सुर संगम - 17 - घटम
सुप्रभात! सुर-संगम के आज के अंक में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत में ताल की भूमिका सबसे महत्त्व्पूर्ण मानी गयी है। ताल किसी भी तालवाद्य से निकलने वाली ध्वनि का वह तालबद्ध चक्र है जो किसी भी गीत अथवा राग को गाते समय गायक को सुर लगाने के सही समय का बोध कराता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में जहाँ कुछ ताल बहुत रसद हैं वहीं कुछ ताल बहुत ही जटिल व जटिल भी हैं। तालों के लिए कई वाद्यों का प्रयोग किया जाता है जिनमें तबला, ढोलक, ढोल, मृदंगम, घटम आदि कुछ नाम हम सब जानते हैं। आज के इस अंक में हम चर्चा करेंगे एक बहुत ही लोकप्रिय तालवाद्य - घटम के बारे में।
घटम मूलतः दक्षिण भारत के कार्नाटिक संगीत में प्रयोग किया जाने वाला तालवाद्य है। राजस्थान में इसी के दो अनुरूप मड्गा तथा सुराही के नामों से प्रचलित हैं। यह एक मिट्टी का बरतन है जिसे वादक अपनी उँगलियो, अंगूठे, हथेलियों व हाथ की एड़ी से इसके बाहरी सतह पर मार कर बजाते हैं। इसके मुख खुले हाथों से एक हवादर व कम आवाज़ ध्वनि उत्पन्न की जाती है जिसे 'गुमकी' कहते हैं। कभी-कभी कलाकार इसके मुख को अपने नग्न पेट से दबाकर एक गहरी गुमकी की ध्वनि भी उत्पन्न करते हैं। घटम के भिन्न भागों को बजाकर भिन्न - भिन्न ध्वनियाँ उत्पादित की जा सकती हैं। आइये इसी का एक उदाहरण देखें इस वीडियो द्वारा जिसमें इस वाद्य को बजा रहें हैं वर्तमान भारत के सबसे लोकप्रिय घटम वादक 'विक्कु विनायकराम'।
वर्तमान काल के सबसे प्रसिद्ध घटम वादकों में सबसे पहला नाम आता है 'श्री थेटकुड़ी हरिहर विनायकराम' का, जिन्हें प्यार से 'विक्कु विनायकराम' भी कहा जाता है। इस अनोखे तालवाद्य कि कला को बचाने तथा इसे विश्व प्रसिद्ध करने में इनका योगदान उल्लेखनीय रहा है। विक्कु जई का जन्म सन् १९४२ में मद्रास में हुआ। उनके पिता श्री कलईमणि टि. आर. हरिहर शर्मा स्वयं एक प्रतिभावान संगीतज्ञ तथा संगीत के प्राध्यापक थे। विक्कु जी ने ७ वर्ष की अल्पायु में ही इस वाद्य कला का प्रशिक्षण प्रारंभ कर दिया था तथा उन्होंने अपनी अरंगेत्रम् (प्रथम सार्वजनिक प्रस्तुति) दी मात्र १३ वर्ष कई आयु में, वर्ष १९५५ में श्री राम नवमि उत्सव के दौरान। इससे सम्बन्धित एक रोचक घटना भी है, वह यह कि जब विक्कु अपना अरंगेत्रम् देने मंच पर जा रहे थे, तब 'गणेश' नामक एक बच्चे ने उनका घटम तोड़ दिया। इसे घटना को वे आज भी अपने करियर के लिए शुभ मानते हैं। उन्होंने स्वयं को इतनी कम उम्र में इस प्रकार सिद्ध कर दिया कि शीघ्र ही वे 'मंगलमपल्लि बालमुरलीकृष्ण', 'जी. एन. बालासुब्रमणियम', 'मदुरई मणि अय्यर' और 'एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी' जैसे कार्नाटिक संगीत के दिग्गजों के साथ कार्यक्रम करने लगे। विक्कु जी का अन्तर्राष्ट्रीय सफ़र शुरु हुआ ७० के दशक में कोलम्बिया(अमरीका) 'शक्ति' नामक बैण्ड से जुड़े जिसमें मुख्य सदस्य थे जॉन मक्लॉफ़्लिन तथा उस्ताद ज़ाकिर हुसैन। इसके बाद उनकी ख्याति में और वृद्धि हुई वर्ष १९९२ में जब उन्हें 'प्लैनेट ड्रम' नामक एक अन्तर्राष्ट्रिय संगीत ऎल्बम के लिए विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार - 'ग्रैमी' पुरस्कार से