ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 643/2010/343
'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' - मन्ना डे पर केन्द्रित इस शृंखला में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सभी का एक बार फिर स्वागत करता हूँ। कल की कड़ी में हमने आपसे मन्ना डे को फ़िल्मी पार्श्वगायन के क्षेत्र में मिले पहले अवसर के बारे में चर्चा की थी। दरअसल फिल्म 'रामराज्य' का निर्माण 1942 में शुरू हुआ था किन्तु इसका प्रदर्शन 1943 में हुआ। इस बीच मन्ना डे ने फिल्म 'तमन्ना' के लिए सुरैया के साथ एक युगल गीत भी गाया। इस फिल्म के संगीत निर्देशक मन्ना डे के चाचा कृष्ण चन्द्र डे थे। सुरैया के साथ गाये इस युगल गीत के बोल थे- 'जागो आई उषा, पंछी बोले....'। कुछ लोग 'तमन्ना' के इस गीत को मन्ना डे का पहला गीत मानते हैं। सम्भवतः फिल्म 'रामराज्य' से पहले प्रदर्शित होने के कारण फिल्म 'तमन्ना' का गीत मन्ना डे का पहला गीत मान लिया गया हो। इन दो गीतों के रूप में पहला अवसर मिलने के बावजूद मन्ना डे का आगे का मार्ग बहुत सरल नहीं था। एक बातचीत में मन्ना डे ने बताया कि पहला अवसर मिलने के बावजूद मुझे काफी प्रतीक्षा करनी पड़ी। "रामराज्य" का गीत गाने के बाद मन्ना डे के पास धार्मिक गानों के प्रस्ताव आने लगे। उस दौर में उन्होंने फिल्म 'कादम्बरी', 'प्रभु का घर', विक्रमादित्य', 'श्रवण कुमार', 'बाल्मीकि', 'गीतगोविन्द' आदि कई फिल्मों में गीत गाये किन्तु इनमें से कोई भी गीत मन्ना डे को श्रेष्ठ गायक के रूप में स्थापित करने में सफल नहीं हुआ। हालाँकि इन फिल्मों के संगीतकार अनिल विश्वास, शंकर राव व्यास, पलसीकर, खान दत्ता, ज़फर खुर्शीद, बुलो सी रानी, सुधीर फडके आदि थे।
इस स्थिति का कारण पूछने पर मन्ना डे बड़ी विनम्रता से कहते हैं- "उन दिनों मुझसे बेहतर कई गायक थे जिनके बीच मुझे अपनी पहचान बनानी थी"। मन्ना डे का यह कथन एक हद तक ठीक हो सकता है किन्तु पूरी तरह नहीं। अच्छा गाने के बावजूद पहचान न बन पाने के दो कारण और थे। मन्ना डे से हुई बातचीत में यह तथ्य भी उभरा कि उन दिनों ग्रामोफोन रिकार्ड पर गायक कलाकार का नाम नहीं दिया जाता था, जिससे उनके कई अच्छे प्रारम्भिक गाने अनदेखे और अनसुने रह गए। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उस दौर में उन्हें अधिकतर धार्मिक फिल्मों के हलके-फुल्के गाने ही मिले। इस परिस्थिति से मन्ना डे लगातार संघर्ष करते रहे।
मन्ना डे कोलकाता से मुम्बई अपने चाचा के सहायक की हैसियत से आए थे। उनकी यह भूमिका अपनी पहचान न बना पाने के दौर में अधिक महत्वपूर्ण हो गई थी। वो अपने चाचा को पितातुल्य मानते थे। एक साक्षात्कार में मन्ना डे ने कहा भी था- "मेरे लिए वो आराध्य, मित्र और मार्गदर्शक थे। वह उन दिनों बंगाल के संगीत जगत, विशेषकर कीर्तन गायन के क्षेत्र में शिखर पुरुष थे। मैंने अपने चाचा को कीर्तन गाते हुए देखा था। जब वो गाते थे, श्रोताओं की ऑंखें आँसुओं से भींगी होती थी। उनका सहायक बनना मेरे लिए सम्मान की बात थी। बर्मन दादा (सचिन देव बर्मन) और पंकज मल्लिक जैसे संगीतकार मेरे चाचा से मार्गदर्शन प्राप्त करने आया करते थे"। ऐसे योग्य कलासाधक की छत्र-छाया में रह कर मन्ना डे संगीत रचना भी किया करते थे। टेलीविजन के कार्यक्रम 'सा रे गा म प' में एक बार गायक सोनू निगम से बातचीत करते हुए मन्ना डे ने बताया था कि अपने कैरियर के शुरुआती दौर में वो अपने चाचा के अलावा सचिन देव बर्मन, खेमचन्द्र प्रकाश और अनिल विश्वास के सहायक भी रहे और स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशक भी। उन्होंने सोनू निगम से यह भी कहा था- "संगीत रचना मैं आज भी कर सकता हूँ, यह मेरा सबसे पसन्दीदा कार्य है।"
