मधुकर श्याम हमारे चोर.....आज उनकी जयंती पर हम याद कर रहे हैं हिंदी सिनेमा के पहले सिंगिंग स्टार के एल सहगल को
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 627/2010/327
आज है ४ अप्रैल २०११। आज ही के दिन १०७ साल पहले जन्म हुआ था सुर-गंधर्व कुंदन लाल सहगल का। उन्हीं को समर्पित लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की सातवीं कड़ी में आज हम उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हुए उनकी संगीत सफ़र की दास्तान को आगे बढ़ाते हैं। आज की कड़ी में हम क़दम रख रहे हैं ४० के दशक में। १९४० में सहगल साहब के अभिनय और गायन से सजी फ़िल्म आयी 'ज़िंदगी', जिसके गीतों नें एक बार फिर सिद्ध किया कि इस नये दशक के सरताज भी सहगल साहब ही हैं। "सो जा राजकुमारी सो जा", 'ज़िंदगी' की इस कालजयी लोरी को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर 'प्योर गोल्ड' शृंखला में हम सुनवा चुके हैं। १९४० में न्यु थिएटर्स में भीषण आग लगी जिससे इस स्टुडिओ को माली नुकसान पहुँचा। लेकिन अपने आप को संभालते हुए १९४१ में इस कंपनी ने दो फ़िल्में प्रदर्शित कीं - 'लगन' और 'डॊक्टर'। 'लगन' में कानन देवी और सहगल साहब की जोड़ी थी जबकि 'डॊक्टर' में कानन देवी का साथ दिया पंकज मल्लिक नें। आरज़ू लखनवी के लिखे और आर.सी. बोराल के संगीतबद्ध किए और सहगल साहब के गाये 'लगन' के गीतों में "हट गई लो काली घटा", "मैं सोते भाग जगा दूँगा", "ये कैसा अन्याय दाता" और सब से लोकप्रिय "काहे को राड़ मचायी" उल्लेखनीय हैं। इसी फ़िल्म से कानन देवी की आवाज़ में एक गीत पियानो वाले़ सीरीज़ में हमनें आपको सुनवाया है। १९४२ के आते आते कई कलाकार फ़िल्म कंपनियों से इस्तीफ़ा देकर फ़्रीलांसिंग् शुरु करने लगे थे। कानन देवी भी इनमें शामिल थीं। उनके न्यु थिएटर्स से निकलते ही इस कंपनी को एक और झटका तब लगा जब सहगल साहब भी कलकत्ते को छोड़ बम्बई चले आये और जुड़े रणजीत मूवीटोन से। न्यु थिएटर्स छोड़ने का मतलब यह भी था कि रायचंद बोराल और पंकज मल्लिक से भी साथ छूट जाना। और इसी के साथ न्यु थिएटर्स का वह सुनहरा युग भी अपनी समाप्ति की तरफ़ बढ़ गया।
रणजीत मूवीटोन में सहगल साहब की पहली फ़िल्म थी 'भक्त सूरदास', जिसमें उनकी नायिका बनीं गायिका-अभिनेत्री ख़ुर्शीद। ज्ञान दत्त उन दिनों रणजीत के संगीतकार हुआ करते थे, और इस फ़िल्म में उनका दिया संगीत उनके करीयर का सफलतम संगीत बना। डी.एन. मधोक साहब के लिखे गीतों नें भक्तिमूलक होनें के बावजूद ख़ूब लोकप्रियता हासिल की। सहगल साहब के गाये गीतों में "मधुकर श्याम हमारे चोर", "निस दिन बरसत नैन हमारे", "तथा राग दरबारी कानड़ा आधारित "नैनहीन को राह दिखा प्रभु" सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। उनकी आवाज़ में कुछ अन्य गीत हैं "दिन से दुगुनी हो जाये रतिया", "रैन गयी अब हुआ सवेरा", "कदम चले आगे" आदि। सहगल साहब नें ख़ुर्शीद के साथ एक युगल गाया "जिस जोगी का जोग लिया" और राजकुमारी के साथ उन्होंने गाया "सर पे कदम की छैया मुरलिया बाजे रही"। इस फ़िल्म से आइए सुनते हैं "मधुकर श्याम हमारे चोर"। कहा जाता है कि इस गीत की रेकॊर्डिंग् के समय सहगल साहब नशे में धुत थे। यह देख कर ज्ञान दत्त साहब काफ़ी तनाव में आ गये, पर सहगल साहब नें उन्हें भरोसा दिलाया और इसी हालत में रेकॊर्डिंग् की और सब को चमत्कृत कर दिया। इस गीत को सुनते हुए आपको यकीनन ६० के दशक में आई "अजहुं न आये साजना सावन बीता जाये" गीत की याद आ ही जायेगी। कैसे आयेगी यह आप ख़ुद ही सुनकर महसूस कर लीजिएगा। तो आइए इस गीत को सुनें, ज्ञान दत्त साहब की चर्चा हम फिर किसी कड़ी में करेंगे।
क्या आप जानते हैं...
