Skip to main content

करूँ क्या आस निरास भयी...एक और कालजयी गीत सहगल साहब का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 626/2010/326

'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और नए सप्ताह के साथ हाज़िर हैं दोस्तों। आशा है रविवार की इस छुट्टी के दिन का आपनें भरपूर आनंद लिया होगा और विश्व कप में भारत की शानदार जीत से सुरूर से अभी पूरी तरह से उभर नहीं पाए होंगें। कुंदन लाल सहगल साहब पर केन्द्रित लघु शृंखला में पिछले हफ़्ते हम उनकी संगीत यात्रा की चर्चा करते हुए और उनके गाये गीतों व ग़ज़लों को सुनते हुए आप पहुँचे थे साल १९३७ में। आइए आज वहीं से उस सुरीली यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। १९३८ में न्यु थिएटर्स नें आर.सी. बोराल और पंकज मल्लिक को मौका दिया अपनी संगीत यात्रा को एक बार फिर से बुलंदी पर बनाये रखने का। बोराल साहब नें 'अभागिन' और 'स्ट्रीट-सिंगर' में, तथा मल्लिक बाबू नें 'धरतीमाता' में कालजयी संगीत दिया। 'स्टीट-सिंगर' और 'धरतीमाता' में सहगल साहब के स्वर गूंजे। 'स्ट्रीट-सिंगर' की कालजयी ठुमरी "बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये" हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' और 'सुर-संगम', दोनों ही स्तंभों में सुनवा चुके हैं। १९३८ में सहगल साहब नें 'प्रयाग संगीत समारोह' में भाग लिया, जिसमें मौजूद थे उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ान, अब्दुल करीम ख़ान, बाल गंधर्व और पंडित ओम्कार नाथ जैसे दिग्गज फ़नकार। सहगल साहब की गायकी से वे इतने प्रभावित हुए कि उनकी गायी राग दरबारी सुनने के बाद उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ान साहब ने उनसे कहा, "बेटे, ऐसा कुछ नहीं है जो मैं तुम्हे अब सिखा सकूँ"।

फिर आया साल १९३९। न्यु थिएटर्स अपनी पूरी शबाब पर था। इस कंपनी के चार फ़िल्में इस साल प्रदर्शित हुई - 'बड़ी दीदी', 'दुश्मन', 'जवानी की रीत' और 'सपेरा'। पहले दो में संगीत पंकज बाबू का था और बाक़ी दो में बोराल साहब के धुन गूंजे। इन चारों फ़िल्मों में 'दुश्मन' के गानें सब से ज़्यादा लोकप्रिय हुए। आरज़ू लखनवी साहब के लिखे गीतों को सहगल साहब ने अपनी जादूई आवाज़ में ढाला। फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत "करूँ क्या आस निरास भयी" सहगल साहब के करीयर का एक और बेहद महत्वपूर्ण गीत रहा है। यह गीत आशावादी और निराशावादी, दोनों है। गीत शुरु होता है "करूँ क्या आस निरास भयी", लेकिन अंतिम अंतरे में आरज़ू साहब लिखते हैं "करना होगा ख़ून का पानी, देनी होगी हर क़ुर्बानी, हिम्मत है इतनी तो समझ ले आस बंधेगी नयी, कहो ना आस निरास भयी, कहो ना आस निरास भयी"। यानी कि 'आस निरास भयी' ऐसा न कहने की सलाह दी जा रही है। फ़िल्म के साउण्डट्रैक में हर गीत से पहले कुछ न कुछ शब्द बोले गये हैं। अब इसी गीत को लीजिए, गीत शुरु होने से पहले सहगल साहब कहते हैं, "आवाज़ की दुनिया के दोस्तों, फ़र्ज़ कीजिए कि किसी की ख़ुशी की दुनिया बरबाद हो चुकी हो और जहाँ तक उसकी निगाह जाती हो, उसे अंधेरे की निराशा और निराशा के अंधेरे के सिवा और कोई चीज़ दिखायी न देती हो, ऐसे वक़्त में उसे क्या करना चाहिए? मेरा ख़याल है कि.... करूँ क्या आस निरास भयी"। तो 'आवाज़' की दुनिया के दोस्तों, लीजिए इस कालजयी रचना का आनंद लीजिए सहगल साहब की कालजयी आवाज़ में।



क्या आप जानते हैं...
कि तलत महमूद साहब नें 'विविध भारती' में 'जयमाला' कार्यक्रम को प्रस्तुत करते हुए सहगल साहब के गाये इसी गीत "करूँ क्या आस निरास भयी" को बजाया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 6/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.

सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - ३ अंक
सवाल ३ - मात्र इसी फिल्म में इस संगीतकार ने सहगल से गवाया था, संगीतकार कौन हैं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी, अवध जी और अंजाना जी के साथ साथ आज हम पूरे देश वासियों को भी बधाई देना चाहेंगें विश्व कप में शानदार जीत के लिए

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

This post has been removed by the author.
Anjaana said…
Lyrics:D N Madho
भारत के विश्वकप जीतने पर सभी लोगों को बधाई. सजीव जी इस जीत पर तो एक नया गाना बनना चाहिए. इंतज़ार रहेगा.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट