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सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने

सुर संगम - 16 - पंडित जसराज
१४ वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे।

मस्कार! सुर-संगम के इस साप्ताहिक स्तंभ में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। आज हम सुर-संगम में ऐसे हि एक विशिष्ट शास्त्रीय गायक के बारे में जानेंगे जिनकी आवाज़ मानो सुनने वालों को सीधा उस परमेश्वर से जाकर जोड़ती है। एक ऐसी आवाज़ जिन्होंने मात्र ३ वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ कदम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बन विश्व-जगत में उन्हें विख्यात कर चले हैं। जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के समकालीन दिग्गज, संगीत मार्तांड पंडित जसराज जी की। आईये पंडित जसराज के बारे में और जानने से पहले सुनें उनकी आवाज़ में यह गणेश वंदना।

गणेश वन्दना - पं० जसराज


पंडित जसराज क जन्म २८ जनवरी १९३० को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे ४ पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं० जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र ३ वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अलि खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा १४ वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा आगरा के स्वामि वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। बचपन से ही आदर्शों के पक्के पंडित जसराज के पक्के सुरों की चर्चा आगे बढ़ाने से पहले लीजिये सुनें उनके द्वारा प्रस्तुत राग गुर्जरी तोड़ी।

राग गुर्जरी तोड़ी - पं० जसराज


पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामि महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है। तो क्यों न जुगलबन्दी के इस रूप को भी सुना जाए पंडित जी के ही दो शागिर्दों विदुषी डॉ० अश्विनि भिड़े-देशपाण्डे और पं० संजीव अभ्यंकर की आवाज़ों में? डॉ० देशपाण्डे इस जुगलबन्दी में राग ललित गा रही हैं जबकि पं० अभ्यंकर गा रहे हैं राग पुर्ये-धनश्री।

जसरंगी जुगलबन्दी - डॉ० अश्विनि भिड़े-देशपाण्डे एवं पं० संजीव अभ्यंकर


और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

सुनिए और पहचानिए कि यह कौन सा भारतीय वाद्‍य यंत्र है? इसपर आधारित होगा हमारा आगामी अंक।



पिछ्ली पहेली का परिणाम: इस बार एक नयी श्रोता व पाठिका श्रीमति क्षिति तिवारी जी बाज़ी ले गईं हैं। आपको मिलते हैं ५ अंक, हार्दिक बधाई!

लीजिए हम आ पहुँचे हैं आज के सुर-संगम के इस अंक की समप्ति पर, आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने साथी सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए| और हाँ! शाम ६:३० बजे हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के प्यारे साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

खोज व आलेख- सुमित चक्रवर्ती



आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

Comments

Kshiti said…
< घटम > कर्नाटक संगीत में ताल देने के लिए प्रयोग होता है
क्षिति तिवारी ; इंदौर
प.जसराज जी को सुनकर आनन्द आ गया..आभार्
Anjaana said…
This post has been removed by the author.
AVADH said…
वाद्य - घटम.
संभवतः इसके वादक होंगे भिक्कू विनायक
अवध लाल

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