50 के दशक में मन्ना डे ने खेमचन्द्र प्रकाश के साथ फिल्म 'श्री गणेश जन्म' और 'विश्वामित्र' तथा स्वतंत्र रूप से फिल्म 'महापूजा', 'अमानत', 'चमकी', 'शोभा', 'तमाशा' आदि में संगीत निर्देशन किया था। फिल्म 'चमकी' में मुकेश ने गीतकार प्रदीप का लिखा गीत- "कैसे ज़ालिम से पड़ गया पाला..." तथा फिल्म 'तमाशा' में लता मंगेशकर ने मन्ना डे के संगीत निर्देशन में गीत- "क्यों अँखियाँ भर आईं भूल सके न हम...." गाया | इस गीत को भरत व्यास ने लिखा है | आइए मन्ना डे की संगीत-रचना-कौशल का उदाहरण सुनते हुए आगे बढ़ते हैं |
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 04/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक सुप्रसिद्ध गीत.
सवाल १ - कौन सी दो आवाजें हैं और हैं इस गीत में, याद रहे दोनों गायकों के नाम बताने पर ही पूरे अंक मिलेंगे- ३ अंक
सवाल २ - किस शायर की है मूल रचना - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी, अनजाना जी, प्रदीप जी और क्षितिज जी को बधाई
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' - मन्ना डे पर केन्द्रित इस शृंखला में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सभी का एक बार फिर स्वागत करता हूँ। कल की कड़ी में हमने आपसे मन्ना डे को फ़िल्मी पार्श्वगायन के क्षेत्र में मिले पहले अवसर के बारे में चर्चा की थी। दरअसल फिल्म 'रामराज्य' का निर्माण 1942 में शुरू हुआ था किन्तु इसका प्रदर्शन 1943 में हुआ। इस बीच मन्ना डे ने फिल्म 'तमन्ना' के लिए सुरैया के साथ एक युगल गीत भी गाया। इस फिल्म के संगीत निर्देशक मन्ना डे के चाचा कृष्ण चन्द्र डे थे। सुरैया के साथ गाये इस युगल गीत के बोल थे- 'जागो आई उषा, पंछी बोले....'। कुछ लोग 'तमन्ना' के इस गीत को मन्ना डे का पहला गीत मानते हैं। सम्भवतः फिल्म 'रामराज्य' से पहले प्रदर्शित होने के कारण फिल्म 'तमन्ना' का गीत मन्ना डे का पहला गीत मान लिया गया हो। इन दो गीतों के रूप में पहला अवसर मिलने के बावजूद मन्ना डे का आगे का मार्ग बहुत सरल नहीं था। एक बातचीत में मन्ना डे ने बताया कि पहला अवसर मिलने के बावजूद मुझे काफी प्रतीक्षा करनी पड़ी। "रामराज्य" का गीत गाने के बाद मन्ना डे के पास धार्मिक गानों के प्रस्ताव आने लगे। उस दौर में उन्होंने फिल्म 'कादम्बरी', 'प्रभु का घर', विक्रमादित्य', 'श्रवण कुमार', 'बाल्मीकि', 'गीतगोविन्द' आदि कई फिल्मों में गीत गाये किन्तु इनमें से कोई भी गीत मन्ना डे को श्रेष्ठ गायक के रूप में स्थापित करने में सफल नहीं हुआ। हालाँकि इन फिल्मों के संगीतकार अनिल विश्वास, शंकर राव व्यास, पलसीकर, खान दत्ता, ज़फर खुर्शीद, बुलो सी रानी, सुधीर फडके आदि थे।
