Skip to main content

"दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे" ने रचा इतिहास, किये ७०० सप्ताह पूरे

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (13)
स्लम डॉग के बाल सितारों ने याद दिलाई शफीक सैयद की
लगभग २० साल पहले मीरा नायर की फिल्म "सलाम बॉम्बे" बहुत चर्चित हुई थी, और विदेशी फिल्म की श्रेणी में भारत की तरफ से ऑस्कर में नामांकित भी हुई थी. इस फिल्म में सबसे ज्यादा वाह वाही लूटी थी एक चाय वाले की भूमिका में इसके बाल कलाकार शफीक सैयद ने. पर इस फिल्म के बाद सैयद को मुंबई में कोई काम नहीं मिला. थक हार कर १९९३ में वो बैंगलोर आ गये. दुःख की बात है की इतनी प्रतिभा होने के बाद भी सैयद आज ऑटो चला रहे हैं, जीविका के लिए. ५२ दिन की शूटिंग, उस ज़माने में १५००० रूपए का मेहनताना, अप्रत्याक्षित लोकप्रियता, राष्ट्रपति भवन में सत्कार. आज ये सब बातें सैयद के लिए एक सपना ही लगती होगी. पर ख़ुशी की बात ये है कि फिल्मों से उनका प्रेम आज भी बरकरार है, और अपने खाली समय में स्क्रिप्ट लिखते हैं. उम्मीद करें कि उनकी कहानी को भी कोई प्रोड्यूसर मिले.



पप्पू के पास होने के बाद अब चुनाव आयोग का नया नारा -"वोट ऑन"

"पप्पू" कामियाब हो गया. अब चुनाव आयोग ने इसी फार्मूले पर लोक सभा चुनावों के लिए फिल्म "रॉक ऑन" के गीत "सोचा है..." का इस्तेमाल करने जा रही है. ये प्रचार होगा युवाओं को वोट डालने के लिए प्रेरित करने का. फिलहाल इस गीत के बोलों पर काम जारी है. लगता है चुनाव आयोग ने युवाओं की नब्ज़ पकड ली है. फिल्म संगीत पर आधारित प्रचार भारत में हमेशा ही प्रभावशाली रहा है.


पहली बार इंडियन आइडल हुई एक लड़की

अपने चौथे संस्करण में जाकर आखिरकार इंडियन आइडल के रूप में श्रोताओं को मिली एक "गायिका". त्रिपुरा की सौरभी देबरामा ने वो कर दिखाया जो पिछले कई सालों में कोई भी महिला प्रतिभागी इस प्रतियोगिता में नहीं कर पायी. सौरभी को एक उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें


दिलवाले ने रचा इतिहास

DDLJ ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. १९९५ में प्रर्दशित हुई शाहरुख़ खान- काजोल अभिनीत "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगें" ने एक नया इतिहास रच डाला है. मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा में इस फिल्म ने पूरे किये लगातार ७०० सप्ताहों तक चलने का वर्ल्ड रिकॉर्ड. पिछले १४ सालों से इस फिल्म ने इस सिनेमा घर पर कब्जा कर रखा है और आज भी यहाँ आकर दर्शक बड़े चाव से इस फिल्म को देखते हैं. फिल्म की इस अतुलनीय सफलता में फिल्म के संगीत का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज का हमारा "साप्ताहिक गीत" भी हमने चुना है इसी महान फिल्म से. जतिन ललित और आनंद बक्षी की टीम द्वारा रचित ये गीत सुनिए - "घर आजा परदेसी तेरा देस बुलाये रे.... "



Comments

सुमधुर गीत सुनवाने के लिए ह्रदय से आभार
इला अरुण जी का गीत भी मन को भाया. उन्हें शत-शत बधाई.
सुंदर गीत के लिए आभार ... त्रिपुरा की सौरभी देबरामा को बधाई एवं शुभकामनाएं।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की