Skip to main content

यार बादशाह...यार दिलरुबा...कातिल आँखों वाले....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 10

ओ पी नय्यर. एक अनोखे संगीतकार. आशा भोसले को आशा भोंसले बनाने में ओ पी नय्यर के संगीत का एक बडा हाथ रहा है, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता, और यह बात तो आशाजी भी खुद मानती हैं. आशा और नय्यर की जोडी ने फिल्म संगीत को एक से एक नायाब नग्में दिए हैं जो आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि उस समय थे. यहाँ तक कि नय्यर साहब के अनुसार वो ऐसे संगीतकार रहे जिन्हे ता-उम्र सबसे ज़्यादा 'रायल्टी' के पैसे मिले. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में आशा भोंसले और ओ पी नय्यर के सुरीले संगम से उत्पन्न एक दिलकश नग्मा आपके लिए लेकर आए हैं. सन 1967 में बनी फिल्म सी आइ डी 909 का यह गीत हेलेन पर फिल्माया गया था. जब जोडी का ज़िक्र हमने किया तो एक और जोडी हमें याद आ रही है, हेलेन और आशा भोसले की. जी हाँ दोस्तों, हेलेन पर फिल्माए गये आशाजी के कई गाने हैं जो मुख्य रूप से 'क्लब सॉंग्स', 'कैबरे सॉंग्स', 'डिस्को', या फिर मुज़रे हैं. फिल्म सी आइ डी 909 का यह गीत भी एक 'क्लब सॉंग' है.

सी आइ डी 909 में कई गीतकारों ने गीत लिखे, जैसे कि अज़ीज़ कश्मीरी, एस एच बिहारी, वर्मा मलिक और शेवन रिज़वी. यह गीत रिज़वी साहब का लिखा हुआ है. इस गीत की अवधि उस ज़माने के साधारण गीतों की अवधि से ज़्यादा है. 5 'मिनिट' और 55 'सेकेंड्स' के इस गीत का 'प्रिल्यूड म्यूज़िक' करीब करीब 1 'मिनिट' और 35 'सेकेंड्स' का है और यही वजह है इस गीत की लंबी अवधि का. 'प्रिल्यूड म्यूज़िक' के बाद गाने का 'रिदम' बिल्कुल ही बदल जाती है और गीत शुरू हो जाता है. गीत के 'इंटरल्यूड म्यूज़िक' में अरबिक संगीत की झलक मिलती है. इस गाने के 'रेकॉर्डिंग' से जुडा एक किस्सा आप को बताना चाहेंगे दोस्तों. हुआ यूँ कि इस गाने की 'रेकॉर्डिंग' शुरू होनेवाली थी जब नय्यर साहब को उनके घर से संदेश आया कि उनके बेटे का 'आक्सिडेंट' हो गया है. नय्यर साहब विचलित नहीं हुए और ना ही उन्होने इस बात की किसी को भनक तक पड़ने दी और जब गाने की 'फाइनल रेकॉर्डिंग' खत्म हो गयी तब जाकर उन्होने आशा भोंसले को यह बात बताई. यह बात सुनकर आशाजी ने उन्हे बहुत डांटा. यह घटना उजागर करती है नय्यर साहब की अपने काम के प्रति लगन और निष्ठा को. तो नय्यर साहब के इसी लगन और मेहनत को सलाम करते हुए सुनिए सी आइ डी 909 फिल्म का गीत "यार बादशाह यार दिलरुबा".



