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मेरी जान तुम पे सदके...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 18

'ओल्ड इस गोल्ड' की एक और शाम लेकर हम हाज़िर हैं. आज की यह शाम थोडी शायराना है, जिसमें थोड़ी सी रूमानियत है, थोड़ी बेचैनी है, थोड़ी सी प्यास भी है, और थोड़ी सी चाहत भी. 60 के दशक के आखिर में संगीतकार ओ पी नय्यर के स्वरबद्ध गीत कम होने लगे थे. लेकिन जब भी किसी फिल्म को उन्होने अपना पारस हाथ लगाया तो वो जैसे सोना बन गया. 1966 में बनी फिल्म "सावन की घटा" आज अगर याद की जाती है तो सिर्फ़ उसके महकते हुए गीत संगीत के लिए. ओ पी नय्यर और एस एच बिहारी इस फिल्म के संगीतकार और गीतकार थे. इस फिल्म के लगभग सभी गीत 'हिट' हुए थे. आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी ने ज़्यादातर गीत भी गाए इस फिल्म में. लेकिन एक गीत ऐसा था जिसे नय्यर साहब ने महेंद्र कपूर से गवाया. इसी गीत का एक दूसरा 'वर्जन' भी था जिसे आशाजी ने गाया था. "मेरी जान तुमपे सदके अहसान इतना कर दो, मेरी ज़िंदगी में अपनी चाहत का रंग भर दो". इसमें कोई शक़ नहीं की महेंद्र कपूर ने इस गीत में अपनी गायकी का वो रंग भरा है जो आज तक उतरने का नाम नहीं लेती.

हालाँकि ओ पी नय्यर के चहेते गायक रहे हैं मोहम्मद रफ़ी, लेकिन महेंद्र कपूर को भी उन्होने कई बार गवाया है. महेंद्र और नय्यर साहब के सुरीले संगम से निकले कुछ गीतों के नाम गिनाएँ आपको? "लाखों है यहाँ दिलवाले और प्यार नहीं मिलता", "आँखों में क़यामत के काजल, होंठों पे ग़ज़ब की लाली है", यह दोनो फिल्म किस्मत के गाने हैं, फिर "यह रात फिर ना आएगी" का वो गाना "मेरा प्यार वो है कि मरकर भी तुमको जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा", बहारें फिर भी आएँगी फिल्म में "बदल जाए अगर माली चमन होता नहीं खाली", और फिर "दिल और मोहब्बत" फिल्म में "कहाँ से लाई ओ जानेमन" और आशा भोंसले के साथ "हाथ आया है जब से तेरा हाथ में", इन गीतों को हम 'ओल्ड इस गोल्ड' में आनेवाले समय में शामिल करने की कोशिश करेंगे. लेकिन आज सुनिए फिल्म "सावन की घटा" से यह गाना.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. आवाज़ पर नौशाद की तीन बहतरीन फिल्मों के जिक्र में इस फिल्म का भी नाम शामिल था.
२. बोल है शकील बदायुनीं के और आवाज़ है लता की.
३. मुखड़े से पहले एक शेर में जिसमें शब्द आता है - "ढिंढोरा"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
उज्जवल कुमार जी बधाई....आपने एकदम सही जवाब दिया

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

सजीव जी और समस्त हिन्द-युग्म टीम को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
Neeraj Rohilla said…
इस बार की पहेली का जवाब तो हमें पता है। फ़िल्म बैजू बावरा।

जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुख होय,
नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोय ।
मोहे भूल गये सांवरिया....

नौशाद साहब का प्रीलूड बनाने में कोई सानी नहीं है। ये एक तरीके से उनका ट्रेडमार्क भी है क्योंकि उनके अधिकतर नायाब गीत प्रीलूड से शुरू होते हैं जो गीत का मूड सेट कर देते हैं और उसके बाद श्रोता पूरी तरह से आनन्द में सराबोर हो जाता है।
महत्त्वपूर्ण गीत के पहले शे'र पढ़ने की परंपरा चलचित्रों में बहुत पुरानी है. सोहराब मोदी के चलचित्रों में यह खास आकर्षण होता था. इस परंपरा का पालन नौशाद भी करते रहे. मीना कुमारी-भारत भूषन अभिनीत बैजू बावरा अपने समय की सुपर-डुपर थी. लता जी के मोहे भूल गए सांवरिया.. के अतिरिक्त मो. रफी के गाये ओ' दुनिया के रखवाले भी जन-जन की जुबान पर था. कभी इसे जरूर सुनवाइये.
sumit said…
बैजू बावरा फिल्म का हर गीत एक से बढकर एक है,
मैने फिल्म तो नही देखी पर गीत लगभग सारे सुने है,
लता जी की आवाज मे ये गीत बहुत अच्छा है पर मुजे रफी साहब की आवाज मे मन तडपत, ओ दुनिया के रखवाले और गंगा की मौज ज्यादा अच्छा लगता है

सुमित भारद्वाज

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