सम्मनित किया गया। तो लीजिए ये तो रही कुछ जानकारी विक्कु विनायकराम जी के बारे मे। इस कड़ी को समाप्त करते हुए आपको ले चलते हैं उनके द्वारा एक विशेष प्रस्तुति के वीडियो की ओर। आप सोच रहे होंगे कि आज मैं आपको केवल वीडियो ही क्यों दिखा रहा हूँ? अजी विक्कु जी का घटम वादन का अंदाज़ ही इतना रोचक व अनूठा है कि केवल सुनने से मज़ा नहीं आएगा। आप इस वीडियो में देख सकेंगे कि किस प्रकार उनके अनोखे अन्दाज़ ने उस्ताद ज़किर हुसैन साहब का मन भी मोह लिया और वे उनकी वाह- वाही ही करते रहे।
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
हमने सोचा कि क्यों न आज की पहेली को थोड़ा सा कठिन बनाया जाए। इस लिए आज कोई भी राग अथवा धुन का हिस्सा नहीं सुनाएँगे।
पहेली: पाश्चात्य संगीत का हवायन गिटार इस तन्त्र वाद्य का वैकल्पिक रूप है।
पिछ्ली पहेली का परिणाम: एक बार पुन: इंदौर की श्रीमति क्षिति तिवारी जी बाज़ी ले गईं हैं। इन्हें मिलते हैं ५ अंक, हार्दिक बधाई!
तो यह था आज का सुर-संगम, कार्नाटिक शास्त्रीय संगीत के एक बहुत ही सरलदर्शि परन्तु अनुपम वाद्य घटम पर आधारित। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने साथी सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए| और हाँ! शाम ६:३० बजे हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के प्यारे साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!
खोज व आलेख- सुमित चक्रवर्ती
जब विक्कु अपना अरंगेत्रम् देने मंच पर जा रहे थे, तब 'गणेश' नामक एक बच्चे ने उनका घटम तोड़ दिया। इसे घटना को वे आज भी अपने करियर के लिए शुभ मानते हैं।
सुप्रभात! सुर-संगम के आज के अंक में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत में ताल की भूमिका सबसे महत्त्व्पूर्ण मानी गयी है। ताल किसी भी तालवाद्य से निकलने वाली ध्वनि का वह तालबद्ध चक्र है जो किसी भी गीत अथवा राग को गाते समय गायक को सुर लगाने के सही समय का बोध कराता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में जहाँ कुछ ताल बहुत रसद हैं वहीं कुछ ताल बहुत ही जटिल व जटिल भी हैं। तालों के लिए कई वाद्यों का प्रयोग किया जाता है जिनमें तबला, ढोलक, ढोल, मृदंगम, घटम आदि कुछ नाम हम सब जानते हैं। आज के इस अंक में हम चर्चा करेंगे एक बहुत ही लोकप्रिय तालवाद्य - घटम के बारे में।
घटम मूलतः दक्षिण भारत के कार्नाटिक संगीत में प्रयोग किया जाने वाला तालवाद्य है। राजस्थान में इसी के दो अनुरूप मड्गा तथा सुराही के नामों से प्रचलित हैं। यह एक मिट्टी का बरतन है जिसे वादक अपनी उँगलियो, अंगूठे, हथेलियों व हाथ की एड़ी से इसके बाहरी सतह पर मार कर बजाते हैं। इसके मुख खुले हाथों से एक हवादर व कम आवाज़ ध्वनि उत्पन्न की जाती है जिसे 'गुमकी' कहते हैं। कभी-कभी कलाकार इसके मुख को अपने नग्न पेट से दबाकर एक गहरी गुमकी की ध्वनि भी उत्पन्न करते हैं। घटम के भिन्न भागों को बजाकर भिन्न - भिन्न ध्वनियाँ उत्पादित की जा सकती हैं। आइये इसी का एक उदाहरण देखें इस वीडियो द्वारा जिसमें इस वाद्य को बजा रहें हैं वर्तमान भारत के सबसे लोकप्रिय घटम वादक 'विक्कु विनायकराम'।