कि 'भक्त सूरदास' संगीतकार ज्ञान दत्त की एकमात्र ऐसी फ़िल्म है जिसमें उन्होंने सहगल साहब को गवाया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - किस राग पर आधारित है मशहूर गीत - ३ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
लगातार टाई का मामला चल रहा है, पर पहली कड़ी की बढ़त अमित जी की अभी भी जारी है....जी अमित जी कोशिश करेंगें कुछ नया बनाने की. फिल्हाल तो इस खुशी को सिंक हो जाने दीजिए पूरी तरह :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
आज है ४ अप्रैल २०११। आज ही के दिन १०७ साल पहले जन्म हुआ था सुर-गंधर्व कुंदन लाल सहगल का। उन्हीं को समर्पित लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की सातवीं कड़ी में आज हम उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हुए उनकी संगीत सफ़र की दास्तान को आगे बढ़ाते हैं। आज की कड़ी में हम क़दम रख रहे हैं ४० के दशक में। १९४० में सहगल साहब के अभिनय और गायन से सजी फ़िल्म आयी 'ज़िंदगी', जिसके गीतों नें एक बार फिर सिद्ध किया कि इस नये दशक के सरताज भी सहगल साहब ही हैं। "सो जा राजकुमारी सो जा", 'ज़िंदगी' की इस कालजयी लोरी को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर 'प्योर गोल्ड' शृंखला में हम सुनवा चुके हैं। १९४० में न्यु थिएटर्स में भीषण आग लगी जिससे इस स्टुडिओ को माली नुकसान पहुँचा। लेकिन अपने आप को संभालते हुए १९४१ में इस कंपनी ने दो फ़िल्में प्रदर्शित कीं - 'लगन' और 'डॊक्टर'। 'लगन' में कानन देवी और सहगल साहब की जोड़ी थी जबकि 'डॊक्टर' में कानन देवी का साथ दिया पंकज मल्लिक नें। आरज़ू लखनवी के लिखे और आर.सी. बोराल के संगीतबद्ध किए और सहगल साहब के गाये 'लगन' के गीतों में "हट गई लो काली घटा", "मैं सोते भाग जगा दूँगा", "ये कैसा अन्याय दाता" और सब से लोकप्रिय "काहे को राड़ मचायी" उल्लेखनीय हैं। इसी फ़िल्म से कानन देवी की आवाज़ में एक गीत पियानो वाले़ सीरीज़ में हमनें आपको सुनवाया है। १९४२ के आते आते कई कलाकार फ़िल्म कंपनियों से इस्तीफ़ा देकर फ़्रीलांसिंग् शुरु करने लगे थे। कानन देवी भी इनमें शामिल थीं। उनके न्यु थिएटर्स से निकलते ही इस कंपनी को एक और झटका तब लगा जब सहगल साहब भी कलकत्ते को छोड़ बम्बई चले आये और जुड़े रणजीत मूवीटोन से। न्यु थिएटर्स छोड़ने का मतलब यह भी था कि रायचंद बोराल और पंकज मल्लिक से भी साथ छूट जाना। और इसी के साथ न्यु थिएटर्स का वह सुनहरा युग भी अपनी समाप्ति की तरफ़ बढ़ गया।