इस स्थिति का कारण पूछने पर मन्ना डे बड़ी विनम्रता से कहते हैं- "उन दिनों मुझसे बेहतर कई गायक थे जिनके बीच मुझे अपनी पहचान बनानी थी"। मन्ना डे का यह कथन एक हद तक ठीक हो सकता है किन्तु पूरी तरह नहीं। अच्छा गाने के बावजूद पहचान न बन पाने के दो कारण और थे। मन्ना डे से हुई बातचीत में यह तथ्य भी उभरा कि उन दिनों ग्रामोफोन रिकार्ड पर गायक कलाकार का नाम नहीं दिया जाता था, जिससे उनके कई अच्छे प्रारम्भिक गाने अनदेखे और अनसुने रह गए। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उस दौर में उन्हें अधिकतर धार्मिक फिल्मों के हलके-फुल्के गाने ही मिले। इस परिस्थिति से मन्ना डे लगातार संघर्ष करते रहे।
मन्ना डे कोलकाता से मुम्बई अपने चाचा के सहायक की हैसियत से आए थे। उनकी यह भूमिका अपनी पहचान न बना पाने के दौर में अधिक महत्वपूर्ण हो गई थी। वो अपने चाचा को पितातुल्य मानते थे। एक साक्षात्कार में मन्ना डे ने कहा भी था- "मेरे लिए वो आराध्य, मित्र और मार्गदर्शक थे। वह उन दिनों बंगाल के संगीत जगत, विशेषकर कीर्तन गायन के क्षेत्र में शिखर पुरुष थे। मैंने अपने चाचा को कीर्तन गाते हुए देखा था। जब वो गाते थे, श्रोताओं की ऑंखें आँसुओं से भींगी होती थी। उनका सहायक बनना मेरे लिए सम्मान की बात थी। बर्मन दादा (सचिन देव बर्मन) और पंकज मल्लिक जैसे संगीतकार मेरे चाचा से मार्गदर्शन प्राप्त करने आया करते थे"। ऐसे योग्य कलासाधक की छत्र-छाया में रह कर मन्ना डे संगीत रचना भी किया करते थे। टेलीविजन के कार्यक्रम 'सा रे गा म प' में एक बार गायक सोनू निगम से बातचीत करते हुए मन्ना डे ने बताया था कि अपने कैरियर के शुरुआती दौर में वो अपने चाचा के अलावा सचिन देव बर्मन, खेमचन्द्र प्रकाश और अनिल विश्वास के सहायक भी रहे और स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशक भी। उन्होंने सोनू निगम से यह भी कहा था- "संगीत रचना मैं आज भी कर सकता हूँ, यह मेरा सबसे पसन्दीदा कार्य है।"
50 के दशक में मन्ना डे ने खेमचन्द्र प्रकाश के साथ फिल्म 'श्री गणेश जन्म' और 'विश्वामित्र' तथा स्वतंत्र रूप से फिल्म 'महापूजा', 'अमानत', 'चमकी', 'शोभा', 'तमाशा' आदि में संगीत निर्देशन किया था। फिल्म 'चमकी' में मुकेश ने गीतकार प्रदीप का लिखा गीत- "कैसे ज़ालिम से पड़ गया पाला..." तथा फिल्म 'तमाशा' में लता मंगेशकर ने मन्ना डे के संगीत निर्देशन में गीत- "क्यों अँखियाँ भर आईं भूल सके न हम...." गाया | इस गीत को भरत व्यास ने लिखा है | आइए मन्ना डे की संगीत-रचना-कौशल का उदाहरण सुनते हुए आगे बढ़ते हैं |
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 04/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक सुप्रसिद्ध गीत.
सवाल १ - कौन सी दो आवाजें हैं और हैं इस गीत में, याद रहे दोनों गायकों के नाम बताने पर ही पूरे अंक मिलेंगे- ३ अंक
सवाल २ - किस शायर की है मूल रचना - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी, अनजाना जी, प्रदीप जी और क्षितिज जी को बधाई
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
एक दुर्लभ गीत. मैंने इसे पहले नहीं सुना था यद्यपि फिल्म 'तमाशा' के कुछ गीत सुने थे.
शायद गलती से पैराग्राफ ३ में सचिन दा की जगह पंचम का नाम उन संगीतकारों की सूची में पड़ गया जिनके साथ मन्ना दा ने सहायक के तौर पर काम किया.
आभार सहित
अवध लाल
आपने मेरी त्रुटि की ओर इंगित किया, क्षमा याचना सहित आपका आभारी हूँ| अन्य सभी पाठकों से अपनी इस भूल के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ| इंगित की गई पंक्ति में राहुलदेव बर्मन के स्थान पर सचिनदेव बर्मन होना चाहिए|
कृष्णमोहन मिश्र