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. इत्तेफाक से अगला गीत भी आशा और ओ पी नय्यर की जबरदस्त जोड़ी का है.पर ये कोई क्लब गीत न होकर रोमांटिक अंदाज़ का है.
२. मजरूह सुल्तानपुरी के बोलों को परदे पर अभिनीत किया है आशा पारेख ने. नायक है जोय मुख़र्जी.
३. मुखड़े में शब्द है -"तस्वीर"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का कोई भी सही जवाब नहीं दे पाया ताज्जुब है, जबकि गीत इतना मशहूर है...खैर आज के लिए शुभकामनायें

प्रस्तुति - सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

आप की पहेलि का जबाब, तस्वीर तेरी दिल मे ... जिस दिन से ....
ओर इस सुंदर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद
neelam said…
gana to kai baar suna tha ,lokpriya geet hai ,magar ..........................
manu said…
राज जी, सही तो याद नहीं आ रहा पर ये गलत है..
manu said…
ओ,,यस्,,,,,,,,
आँखों से जो उतरी है दिल में तस्वीर है इक अनजाने की,
खुद ढूंढ रही है शमा जिसे क्या बात है उस परवाने की,,,,
सरस प्रस्तुति...सराहनीय प्रयास
आपने जिस गाने के बरे में हमसबों से पूछा है वो
'फ़िर वही दिल लाया हूँ' का ये गाना है
'आँखों से जो उतारी है दिल में
तस्वीर है एक दीवाने की
ख़ुद ढूंढ़ रही है शम्मा जिसे
क्या बात है उस परवाने की '
है ।
neelam said…
manu ji laga diya aapne phir se shatak .uttar bhi sau feesdi sahi hai .
manu said…
नीलम जी, शुक्रिया,
मुझे अगर कुछ पता ना लगे तो भी मैं वहाँ से बिना कमेंट किये नहीं आ सकता,,,,,इस शतक के चक्कर में एक कमेन्ट खो चुका हूँ,,,,,
एक गाना है जो मैंने एक बार कभी चित्र हार में देखा था उसके बाद उसे खो सा दिया था,,,,,यहाँ उम्मीद जगी है के शायद दोबारा देखने को मिले,,,,,मुखडा याद है केवल,,,,रफी और शायद आशा थी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तू शोख कली, मैं मस्त पवन
तू शमे वफ़ा, मैं परवाना,

गुलशन गुलशन , महफ़िल महफ़िल
तेरा मेरा अफ़साना,

ऐसा सा कुछ सूना था,,,कभी ,,,बेहद भाया था,,,,पर तभी से तरस रहा हूँ,,,,,,
प्लीज ,मुझे कोई दोबारा दिखा दे,,,,यदि समझ ना आया हो तो,,,,,गुनगुना के बता सकता हूँ,,,,,एकदम अन्दर तक मन में बसा हुआ है,,,,,
इसे पहेली ना समझें,,,,,,मेरी गुजारिश समझें,,,,,,
sumit said…
मनु भाई
फिर से शतक,
वैसे पुराने गानो का मुझे भी बहुत शौक है पर अभी तक तो मै खाता भी नही खोल पाया

उज्जवल भाई,
क्या हाल है, आप भी form मे चल रहे हो, आपने तो फिल्म का नाम तक बता दिया

मनु भाई, रफी साहब का ये गाना orkut पर देखता हूँ अगर मिल गया तो आपको भेज दूँगा
अपनी ई मेल I D लिख दीजिये
सुमित
sumit said…
मेरी I D है sumit306210@gmail.com आप चाहो तो अपनी I D इस पर भी भेज सकते हो
neelam said…
sajeev ji ,sujoyda,sumitji .
manu ji ki madad kariye ,aap ke liye to kuch bhi mushkil nahi.
manu said…
सजीव जी का बहुत बहुत शुक्रिया,,,,,
मुझे इसी रफी वाले गाने की तलाश थी,,,,,पर इस की हालत देख कर दुःख भी हुआ,,पता नहीं इतने खूबसूरत नगमों की संभाल क्यों नहीं की जाती,,,इतना तो पुराना भी नहीं है के कोई आलम आरा के समय का हो,,,,,
फिर भी आज मेरे जन्मदिन पर ये तोहफा मुझे बेहद अछा लगा,,,,,
एक बार फिर से शुक्रिया,,,,,

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...