रणजीत मूवीटोन में सहगल साहब की पहली फ़िल्म थी 'भक्त सूरदास', जिसमें उनकी नायिका बनीं गायिका-अभिनेत्री ख़ुर्शीद। ज्ञान दत्त उन दिनों रणजीत के संगीतकार हुआ करते थे, और इस फ़िल्म में उनका दिया संगीत उनके करीयर का सफलतम संगीत बना। डी.एन. मधोक साहब के लिखे गीतों नें भक्तिमूलक होनें के बावजूद ख़ूब लोकप्रियता हासिल की। सहगल साहब के गाये गीतों में "मधुकर श्याम हमारे चोर", "निस दिन बरसत नैन हमारे", "तथा राग दरबारी कानड़ा आधारित "नैनहीन को राह दिखा प्रभु" सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। उनकी आवाज़ में कुछ अन्य गीत हैं "दिन से दुगुनी हो जाये रतिया", "रैन गयी अब हुआ सवेरा", "कदम चले आगे" आदि। सहगल साहब नें ख़ुर्शीद के साथ एक युगल गाया "जिस जोगी का जोग लिया" और राजकुमारी के साथ उन्होंने गाया "सर पे कदम की छैया मुरलिया बाजे रही"। इस फ़िल्म से आइए सुनते हैं "मधुकर श्याम हमारे चोर"। कहा जाता है कि इस गीत की रेकॊर्डिंग् के समय सहगल साहब नशे में धुत थे। यह देख कर ज्ञान दत्त साहब काफ़ी तनाव में आ गये, पर सहगल साहब नें उन्हें भरोसा दिलाया और इसी हालत में रेकॊर्डिंग् की और सब को चमत्कृत कर दिया। इस गीत को सुनते हुए आपको यकीनन ६० के दशक में आई "अजहुं न आये साजना सावन बीता जाये" गीत की याद आ ही जायेगी। कैसे आयेगी यह आप ख़ुद ही सुनकर महसूस कर लीजिएगा। तो आइए इस गीत को सुनें, ज्ञान दत्त साहब की चर्चा हम फिर किसी कड़ी में करेंगे।
क्या आप जानते हैं...
कि 'भक्त सूरदास' संगीतकार ज्ञान दत्त की एकमात्र ऐसी फ़िल्म है जिसमें उन्होंने सहगल साहब को गवाया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - किस राग पर आधारित है मशहूर गीत - ३ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
लगातार टाई का मामला चल रहा है, पर पहली कड़ी की बढ़त अमित जी की अभी भी जारी है....जी अमित जी कोशिश करेंगें कुछ नया बनाने की. फिल्हाल तो इस खुशी को सिंक हो जाने दीजिए पूरी तरह :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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राग 'कल्याण' और 'शुद्ध कल्याण' में काफी अन्तर है | 'कल्याण' के आरोह-अवरोह में सभी सातो स्वर (तीव्र माध्यम) शुद्ध लगते हैं| 'शुद्ध कल्याण' के आरोह में माध्यम और निषाद नहीं लगता अर्थात आरोह 'भूपाली' की तरह होता है| अवरोह में सभी सातो स्वर लगते हैं, 'कल्याण' की तरह| इसका वादी स्वर गान्धार और संवादी धैवत होता है| पहेली में गीत का जितना अंश सुनाया गया है, उससे कोई भी राग स्पष्ट नहीं हो रहा है | केवल इतना अंश सुन कर कल्याण, शुद्ध कल्याण ही नहीं बल्कि यमन, बिलावल, यमनी बिलावल आदि रागों का भी आभास हो रहा है|
अपने अल्प ज्ञान से मैंने आपकी शंका का समाधान करने का प्रयास किया, और अधिक जानकारी के लिए किसी संगीतज्ञ से परामर्श करें|
कृष्णमोहन मिश्र
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