त निकल जायेगा। इसलिए मैं मदन साहब के घर से निकलकर चौपाटी में फुटपाथ के एक कोने में बैठ गया और लिखने लगा। मैने ग़ज़ल पूरी की और मदन साहब के दरवाज़े पर ठीक शाम ४ बजे पहुँच गया। और यह ग़ज़ल थी "रस्म-ए-उल्फ़त को निभायें तो निभायें कैसे"। दोस्तों, देखा आप ने कि फुटपाथ के कोने में बैठकर किस अमर ग़ज़ल की रचना की थी नक्श साहब ने! नक्श साहब ने मदन साहब के बारे में और भी कई बातें बतायी हैं उसी कार्यक्रम में जिन्हे हम आगे चलकर इस शृंखला में आप के साथ बाँटने वाले हैं, फिलहाल सुनिये इस ग़ज़ल को, जो लेखन, संगीत और गायिकी के लिहाज़ से उत्कृष्ट है, अद्वितीय है, बेजोड़ है, बेमिसाल है!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. तीन भाईयों ने अपनी अदाकारी से सजाया इस फिल्म को.
२. नायिका थी मधुबाला.
३. मुखड़े में शब्द है "चीन".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
भई मुकाबला हो तो ऐसा. एक बार फिर शरद जी और स्वप्न मंजूषा जी एक साथ सही जवाब के साथ. स्वप्न जी १६ अंकों पर हैं पर शरद जी अभी भी बढ़त कायम रखे है २२ अंकों के साथ. पराग जी, दिलीप जी, मनु जी, रचना जी, सुमित जी, राज जी और स्वप्न मंजूषा जी हमारा हौंसला बढ़ाने के लिए आप सब का धन्येवाद.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
लता मंगेशकर की आवाज़ में मदन मोहन के संगीत से सजी हुई ग़ज़लें हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। यूँ तो ये ग़ज़लें ज़्यादातर राजा मेहंदी अली ख़ान, राजेन्द्र कृष्ण, और कुछ हद तक कैफ़ी आज़्मी ने लिखे थे, लेकिन एक फ़िल्म ऐसी भी रही है जिसमें मदन साहब की तर्ज़ पर इनमें से किसी ने भी नहीं बल्कि गीतकार नक्श ल्यालपुरी ने कम से कम दो बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़लें लिखी हैं। यह फ़िल्म थी 'दिल की राहें' और आज इस महफ़िल में पेश-ए-ख़िदमत है इसी फ़िल्म से एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल लताजी की आवाज़ में। 'दिल की राहें' बनी थी सन् १९७३ में जिसका निर्माण किया था एस. कौसर ने। बी. आर. इशारा निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राकेश पाण्डेय, रेहाना सुल्तान, और दिलीप दत्त प्रमुख। छोटी बजट की फ़िल्म थी और फ़िल्म नहीं चली, लेकिन आज अगर इस फ़िल्म को कोई याद करता है तो १००% इसके गीत संगीत की वजह से। मदन मोहन के जादूई संगीत, गीतकार और शायर नक्श ल्यालपुरी के पुर-असर अल्फ़ाज़, तथा लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर और मन्ना डे के मधुर आवाज़ों ने इस फ़िल्म के गीतों को एक अलग ही बुलंदी तक पहुँचा दिया था। लताजी के गाये ग़ज़लों के अलावा इस फ़िल्म में मन्ना डे और उषा जी की आवाज़ों में "अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो यह गीत अमर हो जाये" भी सचमुच आज अमर हो गया है। जब हम दर्द में डूबे हुए नग़मों की बात करते हैं तो मदन मोहन का नाम यकायक ज़हन में आ जाता है। उनके बनाये फ़िल्मी ग़ज़लों को सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे ये इस धरती पर नहीं बल्कि जन्नत में बनाये गये हों। गीतकारों और गायकों का भी उतना ही योगदान रहा है उनकी तर्ज़ों को यादगार बनाने में। गीतकार नक्श ल्यालपुरी ने मदन मोहन के साथ तीन फ़िल्मों में काम किया था - एक तो था 'दिल की राहें', दूसरी 'प्रभात', और तीसरी फ़िल्म अधूरी ही रह गयी थी।
अभी हाल ही में नक्श ल्यालपुरी तशरीफ़ लाये थे विविध भारती के स्टुडियो में 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम के लिए। उसमें उन्होने इस ग़ज़ल के बनने की कहानी बतायी थी। पेश है उन्ही के शब्दों में इस ग़ज़ल के बनने की दास्तान - "मैने एक गीत रविवार को लिखा था जिसे सोमवार को रिकार्ड होना था। लता जी ने डेट दिया हुआ था। तो मैं गीत लेकर मदन मोहन साहब के पास गया तो पता चला कि फ़िल्म के निर्माता चाहते हैं कि गीत के बदले कोई ग़ज़ल हो। उनका कहना था कि अगर मदन मोहन के साथ ग़ज़ल नहीं बनायी तो फिर क्या काम किया! मैने गीत लिखा था, मदन साहब चाहते थे कि मैं उसी धुन पर कोई ग़ज़ल लिख दूँ। उस वक़्त ११ बज रहे थे। मैने सोचा कि अगर मैं पेडर रोड से मुलुंड तक वापस जाऊँगा तो उसमें काफ़ी वक़्त निकल जायेगा। इसलिए मैं मदन साहब के घर से निकलकर चौपाटी में फुटपाथ के एक कोने में बैठ गया और लिखने लगा। मैने ग़ज़ल पूरी की और मदन साहब के दरवाज़े पर ठीक शाम ४ बजे पहुँच गया। और यह ग़ज़ल थी "रस्म-ए-उल्फ़त को निभायें तो निभायें कैसे"। दोस्तों, देखा आप ने कि फुटपाथ के कोने में बैठकर किस अमर ग़ज़ल की रचना की थी नक्श साहब ने! नक्श साहब ने मदन साहब के बारे में और भी कई बातें बतायी हैं उसी कार्यक्रम में जिन्हे हम आगे चलकर इस शृंखला में आप के साथ बाँटने वाले हैं, फिलहाल सुनिये इस ग़ज़ल को, जो लेखन, संगीत और गायिकी के लिहाज़ से उत्कृष्ट है, अद्वितीय है, बेजोड़ है, बेमिसाल है!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. तीन भाईयों ने अपनी अदाकारी से सजाया इस फिल्म को.
