Skip to main content

बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी...ओल्ड इस गोल्ड के सभी श्रोताओं को समर्पित ये गीत.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 119

हाल ही में हमने आपको एस. एच. बिहारी के बारे में विस्तार से बताया था कि किस तरह से उन्हे एस. मुखर्जी ने १९५४ की फ़िल्म 'शर्त' में पहला बड़ा ब्रेक दिया था। आगे चलकर उनकी कई और फ़िल्मों में बिहारी साहब ने गीत लिखे, और सिर्फ़ लिखे ही नहीं, उन्हे कामयाबी की बुलंदी तक भी पहुँचाया। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'एक मुसाफ़िर एक हसीना'. जॉय मुखर्जी और साधना अभिनीत इस फ़िल्म में ओ. पी. नय्यर का संगीत था। आशा भोंसले और रफ़ी साहब के गाये इस फ़िल्म के तमाम युगल गीतों में तीन गीत जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुए, वो थे "मैं प्यार का राही हूँ", "आप युँही अगर हम से मिलती रहीं, देखिये एक दिन प्यार हो जायेगा", और तीसरा गीत था "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आये". यूँ तो एस. एच. बिहारी ने ही इस फ़िल्म के अधिकतर गानें लिखे, लेकिन "आप युँही अगर" वाला गीत राजा मेहंदी अली ख़ान ने लिखा था। आज इस महफ़िल में सुनिये तीसरा युगल गीत। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह थी कि शादी की रात साधना के घर आतंकवादियों का हमला होता है, जिससे दुल्हन बनी साधना को शादी से पहले ही अपनी रक्षा के लिए घर से भाग जाना पड़ता है। भटकते हुए उसे मिल जाता है एक नौजवान लड़का (जॉय मुखर्जी) जो पीड़ित है ऐम्नेसिया, यानी कि याद्दाश्त जाने की बीमारी से। साधना उसे कई विपत्तियों से बचाती है जिससे कि वो उस पर पूरी तरह से निर्भर हो जाता है, और तभी फ़िल्म में यह गीत आता है कि "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आये"। दोनों में प्यार होता है और इस तरह से फ़िल्म की कहानी आगे बढ़ती है। लेकिन क्या होता है जब नायक की याद्दाश्त वापस आ जाती है तो? यह तो आप ख़ुद ही देख लीजिएगा इस फ़िल्म में।

प्रस्तुत गीत का जो भाव है इस भाव पर समय समय पर कई गीत हमारे गीतकारों ने लिखे हैं। फ़िल्म 'हमसाया' में ही नय्यर साहब ने ऐसा ही एक गीत काम्पोज़ किया था शेवन रिज़्वी का लिखा हुआ और आशा-रफ़ी का ही गाया हुआ, "तेरा शुक्रिया के तूने गले फिर लगा लिया है, मैने दिल के टुकड़े चुन कर नया दिल बना लिया है"। इसके बाद भी कई फ़िल्मों में शुक्रिया और मेहरबानी पर गानें शामिल हुए हैं, लेकिन इनमें से जो सबसे ज़्यादा 'हिट' हुआ था, वह था शाहरूख़ ख़ान की फ़िल्म 'डुप्लीकेट' का गीत "मेरे महबूब मेरे सनम, शुक्रिया मेहरबानी करम"। दोस्तों, हम भी आज के इस प्रस्तुत गीत के बहाने आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते हैं कि आप इतने दिनों से इस शृंखला को पसंद कर रहे हैं, इसमें सक्रीय रूप से भाग ले रहे हैं, और दिन-ब-दिन इसे आगे बढ़ाते जा रहे हैं। अगर इस शृंखला को और भी ज़्यादा बेहतर और लोकप्रिय बनाने के लिए आपके दिल में कोई विचार या सुझाव हो तो बेझिझक हमसे कहिएगा। फिलहाल सुनिये आज का यह 'गोल्डन' गीत।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. एक बहतरीन दर्दीला नगमा.
२. इसी फिल्म के एक अन्य गीत में "बरेली" का जिक्र हुआ है.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"शाम".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ने १८ अंक प्राप्त कर बढ़त बरकरार रखी है, बधाई हो जनाब, पर स्वप्न जी आप भी बिलकुल पीछे नहीं है. जम कर मुकाबला कीजिये. दिशा जी आप शायद पहली बार आई हैं, जवाब तो सही है पर ज़रा इन धुरंधरों से अधिक फुर्ती दिखाईये तो बात बने. राज जी और निर्मला जी आपके लिए बस यही कहेंगें -"रहना तू है जैसा तू...". शरद जी आपने सही कहा, इन गीतों का नशा ही ऐसा है, हम तो यही चाहेंगें कि ये खुमार कभी न उतरे.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

आप के पहलू में आ कर रो दिए
फ़िल्म : मेर साया
'अदा' said…
aapke pahloo mein akara ro diye
स्वप्न जी
एक बार फिर ’हम साथ साथ हैं ”
फ़िल्म : मेरा साया
'अदा' said…
This post has been removed by the author.
'अदा' said…
bilkul...
ekdam saath saath
2 ank aapko aur 2 ank mujhe milna hi chahiye

aur Sujoy ji zaroor denge mujhe poora yakeen hai, please de dijiyega
manu said…
सच मच बेहद दर्दीला गीत है,,,,
शाम जब आंसू बहाती आ गयी,
हर तरफ गम की उदासी छा गयी,,
दीप यादों के जलाकर रो दिए,,,,
Parag said…
दर्दीला गीत और फिल्म के दूसरे गाने में "बरेली" का जिक्र है. यह २ बाते तो फिल्म प्राण जाए पर वचन न जाए के गीत "चैन से हमको कभी" की तरफ भी इशारा करते हैं. मगर उस गीत में शाम के जगह पर सांझ शब्द हैं. इसलिए मेरे ख्याल से शरद जी और स्वप्न मंजूषा जी का जवाब ही सही मालूम होता है.

आभारी
पराग
'अदा' said…
parag sahab,

agar aap 'chain se hamko kabhi' gaane ke pahle antare ki baat kar rahe hain to vo aise hai

chaand ke rath mein
raat ki dulhan jab jab aayegi
yaad hamaari aap ke dil ko
tadpa jaayegi
neelam said…
बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी ,

जो आपने यह गाना सुनवाया ,आजकल कमेंट्स नहीं लिख पा रही हूँ , सुजोय जी और सजीव जी मायूस मत होइएगा ,हमारी नजर मगर हर पोस्ट पर रहती है |
hahahahaahahahahahhohohohohohohihihihihihihihihuhuhuhuhuhuhhuhuhuuh
rachana said…
इन महान हस्तियों से मुकाबला करना जरा मुश्किल है सही उत्तर तो मिलगया .
आप दोनों को बहुत बधाई
सादर
रचना
बहुत बढिया लगा .. धन्‍यवाद।
Parag said…
स्वप्न मञ्जूषा जी
आप ने बिलकुल सही बताया है. जाहीर है की शरद जी और आप का जवाब ही सही है. आप दोनोंको बहुत बधाई.

मैंने आप को एक इमेल लिखा है, शायद आप को मिल गया होगा.

आभारी
पराग
Shamikh Faraz said…
संगीत पहेली में दिग्गजों के बीच टिक पाना असंभव है

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की