वर्तमान काल के सबसे प्रसिद्ध घटम वादकों में सबसे पहला नाम आता है 'श्री थेटकुड़ी हरिहर विनायकराम' का, जिन्हें प्यार से 'विक्कु विनायकराम' भी कहा जाता है। इस अनोखे तालवाद्य कि कला को बचाने तथा इसे विश्व प्रसिद्ध करने में इनका योगदान उल्लेखनीय रहा है। विक्कु जई का जन्म सन् १९४२ में मद्रास में हुआ। उनके पिता श्री कलईमणि टि. आर. हरिहर शर्मा स्वयं एक प्रतिभावान संगीतज्ञ तथा संगीत के प्राध्यापक थे। विक्कु जी ने ७ वर्ष की अल्पायु में ही इस वाद्य कला का प्रशिक्षण प्रारंभ कर दिया था तथा उन्होंने अपनी अरंगेत्रम् (प्रथम सार्वजनिक प्रस्तुति) दी मात्र १३ वर्ष कई आयु में, वर्ष १९५५ में श्री राम नवमि उत्सव के दौरान। इससे सम्बन्धित एक रोचक घटना भी है, वह यह कि जब विक्कु अपना अरंगेत्रम् देने मंच पर जा रहे थे, तब 'गणेश' नामक एक बच्चे ने उनका घटम तोड़ दिया। इसे घटना को वे आज भी अपने करियर के लिए शुभ मानते हैं। उन्होंने स्वयं को इतनी कम उम्र में इस प्रकार सिद्ध कर दिया कि शीघ्र ही वे 'मंगलमपल्लि बालमुरलीकृष्ण', 'जी. एन. बालासुब्रमणियम', 'मदुरई मणि अय्यर' और 'एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी' जैसे कार्नाटिक संगीत के दिग्गजों के साथ कार्यक्रम करने लगे। विक्कु जी का अन्तर्राष्ट्रीय सफ़र शुरु हुआ ७० के दशक में कोलम्बिया(अमरीका) 'शक्ति' नामक बैण्ड से जुड़े जिसमें मुख्य सदस्य थे जॉन मक्लॉफ़्लिन तथा उस्ताद ज़ाकिर हुसैन। इसके बाद उनकी ख्याति में और वृद्धि हुई वर्ष १९९२ में जब उन्हें 'प्लैनेट ड्रम' नामक एक अन्तर्राष्ट्रिय संगीत ऎल्बम के लिए विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार - 'ग्रैमी' पुरस्कार से सम्मनित किया गया। तो लीजिए ये तो रही कुछ जानकारी विक्कु विनायकराम जी के बारे मे। इस कड़ी को समाप्त करते हुए आपको ले चलते हैं उनके द्वारा एक विशेष प्रस्तुति के वीडियो की ओर। आप सोच रहे होंगे कि आज मैं आपको केवल वीडियो ही क्यों दिखा रहा हूँ? अजी विक्कु जी का घटम वादन का अंदाज़ ही इतना रोचक व अनूठा है कि केवल सुनने से मज़ा नहीं आएगा। आप इस वीडियो में देख सकेंगे कि किस प्रकार उनके अनोखे अन्दाज़ ने उस्ताद ज़किर हुसैन साहब का मन भी मोह लिया और वे उनकी वाह- वाही ही करते रहे।
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
हमने सोचा कि क्यों न आज की पहेली को थोड़ा सा कठिन बनाया जाए। इस लिए आज कोई भी राग अथवा धुन का हिस्सा नहीं सुनाएँगे।
पहेली: पाश्चात्य संगीत का हवायन गिटार इस तन्त्र वाद्य का वैकल्पिक रूप है।
पिछ्ली पहेली का परिणाम: एक बार पुन: इंदौर की श्रीमति क्षिति तिवारी जी बाज़ी ले गईं हैं। इन्हें मिलते हैं ५ अंक, हार्दिक बधाई!
तो यह था आज का सुर-संगम, कार्नाटिक शास्त्रीय संगीत के एक बहुत ही सरलदर्शि परन्तु अनुपम वाद्य घटम पर आधारित। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने साथी सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए| और हाँ! शाम ६:३० बजे हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के प्यारे साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!
खोज व आलेख- सुमित चक्रवर्ती
आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.
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kshiti tiwari