२. नायिका थी मधुबाला.
३. मुखड़े में शब्द है "चीन".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
भई मुकाबला हो तो ऐसा. एक बार फिर शरद जी और स्वप्न मंजूषा जी एक साथ सही जवाब के साथ. स्वप्न जी १६ अंकों पर हैं पर शरद जी अभी भी बढ़त कायम रखे है २२ अंकों के साथ. पराग जी, दिलीप जी, मनु जी, रचना जी, सुमित जी, राज जी और स्वप्न मंजूषा जी हमारा हौंसला बढ़ाने के लिए आप सब का धन्येवाद.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Filma chalti ka naam gadi
ek baar fir bahut bahut badhai,
mujhe yaad hi nahi aaya.
ham the tum the aur shamaa rangeen samajha gaye na
kishore kumaar ,ashok kumar,anoop kumaar
ek ladki bheegi bhagi si
soti raaton mein jagi si
aapka swagat hai, mujhe Swapna Manjusha Shail 'ada' kehte hain, aapse milkar bahut khushi hui.
pata hai aaj mein 5 baje se hi baith gayi thi, lekin wahhh ri kismat !!!!
are nahi mazak kar rahi hun, dekhiye agar maine sahi jawab de diya hota to aapse aur baatein kahan ho paateen,
mujhe is pratiyogita mein bhaag lena sabse accha lag raha hai. subah hote hi bina brush kiye computer par baith jati hun, ye sab Sojoy Ji ka kamal hai.
ham the woh the aur samaa rangeen samajh gaye naa
jaate the japaan pahuch gaye cheen samajh gaye naa
yanne yanne yanee pyaar ho gaya
oae mannu tera hua ab mera kya hoga
mannu tera.....
is film ka doosaraa geet "haal kaisa hai janaab ka, kya khayaal hai aapka" ki shooting ke dauraan madhubala aur kishore kumaar ki aapas mein anban hui thi phir bhi gaane mein dono kitane natural nazar aaye hain.
bas ham abhi pahuchte hain , lage haathon aap bhi leeche likhe pate par pahuch jaiye
http://swapnamanjusha.blogspot.com/
aur agar geet-veet ka shauk rakhte hain to ek pata aur hai wo bhi neeche hai, bas 'awaaz' ke aap paas hi hai ye pata
http://podcast.hindyugm.com/2009/06/music-in-chhayavaad-kavi-jaishankar.html
माना रूप का हो खजाना ...........
पांच रुपैय्या बारह आना .....
भी सुन लो . मज़ा आ जायेगा .
beech beech mein aap kahan gayab ho jaate hain, aapke bina mahfil thodi sooni-sooni ho jati hai. Please aise gayab mat hua kijiye
सभी को बधाईया. आज फिर मैं देरी से पन्हूंच गया, खैर कोई बात नहीं. यह बड़ा ही मजेदार गीत है, जिसमें अनूप कुमार ने अपने "सुरीले" स्वर में एक पंक्ती गाई है "मन्नू तेरा हुआ अब मेरा क्या होगा"
उम्मीद हैं सभी ने कल वाला मराठी फिल्म पाठलाग का आशा जी का गया हुआ गीत सुना होगा.
सुजॉय जी, नक्श साहब के बारे में बहुत ही बढिया जानकारी आप ने दी है. आप का संस्करण और संकलन दोनों भी प्रशंसनीय है.
विनीत
पराग
itna madhur geet sunwane ke liye aapko shat-shat dhanyawaad, asha ji ki awaaz sunkar yun laga ki bas ishwar ke darshan ho gaye, bahut sundar, aisi hi dilchasp baatein hamein batate rahiyege
तीनों भाइयों का जिक्र पढ़ते ही सीधे कमेन्ट पर आया तो,,,,
देखा के १८ कमेन्ट आ चुके हैं,,,,
:(
जाते थे जापान पहुँच गए चीन समझ गए न,,,,,,,,,,,,,,
Manu tera hua, ab mera kya hoga...
Ha ha ha
Jab tak aap gaane (aur discussion) enojy kar rahe hain, tab tak har koi vijeta hain.
Cheers
Parag
aur aap cheen japan nahi bilkul sahi jagah par aaye hain 'OIG'
नमस्कार. मैंने आप का ब्लॉग आज देखा है. आप भी बहुत प्रतिभाशाली है. मुझे आप के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. इस मंच पर बहुत सारे संगीत प्रेमी आते हैं.
आपसे विनती है की आप हमारी वेबसाइट पर जरूर गौर फरमाईये.
www.geetadutt.com
धन्यवाद
आभारी
पराग
आपका ब्लॊग देखा । अपना ईमेल ID बताएं जिससे कुछ comments कर सकूं ।
dhanyawaad,
kavya.manjusha@gmail.com
main aaj toronto jaa rahi hun aaj ki paheli hissa nahi le paaungi. aapko pahle se badhai deti hun